रविवार, 21 मई 2017

आईना







कहते हैं आईना झूठ नहीं बोलता,

फिर क्यूँ मेरे दर्द के भेद ये नहीं खोलता।

सुनते हैं हर शिकन को आईना बराबर हैं तोलता,
फिर क्यूँ मेरी झूठी मुस्कान पे इसकी तराजू का पलड़ा भारी होने से स्वंय को रोकता।

मानते हैं खूबसूरत की खूबसूरती और बदसूरत की बदसूरती का सच आईना है बिखेरता,
फिर क्यूँ फरेबी को फरेब और ईमानदार को ईमानदारी का हक दिलवाने पे ये पानी की तरह खुद को नहीं घोलता।


जानते है आईना मूक होकर भी सब कुछ दिखाने को हर घड़ी हैं वाट जोवता (इंतजार करना),
फिर क्यूँ पारदर्शिता में ही अपने जीवन को हैं ये झोंकता, 
क्यूँ नहीं ये अंदरूनी क्रीड़ाओं के राज दुनिया के सामने उगलने को ओदता(आतुर)।


Written By:  Ritika Samadhiya..... Please Try To Be A Good Human Being.........✍

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