मंगलवार, 27 जून 2017

....मैं फिर अकेला रह गया....

 
जिंदगी की राह में यादों का मेला रह गया
कल भी था अकेला, मैं आज फिर अकेला रह गया। 

अपनी अहमियत कुछ लोगो को बतलाने में रह गया
कुछ नए चहरों को लुभाने मैं रह गया...

कल जाने क्या-क्या मैं अपने दोस्तो से कह गया
मेरे गम का बादल भी यूँ मुझमे सिमट कर रह गया..

जिंदगी की राह में यादो का मेला रह गया
कल भी था अकेला, मैं आज फिर अकेला रह गया

मन मेरा था जो समंदर की लहरों सा तैरता 
वो अब वीराना रेगिस्तान बन कर रह गया...

एक तख्त था जिसपर मैं बैठकर इस जहान को देखता
अब तो बस उस तख्त का गुलाम बन कर रह गया...

कहा था किसी अपने से क्या साथ देगा तू मेरा
वो हमसफ़र भी मुझसे अलविदा कह गया...

जिंदगी की राह में यादो का मेला रह गया
कल भी था अकेला, मैं आज फिर अकेला रह गया
.. मैं फिर अकेला रह गया...

                   संतोष कुमार
(प्रजापति) 
Read More by संतोष कुमार:तेरे पास भी तो है , हवा... एक सीख..
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