चाटुकारिता के दौर में,
चातक निराले होते हैं।
भैंस तो निकल जाती है पानी से,
मेंढक बेचारे रोते हैं ।
कर के जुल्म, फिर पनाह ढूंढते हैं
सही में गलत, गलत में श्रेय ढूंढते है।
तालाब मगर गंदा रहता है,
मेंढक बेचारे रोते हैं।
वो चले तो चलो, वो ठहरे तो ठहरो
उनकी हर अदा पर फिदा हैं।
निवाले का हिस्सा, चरणों में चढ़ाकर
मेंढक बेचारे रोते हैं।
नहीं मिलता तालाब, मगर
प्रलोभन निराले होते हैं ।
चाटुकारिता के चंगुल में फंसे
मेंढक बेचारे रोते हैं ।
आंसूओं से तालाब भरे
तालाब से भरी चाटुकारिता
निर्जल जल में उड़ते पंछी, देख
मेंढक बेचारे रोते हैं।
- सारथी
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निवाले का हिस्सा, चरणों में चढ़ाकर
जवाब देंहटाएंमेंढ़क बेचारे रोते हैं।
Kya baat hai👌bhut shi👍