जरा हटकर - नई कविता
जब जब भी बात होती है
जख्मों पर
कहा जाता है -
मिले हैं ये
किसी अपनों से ही ।
अक्सर ही मजाक में भी कह देते हैं -
मिला नही कोई नया जख्म
हैं कहाँ -अपने !
मगर कभी सोचा है हमने
इन जख्मों के पीछे होते हैं
कहीँ न कहीं हमारे वे कृत्य
जिनके प्रति उत्तर को
ही दे देते हैं हम , नाम
" अपनों " से मिले जख्मों का।
कहने से पहले यह -
करना होगा अवलोकन
हमको खुद का ।
कहीं - अपनों के दोषी
हम भी तो नही।
- देवेंन्द्र सोनी , इटारसी
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