शुक्रवार, 7 जुलाई 2017

को ओर की (एक सच)


अजय सिंह ताज.... 7837304195

 कुछ गहरी बातें लिख रहा हूं / (को  ओर की )

 मां को तो सभी मानते हैं ,पर मां की नहीं मानता कोई /बाप को सभी मानते हैं ,पर बाप की नहीं मानते /भाई को सभी मानते हैं ,पर भाई की नहीं मानते /गुरु को तो सभी मानते हैं ,पर गुरु की कोई नहीं मानता /

 यह मेरी बातें कुछ ही लोग समझ रहे होंगे ,जो समझ गए वह समझ कर भी अगर अनजान बने रंहे तो फायदा नहीं कोई / 
 को और की यह लफ़ज  तो बहुत छोटे से हैं ,लेकिन गहराई बहुत ज्यादा है इन लफ्जों में /

 जिंदगी में अगर आप जिसको भी मानते हो अगर उसकी भी मानो तो कभी कोइ परेशानी में नहीं रहोगे / तब आपका रब भी साथ देगा /एक सच्चे इंसान को तो मान लेते हो आप लेकिन उस सच्चे रब जैसे इंसान की बातों को अगर ना मानो तो फायदा नहीं उस इंसान की इज्जत करके .......

जिसका भी आदर करते हो आप सब ,अगर उनकी बातें भी मानो जो सहीं हैं ,तो मजा आ जाएगा उनको इज्जत देने का,उनका आदर करने में /

 अगर पिता को मानते हो तो ,पिता की बातों को भी मानो /अगर मां को मानते हो तो मां की बातों को भी मानो / अगर किसी गुरु को मानते हो तो गुरु की दी हुई शिक्षा को भी मानो ,गुरु के दिए हुए ज्ञान को भी  समझो , अमल करो /

अब समझ लग गई होगी आप सबको.... को और कि क्या है /

मेरे लिखे हुए सभी लेख को तो मानते हो, वाह वाह भी करते हो लेकिन अगर उन लेख की गहराई में जाकर समझो अमल करो तो बात फिर बनेगी /

बाकि सब की इज्ज़त करो / सब का कहना मानो /बड़ों की इज्जत करो /मां बाप का कहना मानो/ रोजाना एक अच्छा काम करो /तब देखना रब आपकी कैसे सुनता है /

बाकि ये दो लफ़ज (को और की )को हमेशा याद रखो ,
बस अच्छे कामों के लिए /

धन्यवाद/

बाकि हर बार की तरह एक कहानी....... 

एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ नदी में स्नान कर रहे थे | तभी एक राहगीर वंहा से गुजरा तो महात्मा को नदी में नहाते देख वो उनसे कुछ पूछने के लिए रुक गया | वो संत से पूछने लगा ” महात्मन एक बात बताईये कि यंहा रहने वाले लोग कैसे है क्योंकि मैं अभी अभी इस जगह पर आया हूँ और नया होने के कारण मुझे इस जगह को कोई विशेष जानकारी नहीं है |”

इस पर महात्मा ने उस व्यक्ति से कहा कि ” भाई में तुम्हारे सवाल का जवाब बाद में दूंगा पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम जिस जगह से आये वो वंहा के लोग कैसे है ?” इस पर उस आदमी ने कहा “उनके बारे में क्या कहूँ महाराज वंहा तो एक से एक कपटी और दुष्ट लोग रहते है इसलिए तो उन्हें छोड़कर यंहा बसेरा करने के लिए आया हूँ |”  महात्मा ने जवाब दिया बंधू ” तुम्हे इस गाँव में भी वेसे ही लोग मिलेंगे कपटी दुष्ट और बुरे |”  वह आदमी आगे बढ़ गया |

थोड़ी देर बाद एक और राहगीर उसी मार्ग से गुजरता है और महात्मा से प्रणाम करने के बाद कहता है ” महात्मा जी मैं इस गाँव में नया हूँ और परदेश से आया हूँ और इस ग्राम में बसने की इच्छा रखता हूँ लेकिन मुझे यंहा की कोई खास जानकारी नहीं है इसलिए आप मुझे बता सकते है ये जगह कैसे है और यंहा रहने वाले लोग कैसे है ?”

महात्मा ने इस पर फिर वही प्रश्न किया और उनसे कहा कि ” मैं तुम्हारे सवाल का जवाब तो दूंगा लेकिन बाद में पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम पीछे से जिस देश से भी आये हो वंहा रहने वाले लोग कैसे है ??”

उस व्यक्ति ने महात्मा से कहा ” गुरूजी जन्हा से मैं आया हूँ वंहा भी सभ्य सुलझे हुए और नेकदिल इन्सान रहते है मेरा वंहा से कंही और जाने का कोई मन नहीं था लेकिन व्यापार के सिलसिले में इस और आया हूँ और यंहा की आबोहवा भी मुझे भा गयी है इसलिए मेने आपसे ये सवाल पूछा था |” इस पर महात्मा ने उसे कहा बंधू ” तुम्हे यंहा भी नेकदिल और भले इन्सान मिलेंगे |”  वह राहगीर भी उन्हें प्रणाम करके आगे बढ़ गया |

शिष्य ये सब देख रहे थे तो उन्होंने ने उस राहगीर के जाते ही पूछा गुरूजी ये क्या अपने दोनों राहगीरों को अलग अलग जवाब दिए हमे कुछ भी समझ नहीं आया | इस पर मुस्कुराकर महात्मा बोले वत्स आमतौर पर हम आपने आस पास की चीजों को जैसे देखते है वैसे वो होती नहीं है इसलिए हम अपने अनुसार अपनी दृष्टि  से चीजों को देखते है और ठीक उसी तरह जैसे हम है | अगर हम अच्छाई देखना चाहें तो हमे अच्छे लोग मिल जायेंगे और अगर हम बुराई देखना चाहें तो हमे बुरे लोग ही मिलेंगे | सब देखने के नजरिये  पर निर्भर करता है ।

धन्यवाद.... 

लेखक... 
अजय सिंह ताज 
7837304195


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