मंगलवार, 4 जुलाई 2017

वजह


जरा हटके -  नई कविता
वजह
कोई न कोई तो

वजह होती ही है

जन्म की भी , मृत्यु की भी
और इन दोनों के बीच
जीवन को जीने की भी।

यूँ ही नही जन्मता है कोई
एक पूरा विधान भी जन्मता है
उसके साथ, प्रारब्ध का ।
यही प्रारब्ध चलता है
मृत्यु पर्यन्त तक
जो कहलाता है भाग्य हमारा।

अर्थ कदापि इसका यह नही कि-

जियें केवल भाग्य के सहारे ।

पड़ती है जरूरत इसे भी, कर्म की
जन्म और मृत्यु के अंतराल में।

कर्म और प्रारब्ध मिलकर ही
बनते हैं , वह वजह जो -
ढालती है जीवन को हमारे
सम्पन्नता या दारिद्रय के सांचे में
उपजता है जिससे
सुख और दुख।

इस वजह को ठीक से यदि

समझ लें तो -

जन्म , मृत्यु और 
उसके अंतराल को 
दे सकते हैं हम 
सार्थक आयाम ।

    - देवेंन्द्र सोनी , इटारसी।
   

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