लघु कथा - ह्रदय परिवर्तन
साठ वर्षीय रमा का ह्रदय उस वक्त परिवर्तित हुआ जब उसकी सहेली शारदा ने फोन पर सूचना दी कि - रमा तेरी इकलौती बेटी सुनीता सरकारी अस्पताल में मौत से जूझ रही है , आधा घण्टे के अंदर ही उसने एक के बाद एक तीन कन्याओं को जन्म दिया है और अब वह खुद खतरे में है। सुनीता की ससुराल वाले उसे अस्पताल में मरने के लिए छोड़ कर चले गए हैं । उन्हें तीन बेटियों के जन्म की कोई खुशी नही है। सुरेश भी बेमन से बस अपना पति धर्म ही निभा रहा है। उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नही है। वह उन्हें पालने की स्थिति में नही है। मुझसे पैसे मांग रहा था। मैं अभी अस्पताल से सुनीता को देख कर लौटी हूँ । सुनीता अपने अंतिम समय में बस तुझे ही याद कर रही है , रमा।
मेरी मान एक बार मिल आ सुनीता से। तुझे देखते ही शायद वह जी उठे । उसे तेरी मर्जी के खिलाफ शादी करने का बेहद अफ़सोस है। वह माफ़ी मांगना चाहती है तुझसे रमा। क्या अंतिम समय में भी अपनी बेटी को माफ़ नही करेगी - कहकर शारदा ने फोन काट दिया।
तीन साल से अपनी इकलौती बेटी के लिए पत्थर बनी रमा, शारदा का फोन सुनकर विचलित हो उठी। उसे समझ नही आ रहा था कि वह क्या करे ! अपने सिद्धांतों से समझौता करे या सुनीता को उसके ही हाल पर छोड़ दे। जिए या मरे। जब उसने अपने प्रेम के लिए अपनी विधवा मां की मान मर्यादा का ध्यान नही रखा तो मैं भी क्यों परवाह करूँ उसकी।
मन में इन्ही सब विचारों के द्वंद ने रमा की बेचैनी और बढ़ा दी। उसने जिंदगी में कभी भी अपने सिद्धांतों और मान मर्यादा से समझौता नही किया था । तब भी नहीं जब भरी जवानी में , असमय ही उसका पति तीन साल की सुनीता को उसके भरोषे छोड़कर दुनिया से चला गया था। रमा ने उन विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत नही हारी और किसी पर भी बोझ न बनते हुए खुद घरेलू काम काज करके सुनीता को पाल पोसकर उच्च शिक्षा दिलवाई । उसने सुनीता के भविष्य की खातिर अपना विरही जीवन यूँ ही गुजार लिया लेकिन सुनीता ने उसे बिना बताए अपनी पसंद से शादी कर ली । कम से कम एक बार बताती तो ... सुनीता को अपनी माँ के एकाकी जीवन की कोई कद्र न करना ही भारी पड़ गया और उसके इस कदम ने रमा को ह्रदय हीन बना दिया।
पिछले तीन साल से वह सुनीता के लिए पत्थर सी हो चुकी थी पर आज उसकी ममता और तीन नन्हीं जान के मोह ने उसे धर्म संकट में डाल दिया था। रह रह कर उसे अपनी सहेली शारदा की बातें याद आ रही थी । अपनी बेटी की मौत की कल्पना से ही वह सिहर उठी । उसके कानों में तीन नवजात कन्याओं का कारुणिक रूदन उसे अस्पताल की ओर खींच रहा था।
रमा उठी और बरबस ही अस्पताल की ओर चल दी। उसे नहीं पता था कि उसकी ममता ने जोर मारा या उसका ह्रदय परिवर्तन हुआ !
- देवेंन्द्र सोनी , इटारसी ।
साठ वर्षीय रमा का ह्रदय उस वक्त परिवर्तित हुआ जब उसकी सहेली शारदा ने फोन पर सूचना दी कि - रमा तेरी इकलौती बेटी सुनीता सरकारी अस्पताल में मौत से जूझ रही है , आधा घण्टे के अंदर ही उसने एक के बाद एक तीन कन्याओं को जन्म दिया है और अब वह खुद खतरे में है। सुनीता की ससुराल वाले उसे अस्पताल में मरने के लिए छोड़ कर चले गए हैं । उन्हें तीन बेटियों के जन्म की कोई खुशी नही है। सुरेश भी बेमन से बस अपना पति धर्म ही निभा रहा है। उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नही है। वह उन्हें पालने की स्थिति में नही है। मुझसे पैसे मांग रहा था। मैं अभी अस्पताल से सुनीता को देख कर लौटी हूँ । सुनीता अपने अंतिम समय में बस तुझे ही याद कर रही है , रमा।
मेरी मान एक बार मिल आ सुनीता से। तुझे देखते ही शायद वह जी उठे । उसे तेरी मर्जी के खिलाफ शादी करने का बेहद अफ़सोस है। वह माफ़ी मांगना चाहती है तुझसे रमा। क्या अंतिम समय में भी अपनी बेटी को माफ़ नही करेगी - कहकर शारदा ने फोन काट दिया।
तीन साल से अपनी इकलौती बेटी के लिए पत्थर बनी रमा, शारदा का फोन सुनकर विचलित हो उठी। उसे समझ नही आ रहा था कि वह क्या करे ! अपने सिद्धांतों से समझौता करे या सुनीता को उसके ही हाल पर छोड़ दे। जिए या मरे। जब उसने अपने प्रेम के लिए अपनी विधवा मां की मान मर्यादा का ध्यान नही रखा तो मैं भी क्यों परवाह करूँ उसकी।
मन में इन्ही सब विचारों के द्वंद ने रमा की बेचैनी और बढ़ा दी। उसने जिंदगी में कभी भी अपने सिद्धांतों और मान मर्यादा से समझौता नही किया था । तब भी नहीं जब भरी जवानी में , असमय ही उसका पति तीन साल की सुनीता को उसके भरोषे छोड़कर दुनिया से चला गया था। रमा ने उन विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत नही हारी और किसी पर भी बोझ न बनते हुए खुद घरेलू काम काज करके सुनीता को पाल पोसकर उच्च शिक्षा दिलवाई । उसने सुनीता के भविष्य की खातिर अपना विरही जीवन यूँ ही गुजार लिया लेकिन सुनीता ने उसे बिना बताए अपनी पसंद से शादी कर ली । कम से कम एक बार बताती तो ... सुनीता को अपनी माँ के एकाकी जीवन की कोई कद्र न करना ही भारी पड़ गया और उसके इस कदम ने रमा को ह्रदय हीन बना दिया।
पिछले तीन साल से वह सुनीता के लिए पत्थर सी हो चुकी थी पर आज उसकी ममता और तीन नन्हीं जान के मोह ने उसे धर्म संकट में डाल दिया था। रह रह कर उसे अपनी सहेली शारदा की बातें याद आ रही थी । अपनी बेटी की मौत की कल्पना से ही वह सिहर उठी । उसके कानों में तीन नवजात कन्याओं का कारुणिक रूदन उसे अस्पताल की ओर खींच रहा था।
रमा उठी और बरबस ही अस्पताल की ओर चल दी। उसे नहीं पता था कि उसकी ममता ने जोर मारा या उसका ह्रदय परिवर्तन हुआ !
- देवेंन्द्र सोनी , इटारसी ।
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