बंदिश अगर लबों पर होती, महखाने और पबों पर होती
तो बातें तुम्हारी आँखों से होती, और नशा तुम्हारी सांसों से होता
यूँ टकराती आँखें,पैमाने सी खनक होती
यूँ टकराते जाम लबों से, और लहर सांसों में होती
लोग इश्क को यूँ बदनाम न करते, राह चलते यूँ सरेआम न करते
हर कोई ढूंढ़ता “जुनून ऐ शिखर”, फिर नशे को यूँ बदनाम न करते
- सुभाष वर्मा
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