बुधवार, 21 जून 2017

अजीब-ओ-गरीब मेरे सपने थे

अजीब-ओ-गरीब मेरे सपने थे
तुम्हें गले लगाकर रोने के सपने थे
तुमसे बातें करने के सपने थे
तुम्हारे हाँथ को हाँथ में लेकर मीलों दूर साथ चलने के सपने थे। 


तुम्हें जी भर कर निहारने के सपने थे
तुम्हारे कंधे पे सिर रखकर सुकून से झपकी लेने के सपने थे
तुम्हें पागलों सा प्यार करने के सपने थे
तुम्हें तुम कितने दिल के करीब हो जताने के सपने थे। 


तुम्हें रूह की रूह में समाने के सपने थे
तुम्हारे लिये बेहद दर्द सहने के सपने थे 
तुम्हारी आँखों में खुद को पाने के सपने थे
तुम्हें सिर पे बिठाने के सपने थे। 


तुम्हारे बिन रूठे तुम्हें मनाने के सपने थे
तुम्हारे आगे पीछे घूमती रहूँ,तुम्हारी एक बोली पर हाजिर हो जाने के सपने थे
तुम्हारी मुस्कुराहट के लिये दिन रात एक  करने के सपने थे
तुम्हारी बातों को पत्थर की लकीर बना देने के सपने थे। 


तुम्हें दिल,रूह,सांस इस आत्मा का ही नहीं  इस जहां के शंहशाह के रूप में देखने के सपने थे
तुम्हारे दिए दर्द को तुम्हारे सीने से लिपटकर हल्का करने के सपने थे
तुम पर जी,जवानी,जान कुर्वान करने के सपने थे
तुम्हें बनाकर खुद को मिटा देने के सपने थे। 


तुम ही चारों धाम,तुम ही ईश्वर तुम ही परमेश्वर के समान बस तुम्हारी पूजा करने के सपने थे
तुम्हारे लिये एक नहीं आने वाले हजारों जन्म में इन्हीं सपनों को पूरे करने के सपने थे
बस यही कुछ सपने थे
शायद बहुत महंगे मेरे सपने थे ।


Written By Ritika {Preeti} samadhiya.... Please Try To Be A Good Human Being.....✍



Hit Like If You Like The Post.....


Share On Google.....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

your Comment will encourage us......

ब्लॉग आर्काइव

Popular Posts