गुरुवार, 6 जुलाई 2017

जात

एक औरत सिर्फ़ एक औरत होती है
ना वो हिन्दू होती है, ना वो मुस्लिम होती है
ना वो सिख होती है, ना वो ईसाई होती है


जब वो चोट खाती है अपनी छाती पर
तब वो चोट जात पर नहीं, औरत की छाती पर लगती है
होता है दर्द एक सा, सभी औरतों का
सिसकती है सभी एक ही तरह
उसमे कोई रंग नहीं होता सियासत का

बच्चा जनने वाली एक औरत ही होती है
जो बनती है औरत से माँ
गुज़रते दर्द को सह कर एक इंसान का बच्चा जनती है
निःशब्द देखती रहती है तब भी
जब बच्चा रंग दिया जाता है
मज़हब और सियासत के रंग में

उसकी कोई जात नहीं होती
उसे बाँट दिया जाता है कई टुकड़ो में,
वो बंटती चली आ रही है सदियों से
और बंटती चली जायेगी अनंत तक
कभी हिन्दू बन कर, कभी मुस्लिम बन कर,
कभी सिख बन कर, तो कभी ईसाई बन कर

सिर मुंडवाने, दूजे घर बैठाने, चिता में जलाने,
तीन तलाकों से जो गुजरती है
वो भी औरत ही होती है
कोठो पर जो बिकती है वो भी औरत ही होती है
बलात्कार का दंश जो सहती है वो औरत ही होती है

इस रंग बदलती दुनिया में,

एक औरत सहती है, मरती है, रहती है,
बनती है और बिगड़ती है
जब एक मर्द अत्याचारी होता है
तो वो मात्रा अत्याचार का चेहरा होता है
ना वो हिन्दू होता है, ना वो मुस्लिम होता है
ना वो सिख होता है, ना वो ईसाई होता है
तब एक मर्द केवल एक मर्द होता है.........
और एक औरत केवल एक औरत होती है..........
...



#Geetanjali


                              

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