शुक्रवार, 15 मई 2020

कुछ मुक्त कविताएं : भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"

साहित्य सारथी
मुझसे थोड़ा दूर ही रहो तो अच्छा है बदनसीब हूं पास न आओ तो अच्छा है। ब
ड़ी बड़ी बातों से डर लगता है मुझे झूठी बातें न सुनाओ तो सबसे अच्छा है। सूंघना अच्छा है सुगंध से डर लगता है माला पुष्प का न हो तो बहुत अच्छा है। फूल तोड़ना मुझे अच्छा नहीं लगता है सूख कर फूलों का मुरझाना अच्छा है। बचपन में अपने पिता जी से सीखा था कि पेड़ों में भी जीवन जीने की लालसा होती है। बड़ी उमस है हरे भरे पेड़ पौधे सूख जाते हैं पेड़ों को पानी पिलाना इन सबसे अच्छा है। शब्द बहुत अच्छे होते हैं ये पहली बार सुना उसने शब्दों की बेइज्जती करते बुरा लिखा। सुनी सुनाई बातों में कितनी सच्चाई होती है कान दिया तो ये मालूम हुआ शब्द बुरे नहीं। हालांकि उसने कोई गुनाह नहीं किया लेकिन बस इतना कहा मार ही डालूंगा कुछ बोले तो। बात का बतंगड़ बनाते एक अरसा बीत गया गूंगी ने बड़ी मासूमियत से उसे कुछ न कहा। © भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"

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