जरा हटके - नई कविता
वर्षा की फुहार ।
देह झुलसाती तपन
के बाद जब
पड़ती हैं वर्षा की
रिमझिम फुहारें ।
के बाद जब
पड़ती हैं वर्षा की
रिमझिम फुहारें ।
खिल जाता है रोम -रोम
और
नाच उठता है , मन - मयूर ।
और
नाच उठता है , मन - मयूर ।
इस नैसर्गिक सत्य को
यदि जीवन से जोड़कर देखें,
तो पाते हैं
कठिनाईयाँ और संघर्ष की तपन से
झुलसने के बाद ही होती है
सुख - सुविधाओं की बौछार भी
जीवन में हमारे।
यदि जीवन से जोड़कर देखें,
तो पाते हैं
कठिनाईयाँ और संघर्ष की तपन से
झुलसने के बाद ही होती है
सुख - सुविधाओं की बौछार भी
जीवन में हमारे।
मिलता है जिससे वही सुकून
जो देती है तपन के बाद वर्षा ।
जो देती है तपन के बाद वर्षा ।
बस इतना ही समझ लें हम -
जरूरी है जिस तरह सभी मौसम
प्रकृति को संवारने के लिए।
उसी तरह जरूरी है सुख - दुःख
और संघर्ष का भी होना ,
जीवन को संवारने के लिए।
प्रकृति को संवारने के लिए।
उसी तरह जरूरी है सुख - दुःख
और संघर्ष का भी होना ,
जीवन को संवारने के लिए।
- देवेन्द्र सोनी, इटारसी।
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नई कविता , पिता का संदेश ,फादर्स डे पर, बचपन के वो पल सुहाने , आईना , किसान
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