गुरुवार, 29 जून 2017

मोबाइल

जरा हटके - नई कविता
मोबाइल

जानते हैं हम सभी
मोबाइल का अर्थ -
फिर भी -चंचल ,अस्थिर, गतिशील,
भ्रमणकारी और हर कहीं होना उपलब्ध
इसके विशेष गुण होते हैं ।

मोबाइल के बिना अब
अधूरा लगता है संसार ।
बेचैन हो जाते हैं हम जरा में
मोबाइल के इधर -उधर होते ही।

पर कहते हैं न - मिलता ही है
जैसी संगत वैसा फल ।
फायदे हैं यदि अनेक , मोबाइल के
तो बुरी है लत भी इसकी।

ज्यादातर हो रहा है 
दुरूपयोग ही इसका
समाते जा रहे हैं हमारे अंदर
नामानुरूप अवगुण भी इसके।

बना दिया है मोबाइल ने हमको भी
अस्थिर, चंचल और लती ।
बिगाड़ दी है इसने दिनचर्या हमारी
और छीन लिया है सोते -जागते
मन का चैन ।

ऐसा भी नहीं कि अवगुणी ही है यह
सुविधाएं भी देता है अनेक
अपने गुणों में भी परिपूर्ण है यह
बशर्ते करें हम इसका सदुपयोग।

नई सदी की क्रांति है मोबाइल
पर समझ लें हम
परिणामों को भी इसके
जरूरी है यह भी ।

         - देवेंन्द्र सोनी, इटारसी।



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