सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

बधावा


 


 खुशी का कोई रंग नहीं होता पर जब ख़ुशियाँ मिलती हैं, तो हमारा मन भी रंग-बिरंगा हो जाता है, दिल घूमने लगता है मन को आनंद मिलता है। ऐसा ही आनन्द तब मिलता है जब एक स्त्री माँ बनती है, तब उस समय वो अपने सारे दुःख भूलकर एक सम्पूर्णता का अनुभव करती है। 

ऐसा ही एहसास आज सविता कर रही है। उसने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया है और खुश भी है, स्त्री जीवन की सबसे महत्वपूर्ण लालसा आज साक्षात् आकार ले चुकी थी।

 अब तो सविता के मायके से बधावा आएगा, ढेर सारे मेहमान आएंगे, गाना  बजाना होगा, पकवान बनेगें और  ढेर सारे काम होंगे, ये सब बातें सोचकर सविता मन ही मन मुस्कराने लगी। सविता का मायके उसके घर से पचास किलोमीटर दूर है और आने में तीन घंटे लग जाते है पर फ़ोन पर सभी बातें हो जाती है। 


अब आप सोच रहे होंगे की ये बधावा क्या होता है तो मैं  बता दू की जब कोई स्त्री पहली बार माँ बनती है, चाहे उसे लड़का पैदा हो या लड़की पैदा हो, तो उस स्त्री के मायके के सभी लोग और मेहमान लड़की के ससुराल आते है, साथ में बच्चे के लिए कपडा, झूला सोने या चांदी के बने गहने, लड़की के कपड़े तथा पौष्टिक खाने की चीजें ,मेवा इत्यादि चीजे लेकर जाते है। सविता के ससुरजी ने बधावा ले आने का दिन रख दिया और दोनों पक्ष अपने स्तर से तैयारी करने लगे। आखिर वो दिन आ ही गया जिसके लिए सबको इंतज़ार था। 


सविता के मायके के लोग उसके घर से एक किलोमीटर दूर ही रुके हुए थे क्योकि वे लोग बैंड -बाजे के साथ आये  थे और नाचते हुए जाना चाहते थे। सड़क पर तीन गाड़ियाँ और कुछ मुट्टीभर लोग पैदल ही नाचते हुए चल पड़े, इस अवसर पर औरतें ज्यादा नाचती है, जबकि पुरुष कम नाचते है। यहाँ भी औरतें  ही ज्यादा नाच रही थी और नाचते-नाचते आगे बढ़ रही थी, अभी तक ये लोग सुनसान रास्तों से जा रहे थे, पर अब गांव की शुरुआत हो रही थी और बाजे की आवाज़ सुनकर महिलाये,बच्चे और आदमी घरों से बाहर निकल कर कौतुहल की नज़र से उनको देख रहे थे। गांव में आकर बाज़ा वाला एक जगह रुक कर बाजा बजाने लगा और औरतें नाचने लगी, गांव के लोग भी उनके नृत्य का आनंद ले रहे थे, तभी कुछ औरतें  नाच को बीच में ही छोड़कर उनके पीछे आ रही गाड़ियों के पीछे चली गयी और कुछ करने लगी, गांव की औरतों को शक हुआ की कुछ दिक्कत हो गयी है क्या?, ये सारी औरतें गाड़ी के पीछे से आ क्यों नहीं रही है? 

उसी गांव की मेवाती और राधिका देखने गयी की क्या हो गया है आखिर बात क्या है ? दोनों गाड़ी के पास पहुंची और वह का दृश्य देखकर उनकी आंखे खुली की खुली रह गयी।  गाड़ी के पीछे  चार-पांच औरतें  शराब की शीशियों  से गिलास में शराब भर रही है और पानी मिलाकर उसे पी रही है। मेवाती और राधिका वहाँ से चली आयी और दूसरी औरतों को बताने लगी। राधिका बोली, औरत जात होके मर्दों की तरह शराब पी रही है, एक बार आदमी होते  है और ऐसे खुले में शराब पीते है तो चल जाता है पर इन सब ने तो हद ही कर दी। 

मेवाती बोली, अरे क्या करेंगी कलयुग है न, इन्हे लाज और शर्म नहीं है सब लाज शर्म  घोल कर शराब के साथ ही पी गयी है। एक बार गांव के बाहर पीकर आती तो कोई जानता भी नहीं पर देखो अपनी इज़्ज़त खुद ही लुटा रही है। 

औरतें  शराब पीकर वापस आयी और नाचने लगी। इस नृत्य का कार्यक्रम सविता के ससुराल तक पहुंचने तक चलता रहा, सविता के ससुराल के सभी लोग बाजे और नृत्य को देखने लगे, घर के बाहर भीड़ लग गयी। सविता की भाभी ने ढेर सारी टाफियां और पैसे लुटाये, छोटे बच्चे टाफियां और पैसे बीनने लगे, सभी लोग बहुत खुश थे।

    

इधर भूख और प्यास के मारे पेट बार बार झपट्टा मार रहा था और गुस्सा भी आ रहा था पर ये लोग कहा मानने वाली थी, शराब का असर पूरे शबाब पर था, जब तक इनका कार्यक्रम चल रहा था तब तक हमें कुछ भी खाने-पीने को नहीं मिल सकता था, क्योंकि सभी लोग उसी नृत्य कार्यक्रम में व्यस्त थे। डेढ़ घंटे के बाद इनका नाचना बंद हुआ और तब जाकर हमें कुछ  खाने पीने को मिल सका। इस बधावा में जाने के बाद मैंने कान पकड़ लिए कि अब किसी बधावा में नहीं जाऊंगा। 

लेखक: भीम सिंह राही 



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