शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

मनचाही पांव की जमीं


कदम रूके नही मेरे
थके नही है हौसले
मनचाही पांव की जमीं
हम ढूढँने निकल पडे

सौ बार राह से भटके थे
'सोचा लौट चले' ऐसे भी अटके थे
पर बीच समंदर आ कर के
लौट जाना नादानी है
उम्मीदे फुसफुसायी इसे पार कर ले
कुछ यूँ गिरते हौसले उसने संभाले थे
मनचाही पांव की जमीं 
हम भी पाने को बेताब थे

तेरी जमीं नही इस जहान मे
सबके यही विचार थे
क्यूँ ये जहां रास नही तुझे 
तू उडने चली आसमान मे
फिर मै और मेरा साया मुस्कुराए थे
कुछ यूँ हमने
आशाओ के तार निराशाओ पर गिराए थे
मनचाही पांव की जमीं
हम भी पाने को बेताब थे

तूफां के सिलसिले है जोर पे
सब नाजुक तिनके सा मुझे कहे
उडा के कहाँ ले जाऐंगे
तू अभी सोच भी ये ना सके
मैने लम्बी सांस भरकर कहा
मुझे डर नही है तूफां से
उम्मीद है उडे तो
सही जगह ही जा गिरे
और मनचाही पांव की जमीं
हम ढूढँने निकल पडे

~Anupama

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