~ डॉ.सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
ओ भी क्या दिन थे बचपन के ,
आज मुझे बहुत हैं ओ भाते !
चाहता भूलना पर भूल न पाता ,
पल - पल याद सभी हैं आते ।। 1 ।।
कभी रूठना - गुस्सा करना ,
हँसना - रोना और चिल्लाना ।
पापाजी ने यदि डाँट लगाई ,
गोदी मे मम्मी की छुप जाना ।। 2 ।।
इच्छा से पढ़ना खेलना कूदना ,
छुपकर के खूब मौज मनाना ।
पकड़े गये रंगे हाथ जो यदि ,
बहाने तरह - तरह बनाना ।। 3 ।।
साथियों के संग झगड़ा करना ,
तो कभी मिल एक हो जाना ।
सर-मैडम यदि आवाज लगादें ,
डरकर के चुपचाप हो जाना ।। 4 ।।
नजर बचाकर नटखट करना ,
हम सबको खूब था भाता ।
कोई शिकायत करता था जब ,
तब मैं तो था बहुत घबराता ।। 5 ।।
पढ़-लिख तब जीवन तरासना ,
लगता था पहाड़ सा अतिभारी ।
लेकिन उसी तप के प्रतिफल ,
सफलतायें मिली हमें ये सारी ।।6 ।।
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