शुक्रवार, 9 मार्च 2018

ज्ञानी चोर और महकदे


अपनी मंडली के साथ नाच -गाने में मस्त चोरों के सरदार ज्ञानी चोर को अपने ही एक साथी ने कुछ मत्वपूर्ण कार्य की सुचना दी, इशारा पाते ही सभी साथी अपने गुप्त स्थान पर पहुंचे ǀ
-    - क्या बात है जैल सिंह, इतने मायूस ... क्या खबर है ǀ
-    - सरदार ....  मैं पिछले चार दिन से ये सब देख रहा हूँ, रोज संध्या समय नदी किनारे स्नान करते समय मुझे ये तख्ती दिखाई देती है ( तख्ती आगे करते हुए ), पर कुछ समझ नही आया, परन्तु ....
-   -  क्या लिखा है, पढो तो ..... सरदार ने मुछों को ताव देते हुए कहा ǀ 
-   -  लिखा है “ कोई हिन्दू भाई मदद करे, अली महल से आजाद करे: महकदे “ ......... सरदार कोई दुखिया है जो मदद की उम्मीद से हर रोज ये तख्ती लिखती है और पानी में बहा देती है ǀ
-  -   बेचारी है तो दुखिया पर हम इसमें क्या मदद कर सकते हैं, हमें इसे आगे बहा देना चाहिए ताकी सल्तु सुलतान इसे देख सके और मदद कर सके ...... टोली में बेठे एक साथी ने कहा ǀ
-  -   नहीं .... वो हमारी हिन्दू बहन है, हम उसे ऐसे हालत में कैसे छोड़ सकते हैं .... दुसरे ने कहा ǀ
-  -   परन्तु, हजरत सुल्तान अली एक खूंखार राजा है, हम लोग उसका क्या मुकाबला कर सकते हैं, और राजा लोग तो वैसे भी किसी भी महिला को अपने साथ अपनी पटरानी बनाकर रख सकते हैं ǀ .... तीसरे ने कहा
-   -  कोई महिला हमें भाई कहे और अपनी रक्षा की उम्मीद करे, और हम उसे उसके हालात पर छोड़ दें /  हमें उसकी सहायता करनी होगी, किसी भी कीमत पर ..... चोरो के सरदार ज्ञानी ने कहा, मैं कल ही उसकी सहायता के लिए निकलता हूँ ǀ
-   -  मगर सरदार, “राजा के महल सु हम कीमती हीरा चुरा सकत है पर इ .... महकदे ” .... पान चबाते हुए टोली के एक अन्य सदस्य ने कहा ǀ
-    - लोग मुझे ज्ञानी चोर कहते हैं, जो चाँद की चांदनी भी चुरा सकता है ..... सरदार ने मुछों पर ताव देते हुए कहा ǀ
सब लोग अपने अपने कक्ष में चले गये ǀ
अहमद पुर सल्तनत यहाँ से 70 कोस दूर पश्चिम में है, रस्ते में घना जंगल, पैदल का रास्ता भी दो दिन का है, खैर जाना तो है ही ǀ
रात के सन्नाटे में बार - बार किसी धवनि को सुनने की कोशिश में कान लगाये सरदार कुछ सोचने में वय्सत थे ǀ
दूर- दूर तक ज्ञानी चोर के चर्चे थे, अगर किसी कीमती चीज पर नजर रखी जाती तो सिर्फ इसलिए की कहीं ज्ञानी चोर को पसंद न आ जाये, वो चीजों को सिर्फ पसंद नहीं करता बल्कि अधिकार करता था, चाहता नहीं पाता था, भगवान से मांगता नहीं बल्कि समर्पित करता था ǀ
अगली सुबह सरदार विधिवत अपने कार्य के लिए निकल पड़े, गले में मालाओं का ढेर, हाथ में कमंडल, बड़ी - बड़ी दाड़ी, हाथ में लाठी, कंधे पर झोला, साधू के भेस में पश्चिम की और बढ़े जा रहे थे, जहाँ भी जाते, “जय श्री राम” नाम के साथ लोगों से मुलाकात होती, लोग अपना दुःख सुनाते, अपने झोले से कुछ मोती, कीमती जवारात निकाल जरूरत मंद को देते, उन्हें कुछ उपदेश देते और आगे बढ़ जाते ǀ
घने जंगल ने गुजरते गुजरते थक चुके थे, कहीं विश्राम करने की जगह तलाश रहे थे की सामने एक झोंपड़ी दिखाई दि, पास गये तो देखा की दो साधू झगड़ रहे थे ...... तीसरे साधू को देख झेप गये ǀ
-    - गुरु की अनुपस्थिति में आपस में झगड़ना आप ज्ञानी मानुसों को शोभा नहीं देता ǀ
-    - माफ़ करें .... कुछ दिन पहले ही हमारे गुरु सवर्ग सिधार गये .. हम दोनों बस सम्पति के बंटवारे के लिए झगड़ रहे थे ǀ
-    - तुम दोनों आपस में बाँट क्यूँ नही लेते, इतने बड़े ज्ञानी, इतनी मोह माया ..... मेरा यहाँ क्या स्थान .... मुझे जाना चाहिए ..  
-    -  नहीं - नहीं महाराज, हमें माफ़ करें .... आप समझदार है ...आप ही हमारा बंटवारा कीजिये न ǀ
-    -  क्या तुम दोनों को मेरे बंटवारे की सर्त मंजूर होगी ?
-    -  हाँ महाराज ..... दोनों एक साथ बोल उठे ǀ
-   -   ठीक है, जो भी कीमती चीजें तुम्हारे पास है वो सुब मेरे सामने रखो ǀ
-    -  कीमती चीजों में हमारे पास सिर्फ ये तीन चीजें हैं .... एक ने सामने रखते हुए कहा ǀ
-    - ठीक - ठीक बंटवारे के लिए मुझे जानना होगा की इनकी क्या क्या खासियत है, कोन सी वस्तु कितनी अहम् है
-   -   जी महाराज, मैं बताता हूँ ǀ

  • महाराज ये “लाल गुदड़ी” है, कोई भी मनुस्य इसे ओढ़ कर अदृस्य हो सकता है ǀ
  • ये “दोसेर जड़ी’ है, जिसे दोनों तरफ से अलग अलग प्रयोग किया जाता है, इधर से पानी में मिलाकर पीने से कोई भी मनुस्य जानवर बन जाता है और इधर से प्रयोग करने पर फिर से मनुस्य बन जाता है ǀ
  • और ये “केसरिया चादर “ जिस पर बैठ कर कोई भी हवा में उड़ कर किसी भी स्थान पर पहुंच सकता है ǀ

-   -  सुन्दर अति सुन्दर .... आपके गुरु अवस्य ही एक महान ज्ञानी थे, तीनों चीजें अपने अपने महत्व अनुसार बराबर हैं और किसी भी एक के दो हिस्से नहीं किये जा सकते, इसलिए मेरा निर्णय है किसी एक को दो चीजें दि जाये व् दुसरे को सिर्फ एक ǀ
-    - विचार अच्छा है महाराज, मैं पुराना शिष्य हूँ,  इसलिए मुझे दो चीजें लेने का हक है ...एक ने बड़े ही विनम्र भाव से कहा ǀ
-   -  महराज, क्या बड़े होना ही ज्ञान की परिभासा हैं, मैं मेरे गुरु का प्रिय शिष्य था, इसलिए ......
-    - अगर ऐसा है तो मुझे तुम्हारी परीक्षा लेने होगी,
धनुश उठाया और एक तीर उतर दिशा में और दूसरा पश्चिम दिशा में छोड़ा, तुम दोनों में से जो भी इस तीर को पहले लेकर आएगा उसे दो चीजें मिलेगी और दुसरे को सिर्फ एक ... क्या मंजूर है
दोनों हाँ कहकर दोनों तरफ भागे। 

ज्ञानी चोर, एक चोर था, लोग उसके ज्ञान और चालकी का बखान करते थे, परन्तु इस समय वो एक साधू था। 
            ..... जारी   



Hit Like If You Like The Post.....


Share On Google.....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

your Comment will encourage us......

ब्लॉग आर्काइव

Popular Posts