रविवार, 19 अगस्त 2018

पुस्तक समीक्षा - सच , समय और साक्ष्य


पुस्तक समीक्षा - सच , समय और साक्ष्य 
शिवना प्रकाशन , सीहोर ।
मूल्य - 175 ₹ 

कोमलता से चुभन का यथार्थ एहसास कराती हैं शैलेन्द्र की कविताएं 
        
          बैंक प्रबंधक के पद पर रह कर वित्तीय आंकड़ों में उलझते- सुलझते सेवानिवृत हुए प्रेम और मानवीय संवेदनाओं के कुशल चितेरे कवि ,लेखक और विचारक शैलेन्द्र शरण ने अतिव्यस्तता के बावजूद भी अपनी भावनाओं को निरन्तर प्रवाहित होते रहने दिया जो विभिन्न प्रमुख पत्र / पत्रिकाओं के माध्यम से समय समय पर पाठकों तक पहुंचती रही । 

          अब शिवना प्रकाशन से उनकी दो किताबें प्रकाशित हुई हैं । एक - काव्य संग्रह और दूसरा गजल संग्रह । इनका आवरण तो आकर्षित करता ही है साथ ही रचनाएँ भी मन को किसी चुम्बक की तरह अंत तक खींचती हैं । यह उनके लेखन की ही विशेषता है । 
       काव्य संग्रह -  " सच , समय और साक्ष्य " अतुकांत या नई कविताओं का संकलन है। इसमें उनकी प्रतिनिधि कविताएं शामिल हैं। ये कविताएं कोमलता से चुभन का एहसास कराती हुई यथार्थ अभिव्यक्ति हैं। 
        वर्तमान में अतुकांत या नई कविता लिखने का चलन बढ़ता हुआ नजर आता है। काव्य लेखन के नियमों से परे इन कविताओं में कुछ ही शब्दों में गहरी और संदेशपूर्ण बात कही जा सकती है , जो जन मानस को सीधे तौर पर प्रभावित करती हैं । 
        मेरा मानना है -  ये अतुकांत कविताएं किसी भी विचारवान और भावुक व्यक्ति को सफल कवि बनाने मेँ सक्षम हो सकती हैं । बस अपनी बात कहने का सलीका आना चाहिए । 
      सामान्यतः पाठकों  को आज सीधी और सरल बात ही सुहाती भी है । इन कविताओं में लेखक प्रयोगधर्मी बन सांकेतिक रूप में भी वह सब व्यक्त कर देता है जो उसे अंदर ही अंदर मथता रहता है। इसे भी पाठक आसानी से समझ लेते हैं । मुझे , नई या अतुकांत कविता की विशेषता भी यही लगती है।
     कवि शैलेन्द्र शरण के इस संग्रह में मुझे वह सब मिला जो एक आम पाठक भी कहना तो चाहता है पर व्यक्त नहीं कर पाता - 
             उन दिनों 
             अंकित होते रहे शब्द
              मन में , जो 
              कहे गये न लिखे गये
      शैलेन्द्र की कविताएं सच के साथ समय की भी साक्षी हैं और सदा रहेंगी भी । 
     संग्रह में शामिल रचनाओं पर चर्चा करूँ , इससे पहले वे खुद अपनी रचनाओं के बारे में क्या कहते हैं , इसे देखिए - " मेरी कविताओं का मूल स्वर - प्रणय या प्रेम है । इसीलिए इन्हें बाहर लाने में एक अनजाना भय सा बना रहा । मैने जितना जाना और महसूस किया , उसका सार यह है कि कविता यथार्थ को समझने का बौद्धिक प्रयास है। कविता के माध्यम से प्रेम की अनुभूतियों को भीतर तक जाकर व्यक्त किया जा सकता है। अनुभूतियां क्षण की हों या लंबे समय की , किसी सामान्य व्यक्ति की हों या व्यक्ति विशेष की , आशा की हों या निराशा की , यही कविता का रूप धर सामने आती हैं । " 
            व्यापक रूप से आज वैश्विक चलन परिवर्तित हो रहा है । यह परिवर्तन सकारात्मक और जन हिताय हो तो प्रभावित करता है और इसके विपरीत हो तो विचलित भी करता ही है । 
         अपनी  " चलन " कविता में उनका यह कहना - 
                 चलन है आज - कल 
                 एक बेहतर कि तलाश में
                  एक बेहतर छोड़ देना ।
          यह स्थिति दर्दनाक तो है ही हमारी संस्कृति , हमारे अस्तित्व पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है। कवि शैलेन्द्र इससे चिंतित तो दिखाई देते ही हैं , पाठकों को भी सोचने पर विवश कर देते हैं ।
              डॉ. प्रताप राव कदम  , कवि शैलेन्द्र के बारे में लिखते हैं - हालाँकि शैलेन्द्र ने राजनीति और सामाजिक विषमताओं पर कविताएं लिखीं हैं किंतु उनका मूल स्वर प्रेम का ही है । एक छटपटाहट , एक छूटे हुए को अबेरने की कोशिश , हताशा में भी हिम्मत - सा प्रस्फुटित हो जाता प्रेम । किसी थके हारे व्यक्ति में दम भरने जैसा असर करता है । 
सच ही है यह। देखिए - 
               हमेशा ही
               बुरे लगते रहे झूठ
               अब चाहता हूँ 
                सारे झूठ सुन लूँ 
                जो सुनने में 
                भले लगने लगे हैं ।
       विवशता में ही सही पर अब जन मानस यह कहने, सुनने के लिए बाध्य तो हो ही गया है।
        एक कटु सत्य देखिए - 
                साक्ष्य को दरकार है सच की
                और सच को जीत के लिए चाहिए समय
                सच , साक्ष्य और समय
                इन दिनों प्रबंध के विषय हैं ।
      जब इस कविता को हम पूरी पढ़ते हैं तो समझ आती है न्यायिक स्थिति । चाहे वह भौतिक हो या फिर कुदरती - 
           जो कहे गए 
           सच नहीं सिर्फ तर्क थे
           जो तर्क गलत साबित हुये
           उनके सामने साक्ष्य थे
           जो सच और साक्ष्य , समय से पहले हार गए
           वे झूठ से नहीं , जिंदगी से डरे हुए थे।
    हकीकत से रूबरू कराती है शैलेन्द्र की यह कविता और सोचने को विवश करती , हम सबकी अभिव्यक्ति बन जाती है। 
       इस काव्य संग्रह में शामिल कविताओं में कवि शैलेन्द्र की वे सब अनुभूतियां देखने को मिलती हैं जो हमारी अपनी प्रतीत होती हैं , जिन्हें बड़ी आसानी से कवि अपनी कविताओं में व्यक्त कर देता है और पाठकों को लगता है जैसे वह खुद भी तो यही कहना चाहता था । यही कविता के प्राण हैं जिसने इन रचनाओं को जीवंत बना रखा है।
        इसीलिए दैनिक सुबह सबेरे के वरिष्ठ सम्पादक अजय बोकिल जी उन्हें - मानवीय सरोकारों के कवि मानते हैं । मैं श्री बोकिल जी के इस कथन से भी पूरी सहमति रखता हूँ कि - " शरण समय को सत्य के आईने में पकड़ना चाहते हैं और वे स्वयं इसके साक्षी बनना चाहते हैं । " 
      यही सार्थकता है - " सच , समय और साक्ष्य " काव्य संग्रह की ।
            - देवेन्द्र सोनी , 
              प्रधान सम्पादक 
              युवा प्रवर्तक , इटारसी। 
              9111460478


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