मंगलवार, 20 जून 2017

आईना



जरा हटके - नई कविता
            आईना
             
सच ही है यह
झूठ
नही बोलता है
आईना
पर , न जाने क्यूं
जब भी
खड़ा होता हूँ मैं
आईने के सामने
दिखता है मुझे
मेरे अंदर का कलुष !


बताता है वह मुझे
जाने-अनजाने किए
मेरे वे अपराध
जिन्हें मै कभी
स्वीकारना नही चाहता
पर
आईना होता ही है
इसीलिए कि
बताए वह भी जो
स्वीकारना नही चाहते
कभी हम ।


आईना दिखाता है
हमारे
अंतःकरण की
हर रग को ।


पहचानता है वह
अच्छे से इन्हें
पर हम वही
देखना चाहते हैं
जो हमको भाता है ।

फिर कहता हूँ -
आईने में दिखती तस्वीर
झूठी नही होती
झूठा होता है
हमारे देखने का नजरिया
क्योंकि हमको
वही अच्छा लगता है
जो करे हमें मुग्ध
जो करे
हमारी प्रसंशा ।


      - देवेंन्द्र सोनी , इटारसी।


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