बुधवार, 1 नवंबर 2017

जख्म



जरा हटकर - नई कविता

जब जब भी बात होती है
जख्मों पर 
कहा जाता है -
मिले हैं ये
किसी अपनों से ही ।

अक्सर ही मजाक में भी कह देते हैं - 
मिला नही कोई नया जख्म 
हैं कहाँ -अपने !

मगर कभी सोचा है हमने
इन जख्मों के पीछे होते हैं 
कहीँ न कहीं हमारे वे कृत्य 
जिनके प्रति उत्तर को 
ही दे देते हैं हम , नाम 
" अपनों " से मिले जख्मों का। 

कहने से पहले यह - 

करना होगा अवलोकन 
हमको खुद का । 
कहीं - अपनों के दोषी 
हम भी तो नही।



           - देवेंन्द्र सोनी , इटारसी

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