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साहित्य सारथी..... सभी हिंदी लेखकों व पाठकों लिए एक ब्लॉग, जहां आप आनंद लेंगे लघु कथाओं और कविताओं का, इसके अलावा आप अपनी लघु कथाएँ व कवितायें भी प्रकाशित कर सकते हैं।
- डाँ . सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
राष्ट्र धरोहर हिन्दी है जो ,
लगती बड़ी मनोहर है ओ ।
बहुत पुरानी है यह भाषा ,
इस पर टिकी सबकी आशा ।
इतिहास है सुदीर्घ इसका ,
ज्ञान नहीं है सबको जिसका ।
साहित्य की विविध विधायें ,
इस भाषा को पढ़कर पायें ।
माँ की ममता होती जैसी ,
यह भाषा भी लेती वैसी !
मिठास इसमें जैसी शक्कर ,
सब भाषाओं से लेती टक्कर !
बड़ी सरल है सब अपनाओ ,
इसका यश जग में फैलाओ ।
बतलाते कठिन इसको कुछ ,
लगता उनकी बुद्धि है तुच्छ ।
यह लिखने-पढ़ने में आसान ,
इसे अपना कर समझें शान ।
हिन्दी का मायका हिन्दुस्तान ,
सब जन करें इसका सम्मान ।
वैज्ञानिक गुणों से यह भरपूर ,
और भाषायें सब चकना चूर ।
देवनागरी लिपि है इसकी ,
तुलना नहीं किसी से जिसकी ।
हिन्दी में बना है संविधान ,
मिलकर बढा़यें इसका मान ।
सजती माथे पर ज्यों बिन्दी ,
विश्व में छायेगी भाषा हिन्दी ।
गर्व है हमको इस भाषा पर ,
करें प्रतिज्ञा अपनायेगा हर ।
स्वर-व्यंजन की इसमें सुविधा ,
किसी तरह की नहीं है दुविधा ।
हिन्दी भाषा रही सदा महान ,
सद्गुणों की है यह खान ।
इस भाषा में बोलें-लिखें सभी ,
विकास पथ पर बढ़ेंगे तभी ।
------------------------------
ग्राम/पो. पुजार गाँव ( चन्द्र वदनी )
द्वारा - हिण्डोला खाल
जिला - टिहरी गढ़वाल -249122 ( उत्तराखण्ड )
मोवाईल नंबर - 9690450659
ई मेल आईडी -
dr.surendraduttsemalty@gmail.
~ डॉ.सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
ओ भी क्या दिन थे बचपन के ,
आज मुझे बहुत हैं ओ भाते !
चाहता भूलना पर भूल न पाता ,
पल - पल याद सभी हैं आते ।। 1 ।।
कभी रूठना - गुस्सा करना ,
हँसना - रोना और चिल्लाना ।
पापाजी ने यदि डाँट लगाई ,
गोदी मे मम्मी की छुप जाना ।। 2 ।।
इच्छा से पढ़ना खेलना कूदना ,
छुपकर के खूब मौज मनाना ।
पकड़े गये रंगे हाथ जो यदि ,
बहाने तरह - तरह बनाना ।। 3 ।।
साथियों के संग झगड़ा करना ,
तो कभी मिल एक हो जाना ।
सर-मैडम यदि आवाज लगादें ,
डरकर के चुपचाप हो जाना ।। 4 ।।
नजर बचाकर नटखट करना ,
हम सबको खूब था भाता ।
कोई शिकायत करता था जब ,
तब मैं तो था बहुत घबराता ।। 5 ।।
पढ़-लिख तब जीवन तरासना ,
लगता था पहाड़ सा अतिभारी ।
लेकिन उसी तप के प्रतिफल ,
सफलतायें मिली हमें ये सारी ।।6 ।।
------------------------------
मोथरोवाला , फाइरिंग रेंज ( सैनिक कॉलोनी )
लेन नंबर - 3 , फेज - 2
निकट - महालक्ष्मी हार्डवेयर
देहरादून - 248115 ( उत्तराखंड )
मोबाईल नंबर - 9690450659
ईमेल आईडी -
dr.surendraduttsemalty@gmail.
■■★■■ संक्षिप्त परिचय :-
नाम : गोलेन्द्र पटेल
उपनाम : गोलेंद्र ज्ञान
जन्म : 5 अगस्त, 1999 ई.
जन्मस्थान : खजूरगाँव, साहुपुरी, चंदौली, उत्तर प्रदेश।
शिक्षा : बी.ए. (हिंदी प्रतिष्ठा) , बी.एच.यू.।
भाषा : हिंदी
विधा : कविता, कहानी, निबंध व आलोचना।
माता : उत्तम देवी
पिता : नन्दलाल
पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन :
कविताएँ और आलेख - 'प्राची', 'बहुमत', 'आजकल', 'व्यंग्य कथा', 'साखी', 'वागर्थ', 'काव्य प्रहर', 'प्रेरणा अंशु', 'नव निकष', 'सद्भावना', 'जनसंदेश टाइम्स', 'विजय दर्पण टाइम्स', 'रणभेरी', 'पदचिह्न', 'अग्निधर्मा', 'नेशनल एक्सप्रेस', 'अमर उजाला', 'पुरवाई', 'सुवासित' आदि प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित।
विशेष : कोरोनाकालीन कविताओं का संचयन "तिमिर में ज्योति जैसे" (सं. प्रो. अरुण होता) में मेरी दो कविताएँ हैं।
प्रसारण : राजस्थानी रेडियो, द लल्लनटॉप , वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार एवं अन्य यूट्यूब चैनल पर (पाठक : स्वयं संस्थापक)
अनुवाद : नेपाली में कविता अनूदित
काव्यपाठ : अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय काव्यगोष्ठियों में कविता पाठ।
सम्मान : अंतरराष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय की ओर से "प्रथम सुब्रह्मण्यम भारती युवा कविता सम्मान - 2021" और अनेक साहित्यिक संस्थाओं से प्रेरणा प्रशस्तिपत्र।
संपर्क :
डाक पता - ग्राम-खजूरगाँव, पोस्ट-साहुपुरी, जिला-चंदौली, उत्तर प्रदेश, भारत।
पिन कोड : 221009
व्हाट्सएप नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com
पुस्तक समीक्षा >>
उपन्यास श्रृंख्ला "ठगमानुष" लेखक सुभाष वर्मा द्वारा लिखी गई एक मनोरंजक हिंदी अपराध कथा उपन्यास श्रृंखला है। उपन्यास 1850 के दशक के भारत में सेट हैं और सभी रोमांच चाहने वालों के लिए एड्रेनालाईन से भरे पढ़ने का वादा करते हैं। कहानी कुख्यात ठग जगीरा उर्फ ठगमानुष के उदय के इर्द-गिर्द घूमती है।
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यदि आप एक अनुभवी लेखक से पढ़ने के लिए एक मनोरंजक, आधुनिक हिंदी अपराध कथा उपन्यास की तलाश में हैं, तो आगे न देखें। ठगमानुष भारत के अंधेरे पक्ष में स्थापित एक दिलचस्प उपन्यास श्रृंखला है। यह आपको ट्विस्ट और टर्न पर ले जाएगा क्योंकि नायक जगीरा अपने अन्य ठग साथियों के साथ लूट की यात्रा पर निकला है।
भारत में ठगों के बारे में एक रोमांचक अपराध कथा उपन्यास श्रृंखला, ठगमानुष गिरोहों और गैंगस्टरों की अंधेरी और क्रूर दुनिया को जीवंत करता है जो निश्चित रूप से आपकी रुचि को बनाए रखता है। यह भारत में गिरोहों और गैंगस्टरों के अंडरवर्ल्ड के बारे में एक कहानी है - एक्शन, साज़िश और रहस्य से भरपूर।
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यह सीरीज एक मास मर्डर थ्रिलर है जो आज से 150 साल पहले के समय में सेट की गई है। ठगों का एक खतरनाक गिरोह लोगों की हत्या कर रहा है और शहर को आतंकित कर रहा है। दस साल से इन ठगों का पीछा कर रहा नायक, एक अंग्रेज, इस मामले में फंस जाता है और इसे सुलझाने की कोशिश करता है। जैसे-जैसे घटनाएँ घटती हैं कहानी सामने आती है और हमें गिरोह और उनके उद्देश्यों के बारे में पता चलता है, और अप्रत्याशित मोड़ आते हैं!
भारत में स्थापित एक रोमांचक अपराध कथा उपन्यास श्रृंखला, ठगमानुष भय, बदला और अराजकता की कहानी है। श्रृंखला महानगरीय भारत की आपराधिक दुनिया का परिचय है, जहां अधिकांश आपराधिक गतिविधियों को दो गिरोहों - जगीरा गिरोह और पिंडारी गिरोह द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
इस तेज़-तर्रार क्राइम थ्रिलर में, नायक अंग्रेजों का एक जासूस है, जो एक हत्यारे को खोजने के लिए एक जटिल यात्रा पर है। क्या और जानें जाने से पहले क्या वह अपराधी को ढूंढ पाएगा? जैसे-जैसे वह सच्चाई के करीब आता जाता है, उसे अपनी पिछली गलतियों से भी निपटना पड़ता है और छुटकारे की तलाश करनी पड़ती है।
लेखन शैली :
ठगमानुष एक क्राइम फिक्शन उपन्यास श्रृंखला है जो भारत के अंधेरे और क्रूर भरे समय की खोज करती है। विशद या ढीली शैली में लिखा गया यह उपन्यास नशा करने वालों, गैंगस्टरों, अपराधियों और कानून प्रवर्तन अधिकारियों के जीवन की उनके दृष्टिकोण से एक झलक प्रदान करता है। कहानी दो अलग-अलग समय-सारिणी- वर्तमान समय और 1850 के विद्रोह से सुनाई गई है।
ठगमानुष की दुनिया आपको भारत के अंधेरे अपराध से भरी एक यात्रा पर ले जाएगी। संगठित अपराध, भ्रष्टाचार, नशीली दवाएं बेचने वाला समूह। आतंकवाद। ये उन कई बुराइयों में से कुछ हैं जो भूमि को पीड़ित करती हैं, और यह आप पर निर्भर है कि आप इसके बारे में कुछ करें।
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एक सफल व्यवसायी। एक शक्तिशाली राजनेता। एक राजा, प्रभावशाली और सम्मानित व्यक्ति। लेकिन वह सिर्फ एक मुखौटा है, अपने असली स्व के बारे में सच्चाई छुपा रहा है। वह एक ठग है, उन गुमनाम गुंडों में से एक है जो अपनी मुट्ठी और हथियारों से अंडरवर्ल्ड के कानून के शासन को लागू करते हैं। एक नीच ठग से उसके उत्थान को देखने के लिए इस रोमांचकारी यात्रा में हमारे साथ जुड़ें और भारत में सबसे खूंखार और शक्तिशाली अपराधी बचें!
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ठगमानुष एक हिंदी क्राइम फिक्शन उपन्यास श्रृंखला है। इसकी ३ किताबें हैं और ये सभी अमेज़न और अन्य रिटेल प्लेटफॉर्म पर बेस्टसेलर बनने वाली है। हिंदी के इतिहास में इस इस तरह का यह पहला उपन्यास कहा जा सकता है।
है हर ओर भ्रष्टाचार, भला क्या कर लोगे
तुम कुछ ईमानदार, भला क्या कर लोगे ?
दूध में मिला है पानी या पानी में मिला दूध
करके खूब सोच-विचार, भला क्या कर लोगे ?
ईमान की बात करना नासमझी मानते लोग
सब बन बैठे समझदार, भला क्या कर लोगे ?
विकास की नैया फंसी पड़ी स्वार्थ के भंवर में
नामुमकिन है बेड़ा पार,भला क्या कर लोगे ?
इंसाफ के नाम पर बस तारीख पर तारीख
है लंबा बहुत इंतजार, भला क्या कर लोगे ?
फोड़ लोगे सर अपना मार-मार कर दीवारों पर
चलो, छोड़ो, बैठो यार, भला क्या कर लोगे ?
कहते है वक्त बदलते देर नहीं लगती और वक्त सभी घावों का मरहम होता है। समय जैसे - जैसे बीतता है घाव भी अपने आप भरने लगते है पर कुछ घाव ठीक तो हो जाते है लेकिन नासूर बनकर हमेशा दिल को कचोटते रहते है।
कुछ ऐसा ही हाल था साधना का। आज साधना गांव की प्रधान बन चुकी थी और खुश थी की उसके बुरे दिन अब अच्छे होने वाले है और शायद उससे भी ज्यादा खुश गांव वाले थे, इसलिए नहीं की साधना प्रधान बन गयी बल्कि इसलिए की अब शायद साधना को उन तमाम दुखों से मुक्ति मिल जाएगी जो उसने सपनों में भी नहीं सोचा था। साधना का नाम अब शायद सार्थक हो जाये क्योंकि उसका अब तक का शादीशुदा जीवन एक तरह की साधना ही था जो कि सारे गांव वाले जानते थे।
खुशी का कोई रंग नहीं होता पर जब ख़ुशियाँ मिलती हैं, तो हमारा मन भी रंग-बिरंगा हो जाता है, दिल घूमने लगता है मन को आनंद मिलता है। ऐसा ही आनन्द तब मिलता है जब एक स्त्री माँ बनती है, तब उस समय वो अपने सारे दुःख भूलकर एक सम्पूर्णता का अनुभव करती है।
ऐसा ही एहसास आज सविता कर रही है। उसने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया है और खुश भी है, स्त्री जीवन की सबसे महत्वपूर्ण लालसा आज साक्षात् आकार ले चुकी थी।
अब तो सविता के मायके से बधावा आएगा, ढेर सारे मेहमान आएंगे, गाना बजाना होगा, पकवान बनेगें और ढेर सारे काम होंगे, ये सब बातें सोचकर सविता मन ही मन मुस्कराने लगी। सविता का मायके उसके घर से पचास किलोमीटर दूर है और आने में तीन घंटे लग जाते है पर फ़ोन पर सभी बातें हो जाती है।
राकेश और मैं हमेशा की तरह बातें करते हुए अस्पताल के बाहर आये और अपने विभाग की तरफ जाने लगे, पर सामने देखा तो कुछ भीड़ इकट्ठा थी। हमें लगा कोई मरीज होगा दिखाने आया होगा पर राकेश ने टोकते हुए कहा नहीं यार चल कर देखते है क्या हुआ है? वहां जाकर देखा तो एक बृद्धा जमीन पर बैठी थी और गार्ड बार-बार उससे कह रहा था आप यहाँ से चली जाओ चलो मै बस में बैठा देता हूँ पर वो बृद्धा बार-बार कह रही थी मै इलाज कराकर तभी जाउंगी। गार्ड बोला कैसे इलाज कराओगी तुम्हारे साथ तो कोई है भी नहीं।
उस बृद्ध महिला की उम्र करीब साठ-पैसठ साल होगी, साँवला रंग, दुबली पतली काया थी, कपड़े मैले-कुचैले थे, बाल सफ़ेद हो चुके थे पर धूल मिटटी और गन्दगी की वजह से अलग रंग के नज़र आ रहे थे। ऐसा लग रहा था बिना कंघी के बाल भी गुस्सा होकर आपस में उलझे हुए है। मुँह में दांत आधे बचे हुए थे,जाने कितने दिन हो गए थे नहाये हुए ,शरीर से दुर्गन्ध आ रही थी ऊपर से घाव की सड़न की वजह से भी महक आ रही थी । उस बृद्धा को देख तो सभी रहे थे पर पूछ नहीं रहे थे कि क्या हुआ है, जब उसके पैरो पर नज़र गयी तो हमने देखा की उसने अपने पैर पर कपड़े और प्लास्टिक की पट्टी बांध रखी है। धीरे धीरे भीड़ हटने लगी सभी अपने अपने काम में व्यस्त हो गए और वो बृद्धा फिर से अकेली हो गयी।
हम लोग भी अपने कमरे में आकर बैठ गए पर राकेश कुछ सोच रहा था। वो अचानक उठा और बोला मैं अभी आ रहा हूँ। राकेश उस बृद्धा के पास गया और उससे पूछा पैर में चोट कैसे लगी ? बृद्धा बोली- चौकी पर से गिर गयी। उसने अपना घर बिहार बताया और कहा की उसका बेटा उसे यहाँ छोड़ गया और कहकर गया की यही पर रहकर इलाज करा लो जब ठीक हो जाना तब आ जाना। अपनी व्यथा सुनाते-सुनाते उसके आँखों से गंगा यमुना निकलने लगी, दिल पसीज गया सुनने और और सुनाने वाले दोनों का।
उसके पैर में घाव हो गया था और इन्फेक्शन शायद हो चुका था। राकेश ने उसका एक्सरे करवाया और पता चला की उसके पैर की हड्डी में मोच है। डॉक्टर ने दवा लिख दी और राकेश ने उसके घाव की ड्रेसिंग करवा दी। जिस पैर में घाव था उस पैर को हाथ से ऊपर उठाकर तथा दूसरे हाथ के सहारे घिसट-घिसटकर चलती थी वो,अपने पैरो पर खड़ी नहीं हो पाती थी। मक्खियाँ उसके घाव पर बार बार आकर बैठती और वो हाथ के सहारे उन्हें बार-बार हवा में उड़ाती थी। उस बृद्धा के पास दुर्गन्ध की वजह से लोग जाना पसंद नहीं करते थे दूर से ही बात करते थे, राकेश उसको दवायें खरीद कर देता था, रोज उस बृद्धा की सेवा करता था, उससे देर तक बातें करता था, पर उसके पास भी इतने पैसे नहीं थे की वो उसका सही ढंग से इलाज करवा सके। जो इंसान कभी अपने लिए टिफिन नहीं लाता था उस बृद्धा के लिए खाना लेकर आता था। मैं भी कभी-कभी उसे बिस्कुट और समोसे दे आता था।
मानवता आज मानवता के काम आ रही थी इससे बड़ी जीत मानवता के लिए क्या हो सकती थी। पर धिक्कार है उस दानव रूपी बेटे का जिसने मानवता को शर्मशार करते हुए अपनी ही माँ को ऐसे अकेले छोड़कर चला गया और वो किस हाल में है ये भी पता नहीं करने आया। बृद्धा एक साल तक अस्पताल के बाहर अपना घर बनाये रखी, खुला आसमान उसका छत था और जमीन उसका सोने का बिस्तर, पास में केवल एक गन्दा सा झोला था जिसमे लोगो द्वारा दिए हुए खाने और एक-दो कपड़े थे। दिन में अस्पताल मरीजों से गुलज़ार रहता था वो मरीजों से बातें करती और अपने मन को हल्का करने के लिए अपना दुःख उनसे साझा करती थी पर पैसे कभी नहीं मांगती थी क्योकि उसे पैसे की जरुरत केवल इलाज के लिए थी आत्मिक संतोष के लिए नहीं।
जब तक दवा का असर रहता था सबसे बातें करती पर दर्द जब बढ़ने लगता था तो कराहने लगती और न जाने उसने कितनी रातें कराहते हुए गुजारी और दिन में अपने जैसे हज़ारो लोगो को देखकर मन को सांत्वना देती थी। राकेश कुछ दिन अपने काम की व्यस्तता के चलते उससे मिल नहीं पाया और एक दिन उस बृद्धा से मिला, उसने उसे नजदीक बुलाया और ऐसा लगा की जैसे कोई गुप्त बात बतानी हो। बृद्धा धीरे से बोली मेरे पास ढेर सारे पैसे है तुम ले जाओ कहकर अपने झोले से ढेर सारे सिक्को से भरी थैली निकाल कर देने लगी। राकेश ने मना कर दिया और बोला - तुम रख लो मुझे नहीं चाहिए इस पैसे से अपना इलाज करवाओ। बृद्धा रोने लगी और बोली मेरे अपने बेटे ने मुझे घर से निकाल दिया और तुमने उससे भी बढ़कर मेरी सेवा की तुम ले जाओ ये पैसा वैसे भी अब इलाज कराने से क्या फायदा बूढ़ी हो गयी हूँ कुछ दिनों में मर जाउंगी । राकेश ने वो पैसा नहीं लिया। कुछ दिन बाद उसको पता चला उस बृद्धा का पैसा किसी ने ले लिया और फिर उसको दिया ही नहीं, एक दिन उसको गार्ड ने बस में बैठाकर बिहार भेज दिया पर चौदह दिन बाद फिर से वो लौट आयी और करीब सात महीने यहाँ रही। दोबारा उसके पास पैसे हो गए थे और वो राकेश को देना चाहती थी पर राकेश ने लेने से मना कर दिया। इस बार वो गयी तो वापस नहीं लौटी। राकेश कई दिनों तक परेशान रहा उसके लिए पर उस बृद्धा का क्या हुआ कोई नहीं जानता।
लेखक : भीम सिंह राही
#१
पुस्तक – ट्वेल्थ फेल
लेखक – अनुराग पाठक
कहानी का प्रमुख पात्र मनोज शर्मा है जिनका 12th में फेल होने से लेकर आईएएस ऑफिसर बनने तक का सफर कहानी में लिखित है। मनोज शर्मा लोगों के लिए मिसाल है कि किस प्रकार एक लड़का ट्वेल्थ में फेल होकर ग्रामीण परिवेश में रहकर संघर्ष करते हुए आईएएस ऑफिसर बनता है और लोगों को अपनी कहानी से प्रेरणा देता है। कहानी बहुत ही रोचक , मोटिवेशनल और रुचिकर है।
इस मोटिवेशनल किताब में असफलता को हैंडल करने और सफलता की राह पर बढ़ते जाने कुछ नुस्ख़े भी सुझाए हैं। ऐसे 26 युवाओं की सफलता की शानदार कहानियाँ भी उन्हीं की ज़ुबानी इस किताब के अंत में शामिल हैं, जिन्होंने तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद ‘रुक जाना नहीं’ का मंत्र अपनाकर सफलता की राह बनाई और युवाओं के प्रेरणास्त्रोत बने।
#२ डार्क हॉर्स
लेखक: निलोत्पल मृणाल
सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों का मर्मबेधन करने में सक्षम "डार्क हॉर्स" न केवल परीक्षा की तैयारी की दांस्ता बयां करता है बल्कि जीवन संघर्ष के सही मायने भी उल्लिखित करता है।
सहज एवं स्वाभाविक भाषा का प्रयोग पाठक को बांधने में समर्थ है और कथानक का अंत प्रेरणा के पथ पर अग्रसर करते हुए स्वतन्त्र कर देता है।
लेखक: निशान्त जैन
यह किताब प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले हिंदी मीडियम के युवाओं को केंद्र में रखकर लिखी गई है।
इस किताब में कोशिश की गई है कि हिंदी पट्टी के युवाओं की ज़रूरतों के मुताबिक़ कैरियर और ज़िंदगी दोनों की राह में उनकी सकारात्मक रूप से मदद की जाए। इस किताब के छोटे-छोटे लाइफ़ मंत्र इस किताब को खास बनाते हैं। ये छोटे-छोटे मंत्र जीवन में बड़ा बदलाव लाने की क्षमता रखते हैं।
इस किताब की कुछ और ख़ासियतें भी हैं। इसमें पर्सनैलिटी डेवलपमेंट के प्रैक्टिकल नुस्ख़ों के साथ स्ट्रेस मैनेजमेंट, टाइम मैनेजमेंट पर भी विस्तार से बात की गई है। चिंतन प्रक्रिया में छोटे-छोटे बदलाव लाकर अपने कैरियर और ज़िंदगी को काफ़ी बेहतर बनाया जा सकता है। विद्यार्थियों के लिए रीडिंग और राइटिंग स्किल को सुधारने पर भी इस किताब में बात की गई है। कुल मिलाकर किताब में कोशिश की गई है कि सरल और अपनी-सी लगने वाली भाषा में युवाओं के मन को टटोलकर उनके मन के ऊहापोह और उलझनों को सुलझाया जा सके।
लेखक: अंजनी कुमार पांडेय
‘इलाहाबाद ब्लूज’ दास्ताँ है साँस लेते उन संस्मरणों की जहाँ इतिहास, संस्कृति और साहित्य की गोद से ज़िंदगी निकल भी रही है और पल-बढ़ भी रही है। इस पुस्तक से गुज़रते हुए पाठकों को यह लगेगा कि वो अपने ही जीवन से कहीं गुज़र रहे हैं। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ की गँवई ज़मीन से शुरू हुई यह यात्रा इलाहाबाद होते हुए यूपीएससी, धौलपुर हाउस और दिल्ली तक का सफ़र तय करती है। ‘
इलाहाबाद ब्लूज’ एक मध्यमवर्गीय जीवन की उड़ान है। इसलिए इसमे जहाँ गाँव की मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू है, वहीं इलाहाबाद की बकैती, छात्र जीवन की मसखरी और फक्कड़पन भी इस पुस्तक की ख़ासियत है। मिडिल क्लास ज़िंदगी के विभिन्न रंगों से सजे हुए संस्मरण बहुत ही रोचक एवं मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किए गए हैं। इसमें एक बोलती-बतियाती, जीती-जागती ज़िंदगी है, संघर्ष है, प्रेम है, पीड़ा है, अथक जिजीविषा है और अंत में कभी भी हार ना मानने का दृढ़-संकल्प है। पहले से आख़िरी पृष्ठ तक आप कब स्वयं 'अंजनी' होते हुए इस पुस्तक से निकलेंगे, यह आपको एहसास ही नहीं होगा।.
लेखक: ललित कुमार
आप परेशान हैं?... एक के बाद एक समस्याएँ जीवन में आती ही रहती हैं... तो क्या आपको लगता है कि जीवन की प्रॉबलम्स कभी खत्म नहीं होंगी? क्या आप जीवन में हार मान रहे हैं?...
जिस तरह शरीर को अलग-अलग विटामिन चाहिए -- उसी तरह हमारे मन को भी आशा, विश्वास, साहस और प्रेरणा जैसे विटामिनों की ज़रूरत होती है। लेखक ललित कुमार इन सभी को मनविटामिन कहते हैं। "विटामिन ज़िन्दगी" एक ऐसा कैप्स्यूल है जिसमें ये सभी विटामिन मिलते हैं।
हमारा सामना समस्याओं, संघर्ष, चुनौतियों और निराशा से होता ही रहता है -- इन सबसे जीतने के लिए हमारे पास ‘विटामिन ज़िन्दगी’ का होना बेहद आवश्यक है।
विटामिन ज़िन्दगी एक किताब नहीं बल्कि एक जीवन है -- एक ऐलान है कि इंसान परिस्थितियों से जीत सकता है। एक बच्चा जिसे चार साल की ही उम्र में ही पोलियो जैसी बीमारी हो गई हो -- उसने कैसे सभी कठिनाइयों से जूझते हुए समाज में अपना एक अहम मुकाम बनाया -- यह किताब उसी की कहानी कहती है। ज़िन्दगी में आने वाली तमाम चुनौतियों को लेखक ने किस तरह से अवसरों में बदला -- यह उसी सकारात्मकता की कहानी है।
ललित का सफ़र "असामान्य से असाधारण" तक का सफ़र है। पोलियो जैसी बीमारी ने उन्हें सामान्य से असामान्य बना दिया, लेकिन अपनी मेहनत और जज़्बे के बल पर उन्होंने स्वयं को साधारण भीड़ से इतना अलग बना लिया कि वे असाधारण हो गए। इसी सफ़र की कहानी समेटे यह किताब ज़िन्दगी के विटामिन से भरपूर है।
इस किताब में सभी के लिए कुछ-न-कुछ है जो हमें हर तरह की परिस्थितियों का सामना करना सिखाता है।
इन पुस्तकों के अलावा भी यहां बहुत सी बेहतरीन पुस्तकें है जो आपकी जिंदगी बदल सकती है। आपकी जिंदगी में बदलाव लाने वाली किताब कौन सी है, हमें बताएं, हम अवश्य सूची में शामिल करेंगे।
पुस्तक समीक्षा
पुस्तक: भंवरजाल का मल्लाहलेखक: बिन्नी आरजे
बिन्नी आरजे द्वारा लिखी गई रहस्य सागर सीरीज की यह पहली नॉवेल है।
अगर आपको हैरी पॉटर जैसी यानी हैरतअंगेज और रहस्यमयी कहानियां पसंद है तो यह पुस्तक आपके लिए है।
विज्ञान और अध्यात्म का बखूबी मिश्रण लिए यह कहानी है महारानी अरिहा नीलकमल एक मां के प्यार की, आमेट त्रिक्ष और सरांग के निश्छल प्रेम की...यह कहानी रहस्यो से भरी भूत और वर्तमान घटनाओं का सुंदर समावेश लिए हुए आपको हर मोड़ पर रोमांचित करती है। इसकी एक झलक देखिए...
"बार बार अपनी मन की शक्तियों से खुद को स्वस्थ कर चुके पुण्या की ऊर्जा कुछ कम हो गयी थी, वो जमीन पर थका पड़ा हुआ सत्या से हाँफते हुए कहता है। ...
इस बार सुरक्षा कवच का निर्माण कहीं अधिक मजबूत करियेगा। अभी हमें उत्तर से दक्षिण की और टेलीपोट होते कईं लोगो ने देख लिया। हमारी वास्तविकता वर्तमान में उजागर हो यह ठीक नहीं। "
इस पुस्तक की सबसे बड़ी खासियत है इसकी रिसर्च और हर अध्याय से जुड़े कलर पेजेस जो हर अध्याय को और भी ज्यादा रोमांचक बनाता है।
लेखिका ने कथानक और चरित्र चित्रण बहुत अच्छे से किया है। हर पात्र कुछ कहता है, चाहे वो पुण्या हो, सत्या हो या फिर लाल नीली आंखों वाला आतरये पहेली। कई बार पढ़ते समय खुद को वहां महसूस करने लग जाना, लेखिका की कामयाबी बयान करता है। इसके लिए वो बधाई की पात्र है।
उनकी भाषा शैली में भी तत्सम शब्दों के साथ आधुनिक शब्दों का भी गजब मिश्रण देखने को मिलता है। जैसे
"शायद ठंड की पराकाष्ठा थी या फिर अंतहीन दर्द की--- पर आज ये आँखों से लुढ़क ही गया-- और बंजर रेगिस्तान सा कर गया सदा के लिए अरिहा के भूरे नयनों को--- पर उसके आँसू के उस आखिरी कतरे में सब्र की शीतलता थी, जिस से कहीं मिलों दूर धधकती ज्वालामुखी के लावे को पल भर के लिए ठंडक नसीब हो गया।"
"एक शापित राजकुमारी के जीवन में सच्चा प्यार लिए दस्तक देता है,एक राजकुमार। दोनो अपने गमो को दरिया में बहा अपनी खुशियों में खो जाते है,लेकिन उनकी गम की पोटली से एक दिन एक जादूगर पहेली वापस लौट आता है,उनकी जिंदगियों की हर खुशी को निगलने के लिए..."
बिन्नी जी ने इस विषय पर काफी मेहनत की है। और पाठकों को हर पन्ने पर चौकाने की पूरी कोशिश की है। यह एक सकारात्मक सोच की किताब है। और खासियत यह है कि यह हर आयु वर्ग के लिए है।
इसे हर किसी को एक बार जरूर पढ़ना चाहिए।