तुम मेरे लिये उस हवा की तरह हो
जो मुझे छू कर तुम्हारे साथ का अहसास तो कराती हैं
लेकिन अगले ही पल दूर हो जाती हैं।
यूँ थम जाती हैं जैसे उसका नाम ओ निशान ही नही
ठीक वैसे ही जैसे तुम्हारे दिल में मेरा कोई जहान नहीं
लेकिन जब ये हवाएं मुझसे गुजरती हैं
तो तेरी हर आहट मुझमें सिमटती हैं,
कदमों को तेरी ओर बढ़ने की उमंग जंचती हैं ,
मन को फिर उम्मीद की किरण कहीं दूर दिखाई लगती हैं,
एक बार फिर तुझे चाहतें, पाने को न सही खोने को तरसती हैं
ये हवाएं क्यूँ न उम्र भर को रुकती हैं?,
ये हवाएं क्यूँ न मेरी रूह में टिक सकती हैं ?
ये हवाएं क्यूँ न तुम्हारी जगह मुझ संग संगम करती हैं ?
क्यूँ ये हवाएं तुम सी फितरत रखती हैं,
कभी मुझसे लड़ती,कभी झगड़ती हैं,कभी तो तूफान बनकर बरस पड़ती हैं
पर सच कहूँ ये जो भी मेरे साथ अपनी चाल चलती हैं,
उन सब में तुम्हें मेरे पास करती हैं,
इक लम्हें को भी मुझसे बिछड़न तुम्हारा ये न करती हैं
मेरे दिल को धड़कने की वजह से भरती हैं
इन हवाओं का आना-जाना मेरी सांसो का आना-जाना सा बन गया हैं
गर ये हवाएं यूँ न आकर गई और अगले ही वक्त जाकर आई न होती,
तो ये तुम्हारी दीवानी भी कब की मर गई होती,
तुम पर अपनी परछाईं से हट कर पत्थरों में जड़ गई होती
"इसलिये ए हवाओं तुम्हारा दिल-ओ-जान से शुक्रिया कि तुमने मेरे सनम को न तो मेरे करीब और न मुझसे जुदा होने दिया।"
Hit Like If You Like The Post.....
Share On Google.....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
your Comment will encourage us......