खुद को छिपाता हूं मैं
जो नहीं हूं वो दिखता हूं मैं
सबने देखा है हँसता चेहरा मेरा
दिल के दर्द बहुत छुपाता हूं मैं।
दिखाता है आईना, चित्र में चरित्र मेरा,
पर असली चेहरे से, इसे छिपाता हूं मैं,
सोचता हूं, क्या खास है मेरे नकली चेहरे में,
जो उस पर इतना इतराता हूं मैं,
सोचता हूं क्या कमी है मेरे असली चेहरे में,
जो उस पर इतना घबराता हूं मैं।
कुछ कमियां, कुछ अरमान है मेरे,
जो नकली चेहरे से छुपता हूं मैं,
मैं सिर्फ "मैं" नहीं रहता,
फिर भी नकली चेहरे पर इतराता हूं मैं।
नहीं छिपाता मेरे दुःख-दर्दों को, इसलिए
असली चेहरे से घबराता हूं मैं,
सबने देखा है हँसता चेहरा मेरा, पर
दिल के दर्द बहुत छुपाता हूं मैं।
अक्सर टोकता है आइना मुझको, की
तेरे असली चेहरे को जानता हूं मैं,
अक्सर रोकता हूं मेरे "मैं" को मुझसे मिलने से,
पर मेरी इस नाकामयाबी को जानता हूं मैं।
मेरे हर नए चेहरे पर इतराता हूं मैं,
क्योंकि, मेरे "मैं" से घबराता हूं मैं।
- लेखक सुभाष वर्मा
Read more by Subhash Verma :राजीव रंजन :- द डार्क स्पॉट , अधुरापन , अस्तित्व ....एक नास्तिक की कलम से , अधूरी कहानी - 4: एक लव्य , हार , "वक्त" बोलता है , बेहतरीन लगता है। ,
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