शुक्रवार, 26 मई 2017

अधूरी कहानी - 4: एक लव्य




अक्षर अनाथ आश्रम में आने वाले बच्चों के बारे में हम, इस बारे में ज्यादा सवाल करना उचित नहीं समझते की वो किन परिस्थियों में यहां आया है हम समझते हैं ...... क्योंकि यहां सभी उन्ही परिस्तियों का हिस्सा रहे हैं 

मैं निकेतन अनाथ आश्रम में डॉ था, पढ़ लिख कर वहीँ पर सेवा करना मेरा कर्तव्य था जो मैने निभाया...... डॉ बनने के बाद बहुत सारे मामले आते-जाते रहे,कभी-कभी तो छोटे-छोटे बच्चों को भयानक स्थितियों में आश्रम लाया जाता, उपचार करके उनको वहीं रख लिया जाता .....  कुछ दर्दनाक मौतें और कुछ हंसी के पल जो बाहर की दुनिया पर निर्भर रहते....यही आश्रम की जिंदगी थी... इसी जिंदगी का एक वाकया जो मुझे कई बार बेचैन करता है.....

जब दुनिया ने मुख मोड़ लिया तो फिर से एक नन्ही सी जान को आश्रम लाया गया ......नीले आसमान सी उसकी आँखे चारों तरफ किसी अपने को खोजती पर चारों  तरफ उसे अजनबी ही दिखाई देते जो अपनों जैसा व्यवहार करने की कोशिश में रहते .... मां की थपकी को तो एक अजन्मा बच्चा भी पहचान लेता है, वो भी पहचानता था हर उस इन्सान को जो उसका अपना बनने की कोशिश करता ...पर हमारे प्यार की थपकी उसको जख्मों को तो नहीं भर सकती थी पर शायद आगे बढ़ने का होंसला जरूर दे देती थी। .. .....

एक महीने बाद सार्वजनिक नामकरण समारोह में नाम रखा गया "लव्य" ......  जल्दी ही एक परिवार ने उसे गोद ले लिया। 
श्रीमान और श्रीमती चौहान को बच्चे का सुख दिया लव्य ने....तीनो को प्यार की भूख थी जो अब पूरी हो रही थी 

असल में जिंदगी तभी सुरु होती जब हमारी जरूरतें पूरी होने लगती है ..और लव्य की जिंदगी भी सुरु हो चुकी थी। 
जैसे-जैसे लव्य की हरकतें बढ़ने लगी ..... माता-पिता को लगने लगा की उसे सुनता नहीं है ..... पर वो उसे बच्चा समझकर दरकिनार करते रहे। 

आम बच्चों से अलग, दौड़ते -दौड़ते रुक जाना और फिर इधर-उधर देखना जैसे कोई उसे पुकार रहा है.... 
आसमान में देखता रहता .....जैसे उसे कुछ दिखाई दे रहा हो और फिर डर  के मारे भाग जाना.....घर के किसी कोने में छिप जाना ......उसकी ये हरकतें उसके माता पिता को डराती थी |

स्कूल में वो हमेशा अकेला रहता .....अध्यापकों को हमेशा शिकायत रहती की वो सुनता तो है पर सुनना नहीं चाहता ....इधर-उधर देखता रहता है।
सबको लगता था की वो जान बुझ कर ऐसा करता है, फिर शुरू हुआ उसको सुधारने का दौर, .......उसको मार-पिट कर जबरदस्ती पढ़ने को मजबूर किया जाता ....... ..पर फिर भी वो क्लास में ही ....अचानक बुरी तरह से सहम जाता, ऐसा लगता की उसको कुछ दिखाई देता है जिससे वो डरता है, इसी व्यवहार की वजह से उसका कोई दोस्त नहीं था

उसकी इन हरकतों से परेशान होकर उसको मेरे पास फिर से अनाथ आश्रम लाया गया ..... पर मुझे लगा की ये सब उसके अविकसित दिमाग की वजह से है ......पर वो जिस कदर डरा हुआ रहता उससे लगता था की उसे कुछ समस्या जरूर है, मैंने कुछ उपचार के बाद उसे घर भेज दिया ।
वो जैसे-जैसे ताकतवर होने लगा तो लोगों से झगडा करने लगा....अपनी बात को सही मनवाने के लिए गुस्सा होता पर सबको लगता की वो पागल है .. वो चलते-चलते किसी को धक्का दे देता और फिर कहता की उसकी तरफ कुछ आ रहा था मैंने उसे बचाया है.... सब उसको दरकिनार करते जो उसे सहन नहीं होता ...वो खुद से लड़ने लगा, उसे लगने लगा की वो सबसे अलग है..पर क्यों  .....क्यों कोई उसे समझना नहीं चाहता  । 
कुछ लोग कहते की उसे उसके मरे हुए माता पिता दिखाई देते हैं ...किसी ने उससे पूछने की कोशिश नहीं की, की हो क्या रहा है।
धीरे-धीरे उसकी तबियत खराब रहने लगी ..... फिर एक दिन जब मैंने उससे पूछा
- लव्य, तुम ऐसा व्यवहार क्यों  करते हो
-  मुझे अजीब सी आवाजे सुनाई देती है...मैं नहीं जानता की वो कहाँ से आती है ...मुझे बहुत डर लगता था पर अब मुझे आदत सी हो चुकी है ..फिर भी कभी-कभी अचानक डर जाता हूं ........ 
- कैसी आवाजें.....
- जैसे आसमान में कुछ हो रहा है, मुझे सुनता है, मेरे आस-पास में छोटी-छोटी आवाजे मुझे सुनाई देती हैं , मैं आपको तभी सुन पाता हु जब मैं आपको देख पाता  हूं  ....... भूकंप आने से पहले मैंने सबको बताया था  ..पर किसी ने मेरा विश्वास नहीं किया।
   मुझे सब पागल समझते हैं, कोई विशवास नहीं करता, ...... उसने रोते हुए कहा

फिर मैने उसका दिमागी टेस्ट करवाया तो पता चला की लगातार तेज या परेशान करने वाली आवाजें सुनने से उसके दिमाग का एक हिस्सा खराब हो रहा था, मैं जानता था लव्य किसी मुसीबत में था।
जहाँ तक मेरा अनुमान था , लव्य उन आवाजों को सुन ही नहीं पता था जो आम इंसान सुन पाता है पर वो उन आवाजों को सुन पाता था जो बुहत धीमे या बहुत तेज हो ।
 ...... पर ऐसी कौन सी आवाजें थी जो लगातार उसको परेशान करती थी शायद आसमान में हलचल से होने वाली आवजे जो हम सुन नहीं पाते  या धरती की मैग्नेटिक फील्ड की वजह से उत्पन्न आवाज ..जो भी था ,मैंने उसको बिना कुछ बताये उसका उपचार कराना सुरु कर दिया, उसे आश्रम में ही रखा जाने लगा ..... मैं उस पर सारा दिन निगरानी रखता।

वो हमेशा की तरह अपने सिर को पकडे इधर-उधर घूमता रहता, देखता रहता ......इस दुनिया में उसे समझने वाला कोई नहीं था, शायद इसीलिए आसमान उसकी उम्मीदों का सागर था जैसे वो कह रहा हो

खुद को अकेला न समझ ए आसमाँ 
तेरी हस्ती में मेरी कश्ती है 

 ..शायद ये उसकी काबिलियत थी की वो सुन सकता था शायद हमसे भी ज्यादा,पर जब तक उसे कोई नहीं समझता तब तक उसकी ये काबिलियत उसके लिए समस्या बनी हुई थी,
तेरह साल का होते ही अगले ही दिन उसे ICU में रखा जाने लगा, वहां एक अच्छे डॉ ने बताया की उसको कोई बीमारी नहीं है.... परंतु उसके दिमाग और शरीर की सरंचना ही ऐसी है की वो उन आवाजों को सुन सकता है जो हम नहीं ..... वो हमें बोलते हुए नहीं सुन सकता परंतु हमारे होंठो से उत्पन हलकी आवाज से वो हमें सुनता है इसलिए वो जब हमें नही देख रहा होता तब पता नहीं लगा पता की कौन क्या बोल रह है ।

उसका दिमाग लगभग खराब हो चुका है इसलिए नहीं की उसे लगातार आवाजे सुनाई देती रहती है बल्कि इसलिए क्योंकि वो खुद को अकेला समझता है, मानसिक दबाव और कुछ आवाजों के कारण, वो दुनिया से खुद को अलग समझता है, वो अपनी मानसिक भावनाओं को किसी के साथ बाँट नहीं पाता, शायद उसकी काबिलियत को कभी समझ ही नहीं गया ।
शायद वो आस पास होने वाली घटनाओं के बारे में जानता है और उनसे बचने की कोशिश करता है
एक आम इंसान किसी भी चीज को देखता है या सुनता है और फिर अपने ज्ञान और दिमाग से उसे समझता है और फिर समझाता है, परंतु लव्य अपने दिमाग से सब समझता तो है पर समझा नहीं पाता क्योंकि कोई उस पर विश्वास नहीं करता, ये सब उसी तरह है जैसे कुतों का झुंड मिल कर रो रहा हो, पर उन्हें समझता कौन है

और ये तो हमेशा ही होता आया है की जब किसी की काबिलयत को नहीं समझ जाता तो वो बोझ (burden) बन जाती है, और कुछ दिन बाद लव्य ICU में ही इसी बोझ के निचे दब गया  उसका पागलपन अब उसकी काबिलियत बन चुका था पर अब बहुत देर हो चुकी थी ।

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