आँकड़ों के अनुसार हमारी आने वाली पीढ़ियाँ टाइगर को नहीं देख पाएगी परन्तु इतना तो निश्चित ही है की आने वाली पीढ़ियाँ गौ माता को ज़रूर देख पाएँगी, वो भी एक नये रूप मे ,पहले के जमाने मे लगभग हर घर मे गाय होती थी, "आवारा गाय" शब्द की उत्पति तो अभी-अभी हुई है जब से गौ रक्षक पैदा हुए है।
हमारी आने वाली पीढ़ी गाय को देख पायेगी, ऐसा सिर्फ अनुमान ही नहीं, बल्कि निश्चित है, पर रूप नया होगा , पहले हर घर में थी अब हर रोड, बस स्टैंड, रेलवे और शायद किसी घर में भी एक पत्थर की मूर्ति के रूम में ।
दिल्ली में रहते हुए घर से दूर स्टैंड तक रोज आना जाना रहता, आज से 6 दिन पहले की ही बात है, मैं स्टैंड से घर वापिस आ रहा था की, अचानक एक बाइक सवार तेजी से निकला और सामने आ रही गौ माता के चरणों में खुद को समर्पित कर दिया। सब लोग उसकी तरफ भागे, हाथों-हाथ लड़के को अस्पताल पहुँचाया गया, मैं सोच ही रहा था की खून से सनी गाय का क्या होगा ....तभी कोई 20-22 साल की उम्र के 5 लड़के, हाथों में बैग लिए, एकदम हीरो की तरह एंट्री करते हुए भीड़ में घुसे, माहौल एकदम गर्म था, हर कोई उन लड़कों की तरफ ताक रहा था, उनकी नीले रंग की शर्ट पर बिना पूछे ही उनका नाम और विवरण लिखा हुआ था। "गौ पुत्र सेना" . जब तक गौ पुत्र सेना ने दवाई पट्टी की तब तक भीड़ जमी रही, कोई आस-पास से कुछ चारा खरीद लाया तो कोई गुड़, सब अपने हाथों से खिलाकर सेवा के भागीदार बनना चाहते थे। लगभग 15 मिनट बाद गौ पुत्र सेना वहां से चली गयी और भीड़ कम होने लगी, मैंने भी चलना उचित समझा। .....
बाकि रास्ते मैं गौ पुत्र सेना के बारे में सोचता रहा, वो मेरे लिए हीरो थे, इतनी जल्दी तो एम्बुलेंस भी नहीं आती जितनी जल्दी गौ पुत्र सेना पहुँच गयी थी। मैं सोच रहा था.....
इनको तो सम्मान मिलना चाहिए ........ हादसा नया-नया था, सो विचार दिमाग से निकल नहीं रहा था, फिर धीरे धीरे मैं उस हादसे को भूल सा गया।
फिर कुछ दिन वो याद भी नहीं आया क्योंकि जहां ये हादसा हुआ था वहां वो गाय मुझे दोबारा दिखाई नहीं दी।
आज फिर घर जाने के लिए स्टैंड से निकला तो एक कोने में नजर पड़ी, वहां पहुंचा तो वो हादसा फिर से उस गाय को वहीँ देख याद आया।
कूड़े और पॉलिथीन के ढेर के ऊपर बैठी गऊ माता, मुँह में एक पॉलीथिन को चबा रही थी।
वही गऊ माता जिसके पुण्य का भागीदार हर कोई बनना चाहता था वो इतनी तेज धुप में एक कोने में बैठी हांफ रही थी, पाँव और गर्दन पर बंधी वही पट्टी उन गहरे घाव पर मरहम का काम कर रही थी। बहुत ही कमजोर हालत में, शायद वो चलने में असमर्थ थी, मुझे नहीं लग रहा था की उस हादसे के बाद उसकी कोई देखभाल की गयी होगी।
मुझे ये सब देख कर बहुत अजीब सा लगा, कल तक जिस पुण्य का हर कोई भागीदार बनना चाहता था आज वो पॉलिथीन खा रही है, उसकी एक खरोंच पर पूरी सेना हाजिर थी और अब...... |
इस स्थिति ने मुझे झिझकोर कर रख दिया। मुझे समझ नहीं आ रहा था की हम किस मानसिकता में जी रहे हैं, अगर कोई गऊ के बारे में कुछ भी बोल दे तो हम उसकी जान लेने से भी नहीं डरते परन्तु जिसके लिए ऐसा कर रहे हैं वो कूड़े के ढेर, सड़कों पर, बाजार में .... .... क्या एक पूजनीय को ये सब सोभा देता है।
क्या हमें ये सोभा देता है की जिसको हम पूजनीय कह रहे हैं उसको कोई घर में बांधने को तैयार नहीं है हर कोइ सिर्फ उसके बारे में बात करना चाहता है, हर कोई पुण्य का भागीदार बनना चाहता है, पर अपने घर कोई पालना नहीं चाहता। .....ऐसा इसलिए क्योंकि हम उसके हमदर्द होने का दिखावा कर रहे हैं।
एक लेखक के मन में स्व्भविक सा सवाल उठा की....
हम गऊ को माता कह कर उसका आदर क्यों करते हैं ?
हिन्दू धर्म की खास बात यह है की, अगर कोई बिना किसी अपेक्षा, भेदभाव के आपको कुछ प्रदान कर रहा है उसका बहुत सम्मान किया जाता है, जिसको हम पूजा करना भी कहते हैं लाखों वर्षों से गाय हमारे परिवार का हिस्सा रही है, पीने को दूध, खेती के लिए बैल, गोबर से उपले बनाये। शायद इसीलिए हम गाय की पूजा करते हैं, पहले के जमाने में एक दूसरे को गाय भेंट की जाती थी
अब सवाल ये था की अगर गाय इतनी पवित्र है तो वो सड़कों पर क्यों घूम रही है?
..सवाल सीधा ही था की अब जरूरत खत्म हो चुकी थी, लोग तो अपने माँ बाप क लिए भी वृद्धाश्रम ढूंढ लेते हैं।
जैसे जैसे सवालों के जवाब मिलते गए सवाल बढ़ते गए, अब सवाल ये था की
अब जब लोगों की गाय की जरुरत ही नहीं रही तो क्यों इसको बचाना चाहते है ? दुनिया में और भी जानवर है।
.......जवाब था धार्मिकता व मान्यता, जिस गाय ने सदियों तक साथ दिया, दूध पिलाया उसका साथ ऐसे कैसे छोड़ दें, इसलिए हम आज भी उसकी पूजा करते है ........ कहने को तो हम पूजा ही करते हैं, पर वास्तव में हम दिखावा कर रहे हैं।
क्या सिर्फ सुबह श्याम रोटी खिलाने से उसका कर्ज उतर जायेगा ?
क्या घर में न पालकर सड़कों पर खरोंच आने से बचाकर हमें पुण्य मिल जायेगा ?
........ सच तो ये है की हम दोहरी मानसिकता के शिकार हो चुके हैं, हम न तो गऊ को घर में पालना चाहते हैं और न ही आवारा घूमते हुए उसे कोई खरोंच देखना चाहते हैं, ये ऐसा है जैसे किसी माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ आना और फिर रोज फ़ोन पर बात करना, और हप्ते में एक दिन खूब सारे फल लेकर मिलने जाना।
मैंने सवालों को जवाब जानने के लिए उस सेना के एक लड़के को ढूंढा जो इस बार मेरे पास बिना उस विवरण के साथ मेरे सामने था, मैंने उससे कुछ सवाल पूछे
तुम्हारी सेना में कितने सदस्य हैं।
- लगभग 200
- उनमे से कितने तुम्हारे साथ काम करते हैं।
- जयादा नहीं बस कोई 20-30 , बाकी सब अपने काम में व्यस्त हैं।
- तुम्हारा खर्च कहां से आता है।
- यहीं के कुछ अमीर लोग देते हैं, वो हमारे साथ नहीं आ सकते इसलिए पैसे दे देते हैं।
ओके, अब सवाल ये है की .....
- गाय पवित्र है, तो उसे सड़कों पर आवारा पशुओं की तरह छोड़ कर उसकी रक्षा करना ,क्या यही स्थाई समाधान है
- समाधान तो नहीं है, पर क्या करें, कोई पालना नहीं चाहता
- अच्छा, आप तो गौ सेवक है, आपके घर में कितनी गाय हैं
- मेरे पास तो एक भी नहीं .....
- तो फिर ये गौ रक्षक ........ किसलिए
- गाय हमारे लिए पवित्र है, इसीलिए हम उसकी रक्षा करते हैं।
- शायद इसीलिए वो सड़कों पर घूमती है, जब जरूर खत्म हो जाने पर लोगों ने उसे घर से बाहर निकाल दिया, अब सड़कों पर उसकी रक्षा करके क्या दिखाना चाहते हैं हम ।
- तो क्या उसे ऐसे ही मरने के लिए छोड़ दे।
- वो तो छोड़ चुके हैं हम .........सुबह-श्याम पुण्य के लालची ढूंढ-ढूंढ कर रोटी खिलाते हैं और दिन में .....वो पॉलिथीन खाती है।
उसका कोई भी जवाब न देना सव्भाविक था, मैंने उसे और सर्मिन्दा न कर जाने दिया।
बस मैं अब ये जान गया था, की लोगों में भावनाये तो है पर अब जरूरत नहीं रही तो मतलब साध रहे हैं, जब दिखाई दी थोड़ा पुण्य प्राप्त कर लिया।
सच तो ये है की हमने खुद, जरूरत न होने पर उसे घर से बाहर निकल दिया और जब कोई दूसरा इस बारे में बात करे तो हमारे धर्म को ठेस पहुंच जाती है, अपनी गलतियों को छिपाने के लिए हम किसी की जान भी लेते हैं, अगर कोई मरने-काटने की बात करे तो हम खून के प्यासे हो जाते हैं।
मैं ये दावा कर सकता हूं की, अगर सिर्फ गौ प्रेमी, गौ रक्षक और नेता जो लोगों की भावनाओं का फायदा उठाना बखूबी जानते हैं ..... अपने घरों में एक-एक गाय पाल ले तो सड़कों पर एक भी गाय नहीं दिखाई देगी।
कुछ लोगों को तो इस बारे में बात करने में भी मजा आने लगा है, अपने आपको बड़ा गौ हितैसी साबित करने में .... यहां तक की लोग समर्थन करके अपने आप को गौ रक्षक समझते हैं।
पर समस्या यह है की हम सिर्फ बात करना चाहते हैं, गाय के लिए लड़ना चाहते हैं , गाय के लिए मरना चाहते हैं बस पालना नहीं चाहते।
बस यही देख कर मुझे लगता है आने वाली पीढियां गाय को जरूर देख पाएंगी, सड़कों पर, गलियों में, कूड़े के ढेरों पर, और शायद किसी घर में एक पत्थर की मूर्ति के रूप में, पर दिखाई जरूर देगी।
( कमेंट में , कृप्या सोच विचार कर ही अपने विचार सामने रखें )
हिंदी लेखक
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