प्यार किसी का भी हो रीझ के रुलाता है
मां-बाप, भाई-बहिन कोई अपना नहीं हर कोई झूठा अपनापन जताता है।
कोई किसी का नहीं हमारा अपना ही हमें ये बताता है
बातें चाशनी में लिपटी और निगाहें फरेबी चालाँकी से छुपाता हैं।
अपना अपना कह कर लूटता हैं हर कोई मतलब निकाल ठेंगा दिखाता हैं
अपना ही अपने से जलता हैं और खुशियों पर ग्रहण साजिशों के जाल से लगाता हैं।
रिश्तों की परछाईं में शीशे सा साफ और कपटी मन मे छुरी की धार पैनी चलाता हैं
लगाये उम्मीद तो किस से यहां साहिब यहां तो दिल मे बसने वाले ही दिल चीर के निकल जाता हैं।
Written By Ritika {Preeti} Samadhiya... Please Try To Be A Good Human Being....✍
मां-बाप, भाई-बहिन कोई अपना नहीं हर कोई झूठा अपनापन जताता है।
कोई किसी का नहीं हमारा अपना ही हमें ये बताता है
बातें चाशनी में लिपटी और निगाहें फरेबी चालाँकी से छुपाता हैं।
अपना अपना कह कर लूटता हैं हर कोई मतलब निकाल ठेंगा दिखाता हैं
अपना ही अपने से जलता हैं और खुशियों पर ग्रहण साजिशों के जाल से लगाता हैं।
रिश्तों की परछाईं में शीशे सा साफ और कपटी मन मे छुरी की धार पैनी चलाता हैं
लगाये उम्मीद तो किस से यहां साहिब यहां तो दिल मे बसने वाले ही दिल चीर के निकल जाता हैं।
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