शुक्रवार, 2 अप्रैल 2021

thugmanush / ठगमानुष: क्या आप जानते हैं की ठग .....








        लगभग 300 सालों (1500- 1800) तक भारत के यात्रियों में एक खौफ था, क्यूंकि लोग अचानक से गायब हो जाते थे। चूँकि यात्राएं पैदल या किसी घोड़े - गधे पर की जाती थी और दूरसंचार का कोई अन्य माध्यम ने था इसलिए कोई नहीं जानता था की उनके साथ क्या हुआ होगा। वे देवीय रूप से अचानक गायब हो जाते, और फिर कोई खोज खबर नहीं मिलती थी। लोग इसे दैवीय प्रकोप समझते थे, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं था। यह किसी दैवीय प्रकोप से कहीं अधिक भयानक और डरावना था।

    ऐसी घटनाओं से बचने के लिए लोग अकेले यात्रा करना सुरक्षित नहीं समझते थे इसलिए वे यात्रियों का समूह बनाते और फिर समूह में यात्रा करते थे।

बस ! यहीं से शुरू हो जाता था यात्रियों की मौत का सफर।





    ये घटनाएं सिर्फ मौत तक सीमित नहीं थी, ये अंग्रेजों के अहंकार पर भी एक चोट थी की उनके होते हुए उनसे अधिक शातिर और क्रूर और कौन हो सकता है ? यही कारण रहा की अंग्रेजों ने एक अलग विभाग बनाया (जिसे आज इंटेलिजेंस ब्यूरो के नाम से भी जाना जाता है।) और पता लगाया की यह सब अंजाम देने वाले हैं कौन। और तब एक बहुप्रचलित शब्द सामने आया “ठग “

    ठग, मौत की देवी माँ भवानी की पूजा करते थे। ठग “जगीरा” के अनुसार, “यह माँ भवानी का आशीर्वाद है, वह खुद हमें शिकार भेजती है। हमें, शिकार के खून का एक भी कतरा व्यर्थ किये बिना, माँ भवानी को समर्पित करना है। ठगों की हर नई पीढ़ी ऐसा करने के लिए प्रतिबद्ध है।”



  
      ठग “जगीरा” अपने साथियों के साथ यात्रियों से मिलता, उनका विश्वास जीतता और उनके साथ शामिल हो जाता। फिर रास्ते में अन्य ठग भी यात्रियों के रूप में उस दल में शामिल होते जाते। वे मजाक मस्ती करते हुए यात्रा करते, नाच गाना करते, किस्से कहानियां सुनाते और फिर मौका मिलते ही अपने काम को सलीके से अंजाम देते।
    
    उनके पास कभी किसी तरह का कोई हथियार नहीं होता था, वे सिर्फ एक रुमाल और सिक्के की मदद से गला घोंट कर हत्या करते थे। वे ऐसा इसलिए नहीं करते थे की यह आसान था बल्कि यह उनकी मान्यता थी की खून का एक भी कतरा व्यर्थ नहीं होना चाहिए । उनके अपने रीती रिवाज और कानून थे।
        
प्रसिद्ध उपन्यास “ठगमानुष” के अनुसार ठगों के कई गिरोह सक्रिय थे। ठगों के पास एक पुस्तैनी मानचित्र होता था जिसके लिए ठगों के समूहों में अक्सर लड़ाइयां होती थी, माना जाता था की जिस गिरोह के पास यह मानचित्र होगा वह ठगों का “सरदार” होगा।


“ठगमानुष” के अनुसार, ठगों का सरदार “जगीरा” उस पुस्तैनी मानचित्र में हर सम्भव रास्तों और अपशकुन देख सकता था। वह मानचित्र को देवी का आशीर्वाद समझता था।





ठगों का उदय कब हुआ, इसका कोई प्रमाणिक तथ्य मौजूद नहीं है परन्तु अठारवीं सदी में ठगों के पुनरोदय पर लेखक सुभाष वर्मा द्वारा लिखित यह उपन्यास इतिहास की एक खौफनाक सच्चाई को बयाँ करती एक खूंखार कल्पना है जिसमे ठगों के गिरोह की लूटपाट की यात्रा का वर्णन है।

ठगमानुष” के अनुसार “जगीरा” और उसके साथियों ने अंग्रेजो को भी नहीं छोड़ा। ठगों ने भेष बदलकर क्रांतिकारियों के साथ मिलकर न जाने कितने ही साहूकारों और अंग्रेजों के चाटुकारों को लूटा और मार डाला। वे राजाओं और नवाबों से समझौता करके उनके राज्य को लूटते और एक निश्चित रकम राजकोष में जमा करते। ठगों के गिरोह में दगा करने वाले को मौत की सजा दी जाती थी, ऐसे ही छल कपट के कारण जगीरा पकड़ा भी गया।

इस उपन्यास को पढ़ना किसी वारदात को अंजाम होते देखने से कम नहीं, इतनी क्रूरता और खौफनाक मंजर को शब्दों में इस तरह पिरोया गया है की पढ़ने वाला शिहर उठे।

#thugmanush 
Book>>   Thugmanush

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