शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

कोई क्या कहेगा



पूरी जिंदगी 
परवाह करते हैं हम 
इस बात की -
कि - कोई क्या कहेगा !

खो देते हैं इससे 
वे कई पल और खुशियां
जिनसे संवर सकता था
और अधिक 
घर - संसार हमारा ।

इस एक दंश से 
मुरझा जाते हैं , कभी - कभी
बेटे और बेटियों के भविष्य
या कई दफा , सपने भी हमारे।

देखते और सोचते हैं 
अक्सर ही हम , इसी रूप में
इस प्रश्न को
पर मेरी नजर में - होता है ,
एक पहलू और भी इसका।

बचाता है यही डर , बार - बार
अनेक अप्रिय स्थितियों से भी हमको।

सोचें , तो मिलेगा उत्तर यही
सिक्के के दो पहलू की तरह ही है
परिणाम भी इसके ।

कभी बचाता है तो कभी
डुबाता भी है प्रश्न यह - 
कि - कोई क्या कहेगा ? 

समझकर इसे -
लें अपने विवेक का सहारा 
और करें वही - 
जिसके  सुखद हो परिणाम ।

     - देवेंन्द्र सोनी , इटारसी।

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