काश वो पल अपना सा होता
जिसमे सबकुछ सपना सा होता
जीते अपनी ज़िन्दगी यूँ खुलकर
मानो परिंदा उड़ रहा होता।
खुले आसमान पर बिचरण कर रहा होता
न होता किसी बात का चिंतन
न होता कोई रिश्तों का बंधन
हस्ते खेलते बाते करके
दिल की बातें सबसे करते
यूँ होते मस्त मलंग ज़िन्दगी में
नही होता कोई बोझ और चिंता
इन बोझ के भार कम
हो जाता अगर
काश वो पल अपना होता....
नही होता कोई अंतर हममें
बस होते रिश्ते रूह के जो
रूह से रूह तक चलते
रूह से रूह तक में
खत्म हो जाते
न होती कोई उन
रिश्तों की परिभाषा
वो तो बस एहसास
बनकर रह जाते
इन रिश्तों को एक नयी
परिभाषा देने के लिए
काश वो पल हमारा होता...
नहीं होता कोई रंग में भेद
नही होता कोई भावों में भेद
दिल से दिल तक
जाते हर लफ्ज़
न ज़रुरत होती किसी भाषा की
इशारे ही काफी होते
लफ़्ज़ों के लिए
इन इशारों को एक नया
मुकाम मिल जाता अगर
काश वो पल हमारा होता..!!
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