शुक्रवार, 23 जून 2017

वर्षा की फुहार


जरा हटके - नई कविता
वर्षा की फुहार ।

देह झुलसाती तपन
के बाद जब
पड़ती हैं वर्षा की
रिमझिम फुहारें ।

खिल जाता है रोम -रोम
और
नाच उठता है , मन - मयूर ।

इस नैसर्गिक सत्य को
यदि जीवन से जोड़कर देखें,
तो पाते हैं
कठिनाईयाँ और संघर्ष की तपन से
झुलसने के बाद ही होती है
सुख - सुविधाओं की बौछार भी
जीवन में हमारे।

मिलता है जिससे वही सुकून
जो देती है तपन के बाद वर्षा ।

बस इतना ही समझ लें हम -

जरूरी है जिस तरह सभी मौसम
प्रकृति को संवारने के लिए।
उसी तरह जरूरी है सुख - दुःख
और संघर्ष का भी होना ,
जीवन को संवारने के लिए। 

            - देवेन्द्र सोनी, इटारसी।


Hit Like If You Like The Post.....


Share On Google.....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

your Comment will encourage us......

ब्लॉग आर्काइव

Popular Posts