बुधवार, 8 नवंबर 2017

बाटा वाली चप्पल


मिट्टी मे मिट्टी होकर हम खेल खेलते थे
पूरा होने से पहले ही बिगाड चुके होते थे
झगडकर एक दूसरे के फिर बाल नोचते थे
कुछ इस तरह खत्म होता था एक खेल
फिर हम दूसरा खेलते थे
वो बचपन महान था ना दोस्तो
जब बाटा वाली चप्पल जोडकर पहनते थे

जब घर मे सब बच्चो के नए कपडे आते थे
छोटे को वही चाहिए जो बडे के होते थे
कपडो के रंगो पर भी तो कितने झगडे होते थे
ये वो फैसले थे जो कभी नही होते थे
और हम अपने नए कपडे जूते साथ लेकर कंबल मे सोते थे
वो बचपन सच मे महान था दोस्तो
जब बाटा वाली चप्पल जोडकर पहनते थे

असली तूफां तो घर मे उस वक्त आ जाते थे
जब भाई मेरी गुडिया का मुंडन कर देते थे
रोता देख मुझे माँ पापा मेरी तरफ होते थे
सिर्फ डांट खिलाकर शांत नही होती थी मै
मैने भी उसके हैलीकाप्टर के पंख तोड दिए थे
वो बचपन सच मे महान था दोस्तो
जब बाटा वाली चप्पल जोडकर पहनते थे

रात को आफिस से जब पापा घर आते थे
जान बूझकर सोने का दिखावा करते थे
अचानक जागकर उनको डरा देते थे
पापा भी डरने का नाटक बखूबी करते थे
फिर एक दूसरे की शिकायते करते हुए सोते थे
वो बचपन महान था ना दोस्तो
जब बाटा वाली चप्पल जोडकर पहनते थे

हर दिन माँ पापा हमे नए नाम से बुलाते थे
प्यार जताने के उनके ओर भी बहोत तरीके थे
कब नहीं छलके थे उनके आँसू 
जब कभी सिर तो कभी हमारे घुटने फूटे थे
बेशक वो दौडकर हमे डाक्टर तक ले जाते थे
पर वो फूंक वाले मरमह ज्यादा असर करते थे
वो बचपन महान था ना दोस्तो
जब बाटा वाली चप्पल जोडकर पहनते थे

~Anupama verma

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