मजदूर दिवस पर विशेष :-
हम आते हैं / हम आते है
अपना लहू बहाते हैं
जीवन रस का बूंद बूंद हम धरती पर टपकाते हैं
बादल की बूदों से बनता सागर
हम भव्य अट्टालिका बनाते हैं
हम आते हैं / अपना लहू बहाते हैं
जीवन की इस धारा में हम
किसान मजदूर कहते हैं
खेतों से लेकर सड़कों तक हम मेज
जीवन को सरल बनाते हैं
हम आते हैं / अपना लहू बहाते हैं
नगर बनाते - शहर बनाते
सड़कों पर रात बिताते हैं
खेतों में अन्न उगाने पर भी
भूखें पेट सो जाते है
हम आते हैं / अपना लहू बहाते हैं
बड़े - बड़े महल अटारी वाले
आज मजदूर दिवस मनाते हैं
जीवन रस की खोज में हम
प्यासे ही सो जाते है
हम आते हैं / हम आते है
अपना लहू बहाते हैं
लेखक : अरविंद कुमार
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