जरा हटके - नई कविता
सुख
इतना आसान भी नहीं है
जीवन में सुखी होना !
क्या होता है सुख -
इसे जानते भी हैं हम ?
उचित - अनुचित को अनदेखा करके
कमाते हैं धन -दौलत और
जुटाते रहते हैं जीवन भर
सुविधाओं का सामान ।
कमाते हैं धन -दौलत और
जुटाते रहते हैं जीवन भर
सुविधाओं का सामान ।
हो जाते हैं विलासिता के आदी
देकर इसे सुख का नाम !
माना , सुकून देता है यह सब
पर छिन जाती है इससे
संघर्ष की प्रवृत्ति हमारी।
पर छिन जाती है इससे
संघर्ष की प्रवृत्ति हमारी।
राह भटकती है पौध नई जब
सुविधाएं पाकर सारी ।
मन रहता बेचैन सदा फिर
लगती हैं सुविधाएं भारी ।
नहीं कहता मैं -
हों न सुविधाएं पास हमारे
पर जरूरी है यह भी
नई पौध में खाद संघर्ष की डालें ,
महकते हुए होंगे फलित जब वे
होगा सुख , फिर सच्चा वही ।
होता है सिर्फ - सुख यही।
हों न सुविधाएं पास हमारे
पर जरूरी है यह भी
नई पौध में खाद संघर्ष की डालें ,
महकते हुए होंगे फलित जब वे
होगा सुख , फिर सच्चा वही ।
होता है सिर्फ - सुख यही।
- देवेंन्द्र सोनी ,
प्रधान संपादक, युवप्रवर्तक
इटारसी।
More By देवेंन्द्र सोनी : नई कविता , पिता का संदेश ,फादर्स डे पर, बचपन के वो पल सुहाने , आईना , किसान , वर्षा की फुहार , भोर , हैं समान दोनों ही , वह स्वाद , लायक
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