सोमवार, 26 जून 2017

हैं समान दोनों ही


जरा हटके - नई कविता
हैं समान दोनों ही
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कोई रिश्ता नहीं था
धरा पर उतरे थे जब
दो मानव
एक था आदम और
एक थी ईब ।
खाकर कोई फल
जागा था उनमे प्रेम
जिससे फलित होने लगी संतति ।

अरण्य में घूमते -फिरते
कंद-मूल और जानवर खाकर
करते थे गुजारा , रहते थे मस्त
न था तब नारीवाद और
न ही था कोई पुरुष वाद।

आई जब दर्द की घड़ी ईब पर
मर्द ही बना सहारा
ले ली उसने जिम्मेदारी सारी
पति और पिता के रूप में।
जागा उसमें भी तभी - 
सुरक्षा ,अधिकार, अपनत्व और
लालन-पालन का भाव ।
तब से अब तक कर रहा है
मर्द , निर्वहन इनका ,
पति , पिता और भाई बनकर।

स्त्री ने भी समझा था इसे -
मर्द की छत्र-छाया में ही है
उसकी सुरक्षा और कल्याण ।
बाँट लिये फिर समझ से अपनी
दोनों ने ही प्रकृतिजन्य काम ।
कम नही थे तब भी 
और कम नही हैं अब भी
दोनो ही एक - दूजे से।

पर , फर्क बनाया जो प्रकृति ने-
समझना तो होगा ही उसे 
चलना भी होगा अनुरूप उसी के

जो होकर तय पहले से आया है ।

हैं बराबर दोनों ही ,
पर काम है अलग - अलग
मान लेंगे जिस दिन यह हम
मिट जाएगा व्याप्त भरम ।

होगा फिर खुशहाल जीवन
मिट जाएगा भेद-भाव ।
ना रहेगा नारीवाद और
ना बचेगा पुरुष वाद ।
करना होगा मिलकर ही यह
हम सबको ,बचाने अपना घर।
बचाने अपना हर रिश्ता ।

        
   - देवेंन्द्र सोनी, इटारसी।

Read more by  देवेंन्द्र सोनी: नई कविता  , पिता का संदेश  ,फादर्स डे पर,  बचपन के वो पल सुहाने , आईना  , किसान , वर्षा की फुहार  , भोर 


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