जरा हटके - नई कविता
आईना
सच ही है यह
झूठ
नही बोलता है
आईना
पर , न जाने क्यूं
जब भी
खड़ा होता हूँ मैं
आईने के सामने
दिखता है मुझे
मेरे अंदर का कलुष !
बताता है वह मुझे
जाने-अनजाने किए
मेरे वे अपराध
जिन्हें मै कभी
स्वीकारना नही चाहता
पर
आईना होता ही है
इसीलिए कि
बताए वह भी जो
स्वीकारना नही चाहते
कभी हम ।
जाने-अनजाने किए
मेरे वे अपराध
जिन्हें मै कभी
स्वीकारना नही चाहता
पर
आईना होता ही है
इसीलिए कि
बताए वह भी जो
स्वीकारना नही चाहते
कभी हम ।
आईना दिखाता है
हमारे
अंतःकरण की
हर रग को ।
हमारे
अंतःकरण की
हर रग को ।
पहचानता है वह
अच्छे से इन्हें
पर हम वही
देखना चाहते हैं
जो हमको भाता है ।
अच्छे से इन्हें
पर हम वही
देखना चाहते हैं
जो हमको भाता है ।
आईने में दिखती तस्वीर
झूठी नही होती
झूठा होता है
हमारे देखने का नजरिया
क्योंकि हमको
वही अच्छा लगता है
जो करे हमें मुग्ध
जो करे
हमारी प्रसंशा ।
- देवेंन्द्र सोनी , इटारसी।
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