शुक्रवार, 1 मई 2020

हम आते हैं

मजदूर दिवस पर विशेष :-

हम आते हैं  / हम आते है 
अपना लहू बहाते हैं 
जीवन रस का बूंद बूंद हम धरती पर टपकाते हैं 
बादल की बूदों से बनता सागर
 हम भव्य अट्टालिका बनाते हैं 
हम आते हैं  / अपना लहू बहाते हैं 

जीवन की इस धारा में हम
 किसान मजदूर कहते हैं 
खेतों से लेकर सड़कों तक हम मेज
जीवन को सरल बनाते हैं
 हम आते हैं  / अपना लहू बहाते हैं 

नगर बनाते - शहर बनाते 
सड़कों पर रात बिताते हैं 
खेतों में अन्न उगाने पर भी 
भूखें पेट सो जाते है 
हम आते हैं / अपना लहू बहाते हैं 

बड़े - बड़े महल अटारी वाले 
आज मजदूर दिवस मनाते हैं 
जीवन रस की खोज में हम 
प्यासे ही सो जाते है 
हम आते हैं  / हम आते है 
 अपना लहू बहाते हैं

लेखक : अरविंद कुमार 

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