सोमवार, 3 जुलाई 2017

घर के मालिक बने किरायेदार


जिस घर की नींव जिन माता पिता ने रखी, अपने खून पसीने की कमाई को पाई पाई जुटाकर उस घर को बनाया, उस घर में उन ईंटों को जोड़ने में जितना मसाला नही लगा उससे कही ज्यादा प्यार भरकर उनमे उन ईंटों को लगाया जिससे की घर मज़बूत बने और उसमें एक भीनी सी खुशबू महक उठे ।
उस घर में अपनापन सा झलक उठे , कुछ इस कदर उन्होंने इस घर को स्वर्ग का रूप दिया....

 उसके बाद हमारा जन्म होता है हम उसी घर में चलना सीखते हैं, गिरते हैं उठते हैं उन्ही दीवारों के सहारे हम चलना सीख जाते हैं और जब बिना सहारे के जब पहला कदम हम रखते हैं तो शायद सबसे ज्यादा ख़ुशी उन्ही को होती है । धीरे धीरे हम बड़े हुए हमारी पढाई पूरी हुई, नौकरी मिल गयी और फिर उन्होंने अपना सबसे बड़ा धर्म निभाया हमारी शादी कर दी, उसके बाद अब वो सोचते हैं कि अब हम अपने कर्तव्यों से फुर्सत हो गए ।
धीरे धीरे घर में हमारा वर्चस्व होने लगा, वो माता पिता जो हमारे सब कुछ थे आज वो हमें खटकने लगे हैं । अब हम अपना एकांतपन खोजते हैं, वो भी बेचारे सोचते हैं कि चलो अब हमारा वक्त गया अब इनको जीने दो और फिर वो उस घर में एक किरायेदार की तरह रहने लगते हैं , उदासी महसूस करने लगते हैं । 
घर में कोई भी आता है वो उन्हें न पूछकर उस नयी नवेली दुल्हन को पूछता है और हुक्म भी उसी के मायने रखते हैं..धीरे धीरे उन्हें घुटन सी महसूस होने लगती है उसी घर में जिस घर को उन्होंने खुद प्यार से बनाया था...मैं पूछता हूं आखिर हम क्यों उन्हें नजरअंदाज करने लगते हैं..भले ही उन्होंने अपना हक हमे दे दिया हो मगर एक बार पूछने में क्या हर्ज है ,सही या गलत का फैसला उनसे बेहतर कोई नही ले सकता, मगर फिर भी हम उन्हें कुछ नही समझते...अंत में मैं केवल यही पूछता हु क्या इसी दिन के लिए उन्होंने ये घर सब कुछ बनाया था..??


- CHAMAN SINGH

                                 

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