जरा हटके - नई कविता
जिंदगी में अक्सर हम
बिना कुछ सोचे - समझे
छोड़ देते हैं अपना ठिया
किसी सहारे के बल पर ।
लेकिन जब ये सहारे
निकलते हैं अंदर से
बलहीन और खोखले , तो -
दोराहे पर होते हैं हम ।
खुलती है जब तक
आँख हमारी
खा चुके होते हैं हम धोखा
और खो चुके होतें हैं
गिरकर , सम्हलने का मौका ।
बिखरना ही फिर -
बन जाता है नियति ।
इसलिए छोड़ने से पहले
अपना ठिया
परख जरूर लें -
मिल रहे सहारे को , कि -
बनाएंगे ये हमको सशक्त
या कर देंगे निःशक्त ?
- देवेंन्द्र सोनी , इटारसी
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