जरा हटके - नई कविता
रहती है जब भी
मन में कश्मकश
चलता है
किसी बात को लेकर द्वंद
तब अधिकतर होता है ऐसा -
खो देते हैं हम अपना विवेक ।
क्योंकि तब सुनते हैं हम -
केवल अपने मन की ।
मन अक्सर जुड़ा रहता है
किसी न किसी अस्थाई लोभ से
जो हर लेता है उस वक्त
विवेक को हमारे।
दिखता है सिर्फ वही , वही
छूट जाते हैं जिससे -
कई रिश्ते - नाते और
कभी कभी तो घर -परिवार भी।
गहरा नाता है -
वैचारिक द्वंद और विवेक का ।
इसलिए जरूरी है -
जब भी उठे मन में कोई द्वंद
दें अपने विवेक को प्रधानता
न करें कोई त्वरित निर्णय , एकतरफा।
रह कर तटस्थ
कर दें इसे समय के हवाले ।
समय कर देता है स्वतः ही
हर द्वंद का उपचार
देता है जो अक्सर
सुखद और सर्वहित के परिणाम ।
- देवेंन्द्र सोनी , इटारसी।
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