जरा हटके - नई कविता
टूटता नही है कोई नियम
प्रकृति का
होती है रोज ही भोर
हटाकर पसरे रजनी के तिमिर को।
प्रकृति का
होती है रोज ही भोर
हटाकर पसरे रजनी के तिमिर को।
छुपे हैं इसमें संदेश कई -
जीवन चक्र के भी ।
भोर दिलाती है भरोषा -
नही है अंधकार स्थाई।
आए जब भी जीवन में
निराशा , घुटन या अवसाद के पल
डगमगाए आत्मविश्वास हमारा
तब कहती है भोर , यही -
चैन से सोते हो न ,
लेकर रजनी का आनन्द !
और आ जाती हूँ पल में ही - मैं ( भोर )
मिटा देती हूँ अंधकार ,
बिखेर कर चहुं ओर उजास ।
निराशा , घुटन या अवसाद के पल
डगमगाए आत्मविश्वास हमारा
तब कहती है भोर , यही -
चैन से सोते हो न ,
लेकर रजनी का आनन्द !
और आ जाती हूँ पल में ही - मैं ( भोर )
मिटा देती हूँ अंधकार ,
बिखेर कर चहुं ओर उजास ।
इसी तरह लो आंनद ,रखो धैर्य ,
छाए जब जीवन में
अनकहे / अनचाहे अंधकार ।
हट जायेंगे वे भी ,
पूरा होते ही समय
रजनी की मानिंद
और हो जाएगा उजास
नई भोर का ।
पूरा होते ही समय
रजनी की मानिंद
और हो जाएगा उजास
नई भोर का ।
अनवरत है यह क्रम
बदल सकता नहीं , कोई इसे
आएगी ही जीवन में
रजनी भी और भोर भी।
समझें इसे हम
अपने अपने सन्दर्भों में ।
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