घर के काम काज से निपट कर सुनीता थोड़ा आराम करने के लिए लेटी ही थी कि तभी उसके मोबाइल की घन्टी बजी । सुनीता ने फोन उठाकर देखा तो उसकी सहेली रमा का फोन था ।
रमा ने बताया अगले सप्ताह साहित्यकारों का तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय आयोजन मुंबई में हो रहा है। अभी - अभी उसका आमंत्रण आया है । लिस्ट में तेरा भी नाम है। आने - जाने का सारा खर्च संस्था ही उठायेगी और मानदेय भी देगी ।
मैं तो जा रही हूँ। तू भी चलने की तैयारी कर ले । चलेगी न ...।
रमा की बात सुनकर , सुनीता निराश हो गई । बुझे मन से बोली - अरे सुनीता । मैं भला कैसे जा सकती हूँ । आज तक कभी स्थानीय आयोजनो के अलावा कहीँ गई नही । एक - दो बार शहर से बाहर गई भी तो सुशील साथ ही गए थे । अब तीन दिन के लिए भला सुशील मेरे साथ कैसे जा सकते हैं । उन्हें छुट्टी ही नही मिलेगी । फिर घर कौन संभालेगा ।
अरे यार रमा । तू भी कैसी बात करती है । मैं भी तो अकेली जा रही हूँ । मुझे तो मेरे पति कभी मना नही करते । आने जाने से ही सम्पर्क बनते हैं ।
जब इतना अच्छा लिखती हो तो अवसर का लाभ उठाना चाहिए । सफर में हम अकेले ही थोड़ी होंगे । यहां से और भी परिचित मित्र जा रहे हैं । सब मिलकर चलेंगे । चल ...कल तक बता देना । मुझे स्वीकृति की लिस्ट भेजना है ताकि संस्था रिजर्वेशन करवा सके। ये कहकर सुनीता ने फोन काट दिया ।
इधर , रमा अपने कमजोर आत्मबल के कासर्न दुविधा में पड़ गई । वह इतना बड़ा अवसर खोना भी नही चाहती थी पर करे तो क्या करे । सुशील तो साथ जा नही पाएंगे । फिर तीन दिन का आयोजन है । सुनीता साथ जरूर रहेगी पर वह तो पुरुष मित्रों से भी जरा में घुल - मिल जाती है। मुझे तो ये सब पसंद ही नही । सबके साथ रहकर भी मैं किसी से हंस बोल नहीं पाऊँगी। सब मेरा मजाक उड़ाएंगे । शाम को सुशील को बताकर मना ही कर दूंगी । कौन इस पचड़े में पड़े ।
बिस्तर पर लेटे लेटे रमा यही सब सोच कर हताश हो गई । वह जाना तो चाहती थी पर उसमें इतना आत्मबल नही था कि वह सुशील को छोड़कर अकेली चली जाए।
शाम को सुशील के लौटने पर रमा ने जब सुनीता के के फोन की जानकारी दी तो सुशील चहक उठा । उसने कहा - तुम्हें जरूर जाना चाहिए रमा। ऐसे अवसर बार - बार नही आते । मेरे नहीं चल पाने से क्या तुम अपनी प्रतिभा का गला घोंटोगी । सुनीता साथ है तो । रही पुरुष मित्रों के साथ जाने की बात तो उसमें हर्ज क्या है। आज सब जगह स्त्री - पुरुष को बराबरी का स्थान मिलता है । तुम्हें अपने संकोची स्वभाव में परिवर्तन लाना होगा । यही संकोच तुम्हारा आत्मबल कमजोर करता है। इससे निकलना ही चाहिए। जब मुझे तुम पर भरोसा है तो फिर चिंता किस बात की । हर जगह तो मैं साथ जा नही सकता । कब तक मेरे लिए रुकी रहोगी। अपने आत्मबल को जगाओ । हिम्मती बनो और सफर की तैयारी करो ।
और हां ... पुरुष मित्र भी तब तक गलत आचरण नही करते जब तक महिला कमजोर न पड़े। अपने दायरे में सबसे मिलो जुलो । इसी से तुम्हारा मनोबल बढ़ेगा और तुम अपने लक्ष्य को पा सकोगी।
सुशील की सकारात्मक बातों ने रमा को हिम्मत दी । उसे लगा जैसे उसमें नई ऊर्जा का संचार हुआ हो। वह मुस्कुराते हुए उठी और सुनीता का नंबर डायल करने लगी ।
- देवेन्द्र सोनी , इटारसी ।
9111460478
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