शनिवार, 24 जून 2017

भोर

जरा हटके - नई कविता

टूटता नही है कोई नियम
प्रकृति का
होती है रोज ही भोर
हटाकर पसरे रजनी के तिमिर को।
छुपे हैं इसमें संदेश कई -

जीवन चक्र के भी ।
भोर दिलाती है भरोषा -
नही है अंधकार स्थाई।

आए जब भी जीवन में
निराशा , घुटन या अवसाद के पल
डगमगाए आत्मविश्वास हमारा
तब कहती है भोर , यही -
चैन से सोते हो न ,
लेकर रजनी का आनन्द !
और आ जाती हूँ पल में ही - मैं ( भोर )
मिटा देती हूँ अंधकार ,
बिखेर कर चहुं ओर उजास ।
इसी तरह लो आंनद ,रखो धैर्य , 

छाए जब जीवन में
अनकहे / अनचाहे अंधकार ।

हट जायेंगे वे भी ,
पूरा होते ही समय
रजनी की मानिंद
और हो जाएगा उजास
नई भोर का ।
अनवरत है यह क्रम 

बदल सकता नहीं , कोई इसे
आएगी ही जीवन में 
रजनी भी और भोर भी।
समझें इसे हम 
अपने अपने सन्दर्भों में ।

                      - देवेंन्द्र सोनी , इटारसी


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