शुक्रवार, 23 मार्च 2018

सहारे

जरा हटके - नई कविता 

जिंदगी में अक्सर हम 
बिना कुछ सोचे - समझे
छोड़ देते हैं अपना ठिया 
किसी सहारे के बल पर ।

लेकिन जब ये सहारे 
निकलते हैं अंदर से 
बलहीन और खोखले , तो -
दोराहे पर होते हैं हम ।

खुलती है जब तक
आँख हमारी 
खा चुके होते हैं हम धोखा
और खो चुके होतें हैं 
गिरकर , सम्हलने का मौका

बिखरना ही फिर -
बन जाता है नियति ।

इसलिए छोड़ने से पहले
अपना ठिया 
परख जरूर लें - 
मिल रहे सहारे को , कि - 
बनाएंगे ये हमको सशक्त 
या कर देंगे निःशक्त ?

      - देवेंन्द्र सोनी , इटारसी


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