दो कदम तुम चलो
दो कदम हम चले
शिकवे दूर हो ना हो
आओ फिर से हम मीले गले।
कोई नही है सम्पूर्ण जग में
इस बात को दिल मे धरे
भूल कर एक दूजे के दोष
आओ फिर से हम मीले गले।
कुछ मैं , कुछ तुम अपनी कहो
किसी बात पे रूठे किसी पे लडे
पर प्यार के क्षितिज पे खड़े हो
आओ फिर से हम मीले गले।
जरूरी है उल्फत में झगड़े भी
रूठना मनाना औऱ लफड़े भी
चलो भूल सब प्यार बढ़ाये
आओ फिर से हम गले मिल जाये।
ऐसा है अब नखरे ना दिखा
मुँह को इस तरह न बना
सब भूल आया पास तेरे
बांहे फैला और गले लगा
आ, आओ ना, मेरे क़रीब आ।
।।प्रदीप सुमनाक्षर।।
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