- देवेंद्र सोनी, इटारसी
नई कविता- बेटी
बेटी
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बेटी
कल भी थीं
आज भी हो
आगे भी रहोगी
तुम पिता का नाज।
बीता बचपन
आई जवानी
छूटा वह घर
जिस पर था
तुम्हारा ही राज।
कल भी था
आज भी है
आगे भी रहेगा
तुम्हारा ही यह घर ।
पर अब
हो गया है एक
नैसर्गिक फर्क
मिल गया है तुम्हे
एक और घर
जहां पिया संग
बसाओगी तुम अपना
मुकम्मल जहां
पर यह होगा तभी
जब भूलोगी तुम
अपने बाबुल का घर।
जानता हूँ यह
हो न सकेगा तुमसे
पर भूलना ही होगा तुम्हे
बसाने को अपना घर।
यही नियम है प्रकृति का
नारी जीवन के लिये।
जब छूटता है अपना कोई
तब ही पाती है वह जीवन नया ।
तब ही मिलती है पूरी समझ
आती है तभी चैतन्यता,
होता है जिम्मेदारी का अहसास।
बनता है तब एक नया घरौंदा
जहां मिलता है आत्म संतोष
मिलती है नारित्व को पूर्णता।
और फिर जन्म लेता है
आने वाला कल
जिसके लिये
तुम्हारा जन्म
हुआ है
मेरी बेटी।
- देवेंद्र सोनी, इटारसी
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