शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

कश्मकश



जरा हटके - नई कविता 

रहती है जब भी 
मन में कश्मकश 
चलता है 
किसी बात को लेकर द्वंद
तब अधिकतर होता है ऐसा - 
खो देते हैं हम अपना विवेक ।

क्योंकि तब सुनते हैं हम -
केवल अपने मन की ।

मन अक्सर जुड़ा रहता है
किसी न किसी अस्थाई लोभ से 
जो हर लेता है उस वक्त
विवेक को हमारे।

दिखता है सिर्फ वही , वही 
छूट जाते हैं जिससे - 
कई रिश्ते - नाते और 
कभी कभी तो घर -परिवार भी।

गहरा नाता है -
वैचारिक द्वंद और विवेक का ।

इसलिए जरूरी है -
जब भी उठे मन में कोई द्वंद 
दें अपने विवेक को प्रधानता 
न करें कोई त्वरित निर्णय , एकतरफा। 

रह कर तटस्थ 
कर दें इसे समय के हवाले ।

समय कर देता है स्वतः ही 
हर द्वंद का उपचार
देता है जो अक्सर 
सुखद और सर्वहित के परिणाम ।

      - देवेंन्द्र सोनी , इटारसी।

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