पापा आप मेरी जमीं हो और मेरे आसमां भी
पापा आप मेरी नमीं हों और खुशियों का जहाँ भी
पापा आप मेरी रुआँसी हो और मुस्कुराहट का पता भी
पापा आप मेरी पहिचान हो और वजूद की वजह भी
सब कुछ आपसे हैं पापा
आपने दुनिया में लाया और काबिल बनाने का जिम्मा उठाया भी
अपने ख़्वाबों को सतुंष्टि की आग लगाकर हमारे ख़्वाबों को सजाया भी
खुद रूखी खाकर हमारी हथेलियों पे रख दी फरमाइशों की अदायगी और जो ना माँगा वो बिन कहे दिलाया भी
थाली के सामने जब भी बैठते तो देखते पतीलों की ओर पहले और कम-कम सा खाकर उठ जाते जो पूछते हम या माँ तो कहते भूख कम थी फिर भी तुम सबसे ज्यादा खाया भी
आधा पेट खाकर उठते और आधा पेट हमारे पेट भरने पर भरता महसूस करते अपने मुंह में निवाला लेने से पहले पूछते बच्चों ने ठीक से खाया और कहीं कुछ ऐसा तो नहीं जो उन्होनें न भाते हुए खाया भी
सूरज के उगने से पहले बिस्तर छोड़ कर चले जाते हमारे सपनों की उड़ानों के पंख लेने और चाँद के आने के बाद आते तो लाते संग उड़ान का रास्ता सुनहरे सपनों को आखों में बसाया और किस्मत के जुगनू को चमकाया भी
सबकुछ आपसे है पापा
एक पिता हो इसलिये स्त्रियों की भाँति कभी स्नेह-कभी दुख जताया नहीं
दुराया सदैव चिंताओं,व्यथाओं,पीड़ाओं को हमसे सुखद अनुभव को कभी छुपाया नहीं
माँ को तो सबने ईश्वर का दर्जा दिया पिता को बहुत कम सराहा और कहीं तो सराहा गया भी नहीं
एक माँ ने कष्ट सहे हमारे लालन-पालन में और पिता ने तो कष्ठों के पहाड़ों से टकराकर भी कभी हमें उनके बारे में बताया नहीं
मैं हूँ ना, मैं हूँ ना कह कर सारे संकटो को अपने ऊपर झेलने वाले पिता के हाथों की ठेठें, पांव के छालों ने गम्भीर रूप ले लिया पर उन्होंने कहना तो दूर हमें उस से अवगत कराया भी नहीं
सँसार के हर घात-आघात को सहा पर हमारे सामने दुःख-दर्द की झलक को भी झलकाया नहीं
बस एक दिन वो जब हर पिता खुद को प्रत्यक्ष रूप से रोने से रोक पाया नहीं.........बेटी की विदाई जिस पर हर पिता खुद को संभाल पाया नहीं
पापा आप जैसा मैंने किसी को इस दुनिया में पाया नहीं
मेरे दिल के हर कोने में आपकी छवि बसती हैं पापा काश कभी ऐसा होता आपके घर से भी मुझे दूर भेजाया जाता नहीं
काश जग की रीति को समाज के डर से यूँ बढ़ावा दिया जाता नहीं तो पापा आज मैं भी सदां के लिये आपके पास होती इस तरह कोसों दूर होकर आपकी यादों को आंसुओं में बहाकर सहलवाया मुझसे जाता नहीं
एक बेटे का तो पता नहीं पर एक बेटी का कलेजा छलनी हुआ जाता हैं पापा जिसने तुमसे दूर जाने का दर्द सहकर भी सह पाया नहीं
4 दिन मायके की खुशियों पे तुम्हारे समीप रहने के फिर वही दूरी जिसको हम दोनों ने हरा पाया नहीं
पिता से बेटी का और बेटी का पिता से अनुराग का अलग रिश्ता है जिस से कोई भी रिश्ता जीत पाया नहीं
पापा आज पित्र दिवस है पर इस दिवस पर ही नहीं तुम्हारे लिये ये जज्बात (पंक्तियां) उमड़े हैं हर पल,हर क्षण यही महसूस करती हूँ कि कितनी भाग्यशाली हूँ मैं कि मुझे पिता के रूप में आप मिले बस यही कामना ईश से हर समय हैं मेरी हर जन्म में आप ही की बेटी कहलाने का सौभाग्य मिलें और इसके सिवा ईश्वर से मैंने कुछ चाहना चाहा नहीं
"पापा आपको कितना प्यार करती हूँ हकीकत में कभी जता पाया नहीं
आज रूप दिया हैं शब्दों का इन्हें जिन्हें वाणी रूप में निकालने के लिये हिम्मत को जोड़ पाया नहीं
पापा आप ही वो सबकुछ है जिसे मैंने कभी ह्रदय से लगा पाया नहीं
क्यूँकि एक पिता के कठोर रूप में आपसे भावनाओं को 'सहम की किताब' में बंद किया उजागर कभी भी कर पाया नहीं।"
I LOVE YOU VERY MUCH MY DEAREST & HONOURABLE FATHER
Written By Ritika {Preeti} Samadhiya..... Please Try To Be A Good Human Being...✍
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