सोमवार, 2 मई 2022

" बचपन के दिन "

~ डॉ.सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी

ओ भी  क्या दिन थे बचपन के ,
आज  मुझे  बहुत  हैं  ओ भाते !
चाहता भूलना पर भूल न पाता ,
पल - पल  याद  सभी हैं  आते ।। 1 ।।

कभी  रूठना  -  गुस्सा  करना ,
हँसना - रोना  और   चिल्लाना ।
पापाजी  ने  यदि  डाँट  लगाई ,
गोदी मे  मम्मी की  छुप जाना ।। 2 ।।

इच्छा से पढ़ना खेलना कूदना ,
छुपकर के खूब मौज  मनाना ।
पकड़े  गये  रंगे हाथ जो यदि ,
बहाने   तरह  -  तरह  बनाना ।। 3 ।।

साथियों के संग झगड़ा करना ,
तो कभी  मिल  एक हो जाना ।
सर-मैडम यदि आवाज लगादें ,
डरकर के  चुपचाप  हो  जाना ।। 4 ।।

नजर बचाकर  नटखट  करना ,
हम  सबको   खूब  था   भाता ।
कोई शिकायत  करता था जब ,
तब  मैं तो था  बहुत  घबराता ।। 5 ।।

पढ़-लिख तब जीवन तरासना ,
लगता था पहाड़ सा अतिभारी ।
लेकिन  उसी  तप के प्रतिफल ,
सफलतायें मिली  हमें ये सारी ।।6 ।।

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