शनिवार, 27 मई 2017

सुरूर से नासूर तक


तू आहिस्ता-आहिस्ता मेरे जीवन का सुरूर बन गया

जब भी देखूँ आईना तो तेरी खुमारी का मुझ पर गुरुर सा लगता था चढ़ गया

यूँ ही चलती रही मैं तो पुराने अरसे की तरह और
पता न चला तू कब मेरी आँखों का नूर बन गया

कहते ना बनती थी तेरी तारीफों की चमक मेरी बातों से
 तू सबकी नजरों का ऐसा बेशकीमती कोहिनूर बन गया

बीत चुके वक्त में तेरी यादों का पुलंदा धूल से लस्त ना होकर स्मृति की गवाही का अचूक और हाजिर जवाबी करने वाला दर्द मेरा, जी हुजूर  बन गया

जिसे बार-बार पढ़ा जाये और एक पल को भी ना भुला पायें मेरी साँसों का कुछ ऐसा ही तू फितूर बन गया

गमों ने बाहों में जकड़ा तो कोई रंज ना मुझको छू गया पर जो छूटा तेरा हाँथ मुझसे तो मेरा वजूद ही मुझसे  मुकर गया और तो और मेरा हर आँसू मेरा ही नासूर बन गया।

Written By Ritika Samadhiya... Please Try To Be A Good Human Being...✍

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