शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2018

पुस्तक समीक्षा :- दीपक तले उजाला


पुस्तक समीक्षा
कृति:- दीपक तले उजाला
पृष्ठ:-94
मूल्य:-100/-
समीक्षक:- राजेश कुमार शर्मा"पुरोहित"
*शिक्षक एवम साहित्यकार*
    लखनऊ की कवयित्री उर्मिला श्रीवास्तव की यह आंठवी कृति "दीपक तले उजाला" पढ़ी। इस कृति की सभी कविताएँ मानव को कुछ न कुछ सीख देती है। इस कृति की पहली काव्य रचना चार घड़ी है। यह जीवन क्षण भंगुर है। जीवन कब तक है किसी को पता नहीं। यह सच्चाई हमेशा याद रहे। ये मानव तन मिलना दुर्लभ है। यदि मिला है तो इसमें अच्छे कर्म करें। बदला,अनकही ,खुद सर,36 की गिनती जैसी रचनाओं से श्रीवास्तव ने जीवन की अच्छाइयों को बताने का प्रयास किया है।

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रविवार, 19 अगस्त 2018

पुस्तक समीक्षा - सच , समय और साक्ष्य


पुस्तक समीक्षा - सच , समय और साक्ष्य 
शिवना प्रकाशन , सीहोर ।
मूल्य - 175 ₹ 

कोमलता से चुभन का यथार्थ एहसास कराती हैं शैलेन्द्र की कविताएं 
        
          बैंक प्रबंधक के पद पर रह कर वित्तीय आंकड़ों में उलझते- सुलझते सेवानिवृत हुए प्रेम और मानवीय संवेदनाओं के कुशल चितेरे कवि ,लेखक और विचारक शैलेन्द्र शरण ने अतिव्यस्तता के बावजूद भी अपनी भावनाओं को निरन्तर प्रवाहित होते रहने दिया जो विभिन्न प्रमुख पत्र / पत्रिकाओं के माध्यम से समय समय पर पाठकों तक पहुंचती रही । 

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शनिवार, 18 अगस्त 2018

पुस्तक समीक्षा - " को अहम "

पुस्तक समीक्षा - " को अहम "
लेखक - अशोक जमनानी
प्रकाशक - श्रीरंग प्रकाशन , होशंगाबाद
मूल्य - ₹250 /-

जिज्ञासाओं के समाधान और कर्मपथ की प्रेरणा देता है , उपन्यास - को अहम 
         
         साहित्य के क्षेत्र में नर्मदांचल के युवा रचनाकार अशोक जमनानी अब अनजाना नाम नही है। वे देश के प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में तो प्रमुखता से लिखते ही हैं । अलावा इसके उनकी प्रकाशित कृतियों ने उन्हें वरिष्ठ और सम्माननीय साहित्य सृजकों की श्रेणी में स्वतः ही सम्मिलित कर लिया है। यही उनके प्रभावी लेखन की एक बड़ी विशेषता भी है । 
        लेखन के साथ ही वे नवोदित रचनाकारों के लिए अलग - अलग स्थानों पर जाकर कार्यशालाएं आयोजित कर उन्हें मार्गदर्शन और लेखन की विधियां बतलाते हुए अक्सर दिख जाते हैं । 
       ओजस्वी , प्रभावी और प्रखर वक्ता तो वे हैं ही। सहज , सरल व्यक्तित्व के धनी अशोक जमनानी का उपन्यास " को अहम " इन दिनों चर्चा में है । इससे पहले उनकी अन्य कृतियाँ - बूढी डायरी , व्यास - गादी , छपाक - छपाक , खम्मा , और अमृत वेलो प्रकाशित हो चुकी हैं । यही नही चार खंडों में उनके कहानी संग्रह भी  प्रकाशित हुए हैं । 
       मुझे अभी उनका उपन्यास - " को अहम " मिला है। इस पर लिखना आसान नही है। 
       " को अहम " का अर्थ ही है - कौन हूँ मैं !
        इसे जानना - समझना इतना आसान नहीं । इसकी खोज में ही अनेक ऋषि - मुनि , संत , महात्माओं ने अपना सारा जीवन खपा दिया । 
.....पर क्या सबको इसका सम्यक उत्तर मिल पाया ? 
फिर कोई युवा व्यक्ति यदि इस प्रश्न के उत्तर की लालसा में विचलित हो जाए और अपने कर्तव्य पथ से हटकर इसके समाधान के लिए निकल जाए तो क्या हो ? क्या यह सिर्फ उसका भटकाव होगा या फिर उसे इसका समाधान भी मिलेगा ? 
       जीवन यात्रा या उससे पलायन को जितना सहज - सरल हम समझते हैं । क्या वह वाकई उतनी  ही सहज सरल है  ? क्या कर्म पथ को बीच में ही छोड़कर ,सन्यासी पथ को अपना लेना उचित है ? 
      " को अहम " कहता भी है - सन्यास हर किसी के लिए जिज्ञासा तो हो सकती है पर यह सबका स्वभाव नहीं हो सकता और जब यह जिज्ञासा शांत होती है तो सन्यास भी व्यर्थ ही लगने लगता है। 
          " को अहम " में - माँ नर्मदा के माध्यम से कहीं सांकेतिक तो कहीं स्प्ष्ट तौर पर बड़े ही सरल संवादों तथा घटनाओं के द्वारा , तर्क और श्रद्धा के भंवर में फंसे जीवन से विचलित युवा " सदानंद " का समाधान किया गया है । यह मनःस्थिति किसी भी वैचारिक व्यक्ति की हो सकती है , जिसे सदानंद के माध्यम से सामने लाया गया है। 
     लेखक नेअपनी भूमिका में पात्र के माध्यम से लिखा है -  " नर्मदा का नदी होना या शिवपुत्री होना एक ही बात है , क्योंकि जब नर्मदा शिव पुत्री है तो शिव का विस्तार है और जब नर्मदा नदी है तो शिवत्व का विस्तार है । " सदानंद का यह कथन वैसे तो श्रद्धा और तर्क के मध्य संतुलन स्थापित करता है लेकिन वही सदानंद अपने जीवन में श्रद्धा और तर्क के बीच संतुलन स्थापित नहीं कर पाया।
     सदानंद के भीतर का यह संघर्ष ही  - " को अहम " में परिणित होकर हमारे सामने आया है। 
     इस उपन्यास में - प्राकृतिक सौंदर्य है । शैक्षणिक स्थिति में गुरु - शिष्य का सामंजस्य है । ग्रामीण परिवेश की उदारता है। मित्रता का अटूट बंधन है। ममतामयी माँ और पिता का स्नेह है तो युवा शिक्षित पुत्र का वियोग और मिलन भी है। सच्चे प्रेम की सार्थकता है तो उसे अनभिज्ञ स्थिति में भी स्वीकार लेने का विश्वसनीय संदेश भी है। छुआछूत , संकीर्णता और पांडित्य लोभ पर प्रहार है तो जीवन को समर्थ बनाने वाले अनेक सूत्र वाक्य भी हैं । 
      " को अहम " में सच्चे गुरु की महत्ता है तो कथित सन्यासियों द्वारा मात्र चेला बनाने का प्रलोभन भी देखने को मिलता है। इसमें जीवन और सन्यास को रेखांकित करते हुए अनेक जिज्ञासाओं का समाधान है तो अंततः कर्म पथ की श्रेष्ठता की फलित प्रेरणा भी है। 
       यदि कहूँ कि - जब तक आप श्रीरंग जी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस उपन्यास को खुद नहीं पढेंगे , तब तक -  " को अहम " अर्थात कौन हूँ मै ?  का समाधान भी नहीं मिलेगा । जीवन के अनेक अनसुलझे प्रश्न अनुत्तरित ही रह जायेंगे । 
अशोक जमनानी द्वारा लिखित इस उपन्यास को पढ़ना तो अवश्य चाहिए ही । 
                      - देवेन्द्र सोनी , इटारसी।
                        9111460478


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रविवार, 24 जून 2018

समीक्षा - निबंध को जीवंतता प्रदान करता है पंकज त्रिवेदी का संग्रह - मन कितना वीतरागी



       अहिन्दी भाषी क्षेत्र गुजरात के सुरेंद्र नगर में यदि किसी साहित्यकार और सम्पादक का नाम ससम्मान और प्रमुखता से लिया जाता है तो वे हैं - श्री पंकज त्रिवेदी जी । 
        वे गुजराती बहुल क्षेत्र में हिन्दी का परचम लहराते हुए हिन्दी साहित्य की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने वाली त्रैमासिक पत्रिका विश्वगाथा का प्रकाशन तो करते ही हैं , साथ ही अनवरत सृजन एवं प्रकाशन भी करते हैं । 
        राजस्थान पत्रिका से पत्रकारिता और विभिन्न राष्ट्रीय पत्र - पत्रिकाओं में स्तम्भ लेखन के साथ ही उन्हें कहानी , कविता ,लघुकथा ,निबंध , रेखाचित्र और उपन्यास लेखन में भी प्रवीणता प्राप्त है। अलावा इसके अनेक सम्मानों से सम्मानित श्री त्रिवेदी की रचनाओं का आकाशवाणी और दूरदर्शन पर भी निरंतर प्रसारण होता रहता है। 
       अभी हाल ही में शिक्षाविद श्री पंकज त्रिवेदी का निबंध संग्रह - " मन कितना वीतरागी " मुझे प्राप्त हुआ है। 
      अचंभित हूँ आज के इस दौर में जब निबंध लेखन विधा लगभग गौण होती जा रही है , ऐसे में उनके चिंतनात्मक 130 लघु निबंध पाठकों के मन में आशा जगाते हैं ।

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शनिवार, 9 जून 2018

'बेबस बेटी'



जाती है दुल्हन थापे घृत के मायके में लगाये,ससुराल की दहलीज लांगती है ससुरालीजनों से 
अपनों सी आश लगाये,
होता है जब उसी जगह दुर्व्यवहार उस से तो मायके की प्रीत रह-रह के रुलाये,

पौंछती है नीर सोच के शायद मिले कभी प्यार उनसे जिनसे मैंने ह्रदय के है धीर लगाये,
आज नहीं तो कल हो जायेंगे ये मेरे अपने, हे ! ईश, दिन जल्दी से वो आये,

लाऊँगी मैं अनुराग सभी में इतना कि कोप,कपट गैर की भावना ऐसे जाए 
कि भूले से भी फिर आने की सोच न लाये,

धर्म मेरा,कर्तव्य मेरा, विनोद में सबको जोडूं,ननद-देबर की दूजी माँ, भाभी माँ मैं 
और सास-ससुर मात-पिता से मेरे,
ससुराल का घर मेरा ये प्रेम में हो ऐसे सराबोर कि
 साक्षात कान्हा जी का ये मंदिर बन जाये,

मैं न शब्द कोई मुँह से निकालूंगी चाहे कितने भी घात तन को छलनी कर जाये,
सहूँगी मैं तब तक जब तक प्राण न निकल जाये 
क्यूँकि माँ-पापा ने सिखाया था मुझे कि बेटी, मायके से डोली में विदा हुई 
तू ससुराल से विदाई एक ही बार हो कि अर्थी में तू जाये
 लेकिन कभी न तू ऐसा कुछ करना कि मायके की लाज जाये,

हाँथ जोड़ मैं विनती हूँ करती आपसे(ससुरालीजन) मैं पूरी करूँगी आपकी हर माँग 
अपनी देह को दांव पर लगाये.... पर,
 दहेज की खातिर मुझे जलाकर मेरे मात-पिता को जीते जी ना मारिये,
आपको दहेज देने को मेरी माँ ने अपने जेवर गिरवीं थे 
तब रखवाये और आज भी पूरी कर रहे है माँग आपकी मेरे तात जो अब अपने घर-द्वार चुके हैं लुटाये,

मैं बेटी हूँ किसी लाचार माँ और असहाय बाप की तो आपके घर में भी है एक बेटी 
देख उसका मुख मेरे प्रति भी अपनी भावनाओं को क्यूँ न आप जगाये...?

निर्बल हो चुकी हूँ मैं आज तो और भी ज्यादा 
जिस सुयोग्य वर को ढूंढने में मेरे पिता के पैरों ने काटें खाये 
आज उसी ने मेरी रक्षा में न हाँथ उठाये,

थक-हार चुकी हूँ मैं, अब यातनाओं और याचनाओं से नहीं रुकती है
 गर अब आपकी प्रताड़ना तो बेशक मेरे खात्मे को अब लो कदम उठाये
 मगर अब मैं और नहीं करने दूँगी पिता को अपने दहेज की भरपाई...
लगा दो आग मुझे,मेरे बाद फिर और किसी की बेटी को,
जारी रख इस घटनाक्रम को यूँ कर देना जड़ से खत्म हमें, 
ताकि फिर कोई और ना इस धरा पर बेटी आये,

मात-पिता की चिंता 'एक बेटी' की वजह से उनकी चिता बन जाये 
ऐसी बेटी से तो अच्छा है दुनिया की हर बेटी मर जाये......
अब और ना इस धरा पर कोई बेटी आये अब और ना इस धरा पर कोई बेटी आये।

After a long time, I publish here my poetry...Plz must read...🙏
Ritika(preeti{preet}samadhiya.....
Please Try To Be A Good Human Being...✍

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सोमवार, 23 अप्रैल 2018

इस हरियाणे मैं, के मरोड़ सै।

खड़ी बोली, अर ऊँची नाक 
दिल का थोड़ा कठोर सै। 
रिडक - झिड़क कै, भिड़कै  मरज्या 
न्यू बाताँ का सा तोड़ सै। 
न्यूए ना बुज्झै कोए 
इस हरियाणे मैं, के मरोड़ सै। 

खाली बस्ते अर फौजी दस्ते 
खेलां का गठजोड़ सै। 
हांस कै बतलाले, तो जान तै  प्यारे 
ना तो, सांसा का भी तोड़ सै। 
न्यूए ना बुज्झै कोए 
इस हरियाणे मैं, के मरोड़ सै। 

धरती खोद सोना उगादे 
काम का पूरा खोर सै। 
चालै  गोली, तो सीना अड़ादे
न्यू , बॉर्डर पै भी शोर सै 
न्यूए ना बुज्झै कोए 
इस हरियाणे मैं, के मरोड़ सै।  

दूध दही ओर टिंडी घी 
पशुधन का जोर सै। 
असली धन तै, युवा म्हारे 
जिनकी, अंतरिक्ष तक दौड़ सै।  
न्यूए ना बुज्झै कोए 
इस हरियाणे मैं, के मरोड़ सै 

     -   सुभाष वर्मा 

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गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

लघु कहानी - दादी का प्रेम



         शांतिधाम में दादी की चिता को मुखाग्नि देते हुए रमेश के आंसू थमने का नाम नही ले रहे थे । उसके पिता भी प्रायश्चित की वेदना में दग्ध होते हुए रमेश के कांधे को सहलाकर उसे सांत्वना दे रहे थे मगर रमेश पर अपने पिता की इस संवेदना का जैसे कोई असर ही नही हो रहा था । वह उन्हें  हिकारत की नजर से देखता और परिक्रमा के लिए आगे बढ़ जाता । श्रद्धाजंलि के पश्च्यात एक एक करके सभी चले गए । रह गए तो सिर्फ पिता और पुत्र । विषाद में डूबे रमेश को कई बार पिता ने घर चलने को कहा पर रमेश टस से मस भी नही हुआ । 
      रोते रोते उसकी आँखे सूज गई थीं । श्मशान की खामोशी और मंद होती चिता की अग्नि ने जब उसे अँधेरे का एहसास कराया तब न चाहते हुए भी रमेश उठा और लड़खड़ाते कदमों से धीरे - धीरे घर लौट आया । रात को बाहर दालान में डली बिछात पर अधमरा सा वह जैसे ही लेटा आसमान में छिटके तारों ने उसकी यादों की पोटली खोल दी । कितनी अलग अलग कहानियां सुनी थी उसने अपनी दादी से इन तारों के बारे में । जितना वह उससे प्रेम करती थीं उतना ही तो इन तारों से भी करती थी। इन्ही तारों में से कोई एक तारा था जो उसके दादाजी थे । दादी कहती थी - मृत्यु के बाद सब तारा बन जाते हैं और हम सबको देखते रहते हैं ।

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गुरुवार, 29 मार्च 2018

लघु कहानी - आत्मबल


         घर के काम काज से निपट कर सुनीता थोड़ा आराम करने के लिए लेटी ही थी कि तभी उसके मोबाइल की घन्टी बजी । सुनीता ने फोन उठाकर देखा तो उसकी सहेली रमा का फोन था । 
         रमा ने बताया अगले सप्ताह साहित्यकारों का तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय आयोजन मुंबई में हो रहा है। अभी - अभी उसका आमंत्रण आया है । लिस्ट में तेरा भी नाम है। आने - जाने का सारा खर्च संस्था ही उठायेगी और मानदेय भी देगी । 
       मैं तो जा रही हूँ। तू भी चलने की तैयारी कर ले । चलेगी न ...। 
       रमा की बात सुनकर , सुनीता निराश हो गई । बुझे मन से बोली - अरे सुनीता । मैं भला कैसे जा सकती हूँ । आज तक कभी स्थानीय आयोजनो के अलावा कहीँ गई नही । एक - दो बार शहर से बाहर गई भी तो सुशील साथ ही गए थे । अब तीन दिन के लिए भला सुशील मेरे साथ कैसे जा सकते हैं । उन्हें छुट्टी ही नही मिलेगी । फिर घर कौन संभालेगा । 
      अरे यार रमा । तू भी कैसी बात करती है । मैं भी तो अकेली जा रही हूँ । मुझे तो मेरे पति कभी मना नही करते । आने जाने से ही सम्पर्क बनते हैं ।

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सोमवार, 26 मार्च 2018

लघु कहानी - पिता का विश्वास

लेखक : देवेन्द्र सोनी

       अपने पिता का अंतिम संस्कार कर लौट रहे सिद्धार्थ की आँखों से अविरल धारा वह रही थी । वह अपने साथ वापस हो रही भीड़ के आगे - आगे चल जरूर रहा था पर उसका मन उसी तेजी से पीछे भाग रहा था।  साथी उसके कंधे पर हाथ रखकर सांत्वना दे रहे थे पर वह जानता था ये आंसू दरअसल उसके मन में चल  रहे प्रायश्चित के आँसू भी हैं । 
      उसे रह रह कर अफ़सोस हो रहा था कि वह अपने पिता के कहे अनुसार क्यों नही चला। क्यों उसने वह सब किया - जिनसे पिता हमेशा दूर रहने के लिए कहते थे । 
       बेचैन मन लिए वह जैसे तैसे थके कदमों से घर पहुंचा पर अब उसे कोई कुछ बोलने वाला नही था । कोई उसे प्यार और निस्वार्थ भाव से समझाने वाला नही था। वह एकांत में जाकर फिर फूट फूट कर रोने लगा ।     उसे लग रहा था कि - हो न हो , उसका विजातीय विवाह ही पिता की मृत्यु का कारण बना है । अभी पिछले महीने ही तो उसने पिता को बताए बिना अपनी मर्जी से मंदिर में शादी की है । एक बार भी उसने पलट कर पिताजी का आशीर्वाद लेना उचित नही समझा और शहर से बाहर चला गया । बिना यह सोचे कि उसके बगैर मां पिताजी का क्या हाल होगा । 

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शुक्रवार, 23 मार्च 2018

सहारे

जरा हटके - नई कविता 

जिंदगी में अक्सर हम 
बिना कुछ सोचे - समझे
छोड़ देते हैं अपना ठिया 
किसी सहारे के बल पर ।

लेकिन जब ये सहारे 
निकलते हैं अंदर से 
बलहीन और खोखले , तो -
दोराहे पर होते हैं हम ।

खुलती है जब तक
आँख हमारी 
खा चुके होते हैं हम धोखा
और खो चुके होतें हैं 
गिरकर , सम्हलने का मौका

बिखरना ही फिर -
बन जाता है नियति ।

इसलिए छोड़ने से पहले
अपना ठिया 
परख जरूर लें - 
मिल रहे सहारे को , कि - 
बनाएंगे ये हमको सशक्त 
या कर देंगे निःशक्त ?

      - देवेंन्द्र सोनी , इटारसी


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बुधवार, 21 मार्च 2018

लघु कथा - ह्रदय परिवर्तन

 लघु कथा  - ह्रदय परिवर्तन


           साठ वर्षीय रमा का ह्रदय उस वक्त परिवर्तित हुआ जब उसकी सहेली शारदा ने फोन पर सूचना दी कि - रमा तेरी इकलौती बेटी सुनीता सरकारी अस्पताल में मौत से जूझ रही है , आधा घण्टे के अंदर ही उसने एक के बाद एक तीन कन्याओं को जन्म दिया है और अब वह खुद खतरे में है। सुनीता की ससुराल वाले उसे अस्पताल में मरने के लिए छोड़ कर चले गए हैं । उन्हें तीन बेटियों के जन्म की कोई खुशी नही है। सुरेश भी बेमन से बस अपना पति धर्म ही निभा रहा है। उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नही है। वह उन्हें पालने की स्थिति में नही है। मुझसे पैसे मांग रहा था। मैं अभी अस्पताल से सुनीता को देख कर लौटी हूँ । सुनीता अपने अंतिम समय में बस तुझे ही याद कर रही है , रमा। 
       मेरी मान एक बार मिल आ सुनीता से। तुझे देखते ही शायद वह जी उठे । उसे तेरी मर्जी के खिलाफ शादी करने का बेहद अफ़सोस है। वह माफ़ी मांगना चाहती है तुझसे रमा। क्या अंतिम समय में भी अपनी बेटी को माफ़ नही करेगी - कहकर शारदा ने फोन काट दिया। 

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शुक्रवार, 9 मार्च 2018

ज्ञानी चोर और महकदे


अपनी मंडली के साथ नाच -गाने में मस्त चोरों के सरदार ज्ञानी चोर को अपने ही एक साथी ने कुछ मत्वपूर्ण कार्य की सुचना दी, इशारा पाते ही सभी साथी अपने गुप्त स्थान पर पहुंचे ǀ
-    - क्या बात है जैल सिंह, इतने मायूस ... क्या खबर है ǀ
-    - सरदार ....  मैं पिछले चार दिन से ये सब देख रहा हूँ, रोज संध्या समय नदी किनारे स्नान करते समय मुझे ये तख्ती दिखाई देती है ( तख्ती आगे करते हुए ), पर कुछ समझ नही आया, परन्तु ....
-   -  क्या लिखा है, पढो तो ..... सरदार ने मुछों को ताव देते हुए कहा ǀ 
-   -  लिखा है “ कोई हिन्दू भाई मदद करे, अली महल से आजाद करे: महकदे “ ......... सरदार कोई दुखिया है जो मदद की उम्मीद से हर रोज ये तख्ती लिखती है और पानी में बहा देती है ǀ
-  -   बेचारी है तो दुखिया पर हम इसमें क्या मदद कर सकते हैं, हमें इसे आगे बहा देना चाहिए ताकी सल्तु सुलतान इसे देख सके और मदद कर सके ...... टोली में बेठे एक साथी ने कहा ǀ
-  -   नहीं .... वो हमारी हिन्दू बहन है, हम उसे ऐसे हालत में कैसे छोड़ सकते हैं .... दुसरे ने कहा ǀ
-  -   परन्तु, हजरत सुल्तान अली एक खूंखार राजा है, हम लोग उसका क्या मुकाबला कर सकते हैं, और राजा लोग तो वैसे भी किसी भी महिला को अपने साथ अपनी पटरानी बनाकर रख सकते हैं ǀ .... तीसरे ने कहा
-   -  कोई महिला हमें भाई कहे और अपनी रक्षा की उम्मीद करे, और हम उसे उसके हालात पर छोड़ दें /  हमें उसकी सहायता करनी होगी, किसी भी कीमत पर ..... चोरो के सरदार ज्ञानी ने कहा, मैं कल ही उसकी सहायता के लिए निकलता हूँ ǀ
-   -  मगर सरदार, “राजा के महल सु हम कीमती हीरा चुरा सकत है पर इ .... महकदे ” .... पान चबाते हुए टोली के एक अन्य सदस्य ने कहा ǀ
-    - लोग मुझे ज्ञानी चोर कहते हैं, जो चाँद की चांदनी भी चुरा सकता है ..... सरदार ने मुछों पर ताव देते हुए कहा ǀ
सब लोग अपने अपने कक्ष में चले गये ǀ
अहमद पुर सल्तनत यहाँ से 70 कोस दूर पश्चिम में है, रस्ते में घना जंगल, पैदल का रास्ता भी दो दिन का है, खैर जाना तो है ही ǀ
रात के सन्नाटे में बार - बार किसी धवनि को सुनने की कोशिश में कान लगाये सरदार कुछ सोचने में वय्सत थे ǀ
दूर- दूर तक ज्ञानी चोर के चर्चे थे, अगर किसी कीमती चीज पर नजर रखी जाती तो सिर्फ इसलिए की कहीं ज्ञानी चोर को पसंद न आ जाये, वो चीजों को सिर्फ पसंद नहीं करता बल्कि अधिकार करता था, चाहता नहीं पाता था, भगवान से मांगता नहीं बल्कि समर्पित करता था ǀ
अगली सुबह सरदार विधिवत अपने कार्य के लिए निकल पड़े, गले में मालाओं का ढेर, हाथ में कमंडल, बड़ी - बड़ी दाड़ी, हाथ में लाठी, कंधे पर झोला, साधू के भेस में पश्चिम की और बढ़े जा रहे थे, जहाँ भी जाते, “जय श्री राम” नाम के साथ लोगों से मुलाकात होती, लोग अपना दुःख सुनाते, अपने झोले से कुछ मोती, कीमती जवारात निकाल जरूरत मंद को देते, उन्हें कुछ उपदेश देते और आगे बढ़ जाते ǀ
घने जंगल ने गुजरते गुजरते थक चुके थे, कहीं विश्राम करने की जगह तलाश रहे थे की सामने एक झोंपड़ी दिखाई दि, पास गये तो देखा की दो साधू झगड़ रहे थे ...... तीसरे साधू को देख झेप गये ǀ
-    - गुरु की अनुपस्थिति में आपस में झगड़ना आप ज्ञानी मानुसों को शोभा नहीं देता ǀ
-    - माफ़ करें .... कुछ दिन पहले ही हमारे गुरु सवर्ग सिधार गये .. हम दोनों बस सम्पति के बंटवारे के लिए झगड़ रहे थे ǀ
-    - तुम दोनों आपस में बाँट क्यूँ नही लेते, इतने बड़े ज्ञानी, इतनी मोह माया ..... मेरा यहाँ क्या स्थान .... मुझे जाना चाहिए ..  
-    -  नहीं - नहीं महाराज, हमें माफ़ करें .... आप समझदार है ...आप ही हमारा बंटवारा कीजिये न ǀ
-    -  क्या तुम दोनों को मेरे बंटवारे की सर्त मंजूर होगी ?
-    -  हाँ महाराज ..... दोनों एक साथ बोल उठे ǀ
-   -   ठीक है, जो भी कीमती चीजें तुम्हारे पास है वो सुब मेरे सामने रखो ǀ
-    -  कीमती चीजों में हमारे पास सिर्फ ये तीन चीजें हैं .... एक ने सामने रखते हुए कहा ǀ
-    - ठीक - ठीक बंटवारे के लिए मुझे जानना होगा की इनकी क्या क्या खासियत है, कोन सी वस्तु कितनी अहम् है
-   -   जी महाराज, मैं बताता हूँ ǀ

  • महाराज ये “लाल गुदड़ी” है, कोई भी मनुस्य इसे ओढ़ कर अदृस्य हो सकता है ǀ
  • ये “दोसेर जड़ी’ है, जिसे दोनों तरफ से अलग अलग प्रयोग किया जाता है, इधर से पानी में मिलाकर पीने से कोई भी मनुस्य जानवर बन जाता है और इधर से प्रयोग करने पर फिर से मनुस्य बन जाता है ǀ
  • और ये “केसरिया चादर “ जिस पर बैठ कर कोई भी हवा में उड़ कर किसी भी स्थान पर पहुंच सकता है ǀ

-   -  सुन्दर अति सुन्दर .... आपके गुरु अवस्य ही एक महान ज्ञानी थे, तीनों चीजें अपने अपने महत्व अनुसार बराबर हैं और किसी भी एक के दो हिस्से नहीं किये जा सकते, इसलिए मेरा निर्णय है किसी एक को दो चीजें दि जाये व् दुसरे को सिर्फ एक ǀ
-    - विचार अच्छा है महाराज, मैं पुराना शिष्य हूँ,  इसलिए मुझे दो चीजें लेने का हक है ...एक ने बड़े ही विनम्र भाव से कहा ǀ
-   -  महराज, क्या बड़े होना ही ज्ञान की परिभासा हैं, मैं मेरे गुरु का प्रिय शिष्य था, इसलिए ......
-    - अगर ऐसा है तो मुझे तुम्हारी परीक्षा लेने होगी,
धनुश उठाया और एक तीर उतर दिशा में और दूसरा पश्चिम दिशा में छोड़ा, तुम दोनों में से जो भी इस तीर को पहले लेकर आएगा उसे दो चीजें मिलेगी और दुसरे को सिर्फ एक ... क्या मंजूर है
दोनों हाँ कहकर दोनों तरफ भागे। 

ज्ञानी चोर, एक चोर था, लोग उसके ज्ञान और चालकी का बखान करते थे, परन्तु इस समय वो एक साधू था। 
            ..... जारी   



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शनिवार, 13 जनवरी 2018

शीर्ष 10 नए हिंदी उपन्यास

#1  बनारस टॉकीज 



बनारस टॉकीज़ साल 2015 का सबसे ज़्यादा चर्चित हिंदी उपन्यास है। साल 2016 और 2017 में भी ख़ूब पढ़े जाने का बल बनाए हुए है। सत्य व्यास का लिखा यह उपन्यास काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के छात्रावासीय जीवन का जो रेखाचित्र खींचता है वो हिंदी उपन्यास लेखन में पहले कभी देखने को नहीं मिला। इस किताब की भाषा में वही औघड़पन तथा बनरासपन है जो इस शहर के जीवन में। सत्य व्यास 'नई वाली हिंदी’ के सर्वाधिक लोकप्रिय लेखक हैं।

#2 दिल्ली दरबार 



दिल्ली दरबार छोटे शहरों के युवाओं के दिल्ली प्रवास, प्रेम, प्रयास और परेशानियों की एक प्रहसनात्मक कहानी है। यह लापरवाह इश्क से जिम्मेदार प्रेम की परिणति तक की एक खुशहाल यात्रा है। यह कहानी दरअसल उन लाखों युवाओं के जीवनशैली की भी है जो बेहतर जिंदगी और भविष्य की संभावनाओं के लिए दिल्ली जैसे महानगर का रास्ता लेते हैं। मनोरंजक ढंग से कही गई इस कहानी के केंद्र में टेक्नो गीक 'राहुल मिश्रा' है; जिसका मंत्र है 'सफलता का हमेशा एक छोटा रास्ता है' और विडंबना यह है कि वह इस बात को अपने ही सनकी तरीके से सही साबित भी करता जाता है।कहानी परिधि की भी है जो पूर्वी दिल्ली की एक ठेठ लड़की है और राहुल को लेकर भविष्य तलाश रही है। मूलतः ‘दिल्ली दरबार’ दिल्ली की नहीं, बल्कि दिल्ली में कहानी है जो चलते-चलते प्रेम, विश्वास, दोस्ती और 'जीवन' के अर्थ खोजती जाती है।

#3 मसाला चाय 



Lekhak: Divya Prakash Dubey 

मसाला चाय’ की कहानियाँ आपकी ज़िन्दगी जैसी हैं। कभी थोड़ा ख़ुश, कभी थोड़ा उदास तो कभी दोस्तों के साथ ख़ुशियों जैसे तो कभी सबसे नज़र बचाकर आँसू बहाती हुईं। मसाला चाय को पढ़ना ऐसे ही है जैसे अपने कॉलेज की कैंटीन में सालों बाद जाकर दोस्तों के साथ चाय पीते हुए गप्पे मारना। अगर आप हिन्दी पढ़ना शुरू करना चाहते हैं तो यह किताब आपकी पहली किताब हो सकती है। बिल्कुल बोलचाल की भाषा में लिखी हुई किताब। आपको पढ़ते हुए ऐसा लगेगा जैसे लेखक जैसे लेखक कहानियाँ पढ़कर सुना रहा है। वैधानिक चेतावनी: मसाला चाय जिसको अच्छी लगती है उसको उसको बहुत अच्छी लगती है जिसको बुरी उसको बहुत बुरी।

#4 यूपी 65 




बेस्ट सेलिंग किताबों ‘नमक स्वादानुसार’ और ‘ज़िंदगी आइस पाइस’ के लेखक निखिल सचान का पहला उपन्यास। उपन्यास की पृष्ठभूमि में आइआइटी बीएचयू (IIT BHU) और बनारस है, वहाँ की मस्ती है, बीएचयू के विद्यार्थी, अध्यापक और उनका औघड़पन है। समकालीन परिवेश में बुनी कथा एक इंजीनियर के इश्क़, शिक्षा-व्यवस्था से उसके मोहभंग और अपनी राह ख़ुद बनाने का ताना-बाना बुनती है। यह हिंदी में बिलकुल नये तेवर का उपन्यास है, जो आपको अपनी ज़िंदगी के सबसे सुंदर सालों में वापस ले जाएगा, आपको आपके भीतर के बनारस से मिलाएगा। इस उम्मीद में कि बनारस हम सबके भीतर बना रहे, हम अलमस्त, औघड़ रहें और बे-इंतहा हँस सकें।

#5 नमक स्वादानुसार 


नमक स्वदंसुष बचपन की कल्पनाओं से लेकर मानव अस्तित्व के अंधेरे की खोज करने वाली कहानियों का संग्रह, कहानियां जो आपको उदासीन कर देगा, वह आपकी कहानी बताएगा, जो आपको और उनको झटका देगा, जो आपको अपने पसंदीदा स्थानों पर ले जाएगा।

#6 जिंदगी आस पास 



लघु कथा संग्रह, निखिल की दूसरी पुस्तक है, जिसने अपनी पहली पुस्तक 'नमक स्वदानुसार' की उल्लेखनीय सफलता के बाद किया है। इस पुस्तक में, निखिल अपने पाठकों को एक ऐसी यात्रा के लिए ले जा रही है जो बुनियादी मानव अस्तित्व की पहेलियों को हल करने की कोशिश करता है

#7 बनारस वाला इश्क़ 



किताब 'बनारस वाला इश्क' दो अलग-अलग विचारधाराओं से आ रही एक जोड़ी के बारे में है- जयश्री राम और लाल सलाम। लेखक महाविद्यालय की राजनीति के चारों ओर की कहानी और प्रेम के साथ-साथ कष्टों में खिलते हैं। मुख्य पात्रों के माध्यम से बबून मिश्रा बिहार के गया जिला और उना ठाकुरैन बैठक के आसपास बनारस के सोनल सिंह से टकराव और जुदाई दिखाए गए हैं। कहानी के लेखक प्रभात बांधतल्या बिहार से हैं और किताब, इसलिए, बिहारी माटी को प्रतिबिंबित करती है।

#8 बकर पुराण 



'बकर पुराण' उन सभी स्नातक लड़कों का एक आधुनिक दिन है जो अपने घरों को बेहतर भविष्य की अपेक्षा के लिए छोड़ देते हैं और बंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में रहते हैं, केवल शहरों को अपने घर बनाने के लिए। यह किताब उन सभी लोगों को समर्पित है, जो एक बार प्यार में गिर गईं, बेवकूफ काम करती हैं और पड़ोस के चाय-स्टालों पर चाय के कप पर देश के विदेशी मामलों पर चर्चा करने में कभी नाकाम रही हैं। स्पष्ट और सटीक शब्दों में लिखा हुआ और फैंसी नहीं, यह पुस्तक पिछले, भविष्य और इस स्नातक की उपस्थिति पर प्रकाश डाला जाता है जिसका जीवन हमेशा के लिए समान होगा।

#9 डोमनिक की वापसी 



विवेक मिश्र के इस उपन्यास के केंद्र में एक नाटक है- 'डॉमनिक की वापसी'। इस नाटक के मुख्य किरदार 'डॉमनिक' की भूमिका निभाने वाला अभिनेता है दीपांश जो नियति और यथार्थ के बीच झूलता अपना सफ़र तय करता आगे बढ़ता है और उस समय रंगमंच की दुनिया छोड़ कर दृश्य से गायब हो जाता है जब एक अभिनेता के रूप में वह वो मक़ाम हासिल कर चुका होता है जो उस दुनिया किसी भी कलाकार के लिए एक सपना होता है। यह उपन्यास जीवन में अभिनय और अभिनय में जीवन के दो किनारों के बीच अतीत, वर्तमान और भविष्य के कई किस्सों में झांकता हुआ आगे बढ़ता है। कथानक में प्रेम पर केंद्रित नाटक सफल होता है पर नाटक के बाहर जीवन में प्रेम छीजता और चुकता जाता है। विवेक मिश्र के लेखन में सघन जीवनानुभव, पुख्ता अध्यन और विषय में गहरी संलग्नता स्पष्ट दिखाई देती है। यह उपन्यास भी प्रेम, मानवीय संबंध, कला और जीवन को समझता, समझाता आगे बढ़ता है। उपन्यास न केवल अपने कथानक में अनूठा है बल्कि भाषा, शैली और कहन के भी कई प्रयोगों के अपने में समेटे एक नए प्रकार का शिल्प गढ़ता दिखाई देता है। यह उपन्यास न केवल हमें वर्तमान लेखन के प्रति आश्वस्त करता है बल्कि भविष्य के लिए एक उम्मीद भी जगाता है। विवेक की ही भाषा में कहें तो 'अच्छे समय में कलाएं हममें और बुरे समय में हम कलाओं में जीते हैं'। यह उपन्यास निर्णायकों द्वारा देश भर से 50से ऊपर आई पांडुलिपियों में से एक 'आर्य स्मृति सम्मान' के लिए चुना गया है। आशा है यह न केवल विवेक मिश्र के लेखन में बल्कि हिंदी उपन्यास विधा में भी एक मील का पत्थर साबित होगा।

#10 मुसाफिर कैफ़े 



हम सभी की जिंदगी में एक लिस्ट होती है। हमारे सपनों की लिस्ट, छोटी-मोटी खुशियों की लिस्ट। सुधा की जिंदगी में भी एक ऐसी ही लिस्ट थी। हम सभी अपनी सपनों की लिस्ट को पूरा करते-करते लाइफ गुज़ार देते हैं। जब सुधा अपनी लिस्ट पूरी करते हुए लाइफ़ की तरफ़ पहुँच रही थी तब तक चंदर 30 साल का होने तक वो सबकुछ कर चुका था जो कर लेना चाहिए था। तीन बार प्यार कर चुका था, एक बार वो सच्चा वाला, एक बार टाइम पास वाला और एक बार लिव-इन वाला। वो एक पर्फेक्ट लाइफ चाहता था।

मुसाफिर Cafe कहानी है सुधा की, चंदर की, उन सारे लोगों की जो अपनी विश लिस्ट पूरी करते हुए perfect लाइफ खोजने के लिए भटक रहे हैं।



पढ़िए : सर्वश्रेष्ठ 5 प्रेरणादायक किताबे जो आपकी जिंदगी को बदल देगी


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सर्वश्रेष्ठ 5 प्रेरणादायक किताबे जो आपकी जिंदगी को बदल देगी

#  1 अपनी एकाग्रता कैसे बढ़ाएं 
प्राचीनकाल से ही भारतीय शैक्षिक प्रक्रियाओं में एकाग्रता-विकास को बहुत महत्त्व दिया गया। आश्रमों में आचार्य अपने शिष्यों को विविध योगाभ्यासों के जरिए एकाग्रता के गुर सिखाते थे। आधुनिक शिक्षा-प्रणाली में एकाग्रता-विकास के इस महत्त्वपूर्ण पक्ष की पूरी तरह से उपेक्षा कर दी गई है। हमने बच्चों के ऊपर सूचनाओं का बोझ बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
   
Lekhak: Vijay Prakash
नतीजतन बच्चों की उपलब्धि का स्तर नीचे आ गया है और वे महज रट्टू तोते बनकर रह गए हें। यदि हमें रटंत विद्या को छोड़कर सृजनवादी शिक्षा को प्रोत्साहित करना है तो यह आवश्यक है कि हम नवाचारी ढंग से सोचें। एकाग्रता-विकास में ही सृजनवादी शिक्षा की कुंजी है। बिना एकाग्रता के हम किसी कार्य में सफल नहीं हो सकते।

#2  विचारों की शक्ति और सफलता 


      लेखक: सत्य नारायण & R.K.Mittal (Retired I.A.S.)

#3  मेरी किताब मेरी दोस्त 

     लेखक : Sharma Vidushi

यह किताब आपको सफ़लता पाने के कोई जादुई मंत्रा नहीं बताती, ना ही यह किताब आपके जीवन की सब परेशानियों को हल करने का दावा करती है। लेकिन आप इस पुस्तक के पन्नों में एक सच्चा दोस्त पाएँगें, एक ऐसा दोस्त जो आप की मुश्किलें समझता है तथा उन मुश्किलों को हल करने के लिए आप को प्रेरित भी करता है, और सलाह भी देता है।

# 4 सफलता के कदम कैसे लें ?

     लेखक : Rakesh Nath 


# 5 ऊँची उड़ान ही लक्ष्य है 

यदि ऊँची उड़ान आपका लक्ष्य है तो अपनी योजना में शामिल करिए— हौसला, पंख और आँखें। हौसला, जो आपको ऊँची-से-ऊँची उड़ान भरने के लिए प्रेरित करे; पंख, जो आपको थकने न दे; आँखें, जिनमें तड़प हो नए आकाश को देखने की! ऊँची उड़ान का आनंद वही ले सकता है, जिसने किसी जगह विशेष को लक्ष्य बनाने की बजाय ऊँची उड़ान को ही लक्ष्य बना लिया है।

     लेखक: Dilip Trivedi, Shivendra Singh

 यदि लक्ष्य की प्राप्ति एक सुखद क्षण है, तो ऊँची उड़ान को लक्ष्य बनानेवाले पंखों को हर क्षण एक सुखद अनुभूति हो रही है। खुला आसमान, चौड़े पंख और लक्ष्य पर नजर रखते हुए हर पल लक्ष्य प्राप्ति सुखानुभूति की पराकाष्ठा है। लक्ष्य को प्राप्त करना तो वास्तव में एक क्षण की उपलब्धि है, लेकिन इसको प्राप्त करने की यात्रा हर क्षण एक उपलब्धि है। यह जीवन को सकारात्मक नजरिए से देखने की एक बानगी मात्र है, जिसे स्वीकार करते ही आप ऊँची उड़ान के रास्ते में आनेवाली हर बाधा से नई ऊर्जा प्राप्त करेंगे और सारी नकारात्मकता बहुत पीछे छूट जाएगी; शेष बचेगा— उत्साह, शांति और लगातार मिलनेवाला सृजनात्मक संतोष!



हमें लगातार अपनी असफलता और गलतियों से सीखते रहना चाहिये।
तभी हम जीवन में अपने लक्ष्य को हासिल कर सफलता की तरफ कदम बढ़ा सकते है।

पढ़िए : शीर्ष 10 नए हिंदी उपन्यास




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