जरा हटके - नई कविता
वजह
कोई न कोई तो
वजह होती ही है
जन्म की भी , मृत्यु की भी
और इन दोनों के बीच
जीवन को जीने की भी।
यूँ ही नही जन्मता है कोई
एक पूरा विधान भी जन्मता है
उसके साथ, प्रारब्ध का ।
यही प्रारब्ध चलता है
मृत्यु पर्यन्त तक
जो कहलाता है भाग्य हमारा।
एक पूरा विधान भी जन्मता है
उसके साथ, प्रारब्ध का ।
यही प्रारब्ध चलता है
मृत्यु पर्यन्त तक
जो कहलाता है भाग्य हमारा।
अर्थ कदापि इसका यह नही कि-
जियें केवल भाग्य के सहारे ।
पड़ती है जरूरत इसे भी, कर्म की
जन्म और मृत्यु के अंतराल में।
कर्म और प्रारब्ध मिलकर ही
बनते हैं , वह वजह जो -
ढालती है जीवन को हमारे
सम्पन्नता या दारिद्रय के सांचे में
उपजता है जिससे
सुख और दुख।
बनते हैं , वह वजह जो -
ढालती है जीवन को हमारे
सम्पन्नता या दारिद्रय के सांचे में
उपजता है जिससे
सुख और दुख।
इस वजह को ठीक से यदि
समझ लें तो -
जन्म , मृत्यु और
उसके अंतराल को
दे सकते हैं हम
सार्थक आयाम ।
- देवेंन्द्र सोनी , इटारसी।
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