मंगलवार, 14 नवंबर 2017

अजीब तेरा-मेरा इश्क


अजीब है ना तेरा इश्क
मुझे तेरी आँखों में दिखता नहीं
और तेरी जुवां पे टिकता भी नहीं
तुझसे वफ़ा करते बनता भी नहीं
और बेवफाई का पड़ा पर्दा हटता भी नहीं
गिरगिट जैसा रंग तेरा एक रंग में तू ढलता नहीं
बातें है चाशनी से तर बिन मक्खन के जिन पे काम चलता नहीं
इन सब के वाबजूद भी तू मेरी नजरों से गिरता नहीं
और अपनी उस पुरानी छवि से ऊंचा उठता भी नहीं
अजीब है ना मेरा भी तुझसे इश्क
जो
चीखों पर भी राहत गहन करता नहीं
चोट पर भी अगले कदम को सम्भलता नहीं
चाहने के गुनाह से हरगिज बचता नहीं
ना चाहने का गुनाह भूलकर भी  करता नहीं।

Written By Ritika{Preeti} Samadhiya... Please Try To Be A Good Human Being....✍

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