सोमवार, 3 जुलाई 2017

सुख

जरा हटके - नई कविता
सुख

इतना आसान भी नहीं है

जीवन में सुखी होना !

क्या होता है सुख - 
इसे जानते भी हैं हम ?

उचित - अनुचित को अनदेखा करके
कमाते हैं धन -दौलत और
जुटाते रहते हैं जीवन भर
सुविधाओं का सामान ।
हो जाते हैं विलासिता के आदी

देकर इसे सुख का नाम !

माना , सुकून देता है यह सब
पर छिन जाती है इससे
संघर्ष की प्रवृत्ति हमारी।
राह भटकती है पौध नई जब

सुविधाएं पाकर सारी ।

मन रहता बेचैन सदा फिर
लगती हैं सुविधाएं भारी ।

नहीं कहता मैं -
हों न सुविधाएं पास हमारे
पर जरूरी है यह भी
नई पौध में खाद संघर्ष की डालें ,
महकते हुए होंगे फलित जब वे
होगा सुख , फिर सच्चा वही ।
होता है सिर्फ - सुख यही।
            - देवेंन्द्र सोनी , 
प्रधान संपादक, युवप्रवर्तक
इटारसी।

                          

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