शनिवार, 5 दिसंबर 2020

Top 5 HIndi Motivational Books/Novel || शीर्ष 5 हिंदी प्रेरक पुस्तकें / उपन्यास जो आपकी जिंदगी बदल सकती है।

 



#१

पुस्तक – ट्वेल्थ फेल

लेखक – अनुराग पाठक


कहानी का प्रमुख पात्र मनोज शर्मा है जिनका 12th में फेल होने से लेकर आईएएस ऑफिसर बनने तक का सफर कहानी में लिखित है। मनोज शर्मा लोगों के लिए मिसाल है कि किस प्रकार एक लड़का ट्वेल्थ में फेल होकर ग्रामीण परिवेश में रहकर संघर्ष करते हुए आईएएस ऑफिसर बनता है और लोगों को अपनी कहानी से प्रेरणा देता है। कहानी बहुत ही रोचक , मोटिवेशनल और रुचिकर है।


इस मोटिवेशनल किताब में असफलता को हैंडल करने और सफलता की राह पर बढ़ते जाने कुछ नुस्ख़े भी सुझाए हैं। ऐसे 26 युवाओं की सफलता की शानदार कहानियाँ भी उन्हीं की ज़ुबानी इस किताब के अंत में शामिल हैं, जिन्होंने तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद ‘रुक जाना नहीं’ का मंत्र अपनाकर सफलता की राह बनाई और युवाओं के प्रेरणास्त्रोत बने।


#२ डार्क हॉर्स

लेखक: निलोत्पल मृणाल


सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों का मर्मबेधन करने में सक्षम "डार्क हॉर्स" न केवल परीक्षा की तैयारी की दांस्ता बयां करता है बल्कि जीवन संघर्ष के सही मायने भी उल्लिखित करता है।

सहज एवं स्वाभाविक भाषा का प्रयोग पाठक को बांधने में समर्थ है और कथानक का अंत प्रेरणा के पथ पर अग्रसर करते हुए स्वतन्त्र कर देता है।


#३ रूक जाना नहीं :

लेखक: निशान्त जैन


यह किताब प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले हिंदी मीडियम के युवाओं को केंद्र में रखकर लिखी गई है।


इस किताब में कोशिश की गई है कि हिंदी पट्टी के युवाओं की ज़रूरतों के मुताबिक़ कैरियर और ज़िंदगी दोनों की राह में उनकी सकारात्मक रूप से मदद की जाए। इस किताब के छोटे-छोटे लाइफ़ मंत्र इस किताब को खास बनाते हैं। ये छोटे-छोटे मंत्र जीवन में बड़ा बदलाव लाने की क्षमता रखते हैं।


इस किताब की कुछ और ख़ासियतें भी हैं। इसमें पर्सनैलिटी डेवलपमेंट के प्रैक्टिकल नुस्ख़ों के साथ स्ट्रेस मैनेजमेंट, टाइम मैनेजमेंट पर भी विस्तार से बात की गई है। चिंतन प्रक्रिया में छोटे-छोटे बदलाव लाकर अपने कैरियर और ज़िंदगी को काफ़ी बेहतर बनाया जा सकता है। विद्यार्थियों के लिए रीडिंग और राइटिंग स्किल को सुधारने पर भी इस किताब में बात की गई है। कुल मिलाकर किताब में कोशिश की गई है कि सरल और अपनी-सी लगने वाली भाषा में युवाओं के मन को टटोलकर उनके मन के ऊहापोह और उलझनों को सुलझाया जा सके।


#४ ‘इलाहाबाद ब्लूज’

लेखक: अंजनी कुमार पांडेय


‘इलाहाबाद ब्लूज’ दास्ताँ है साँस लेते उन संस्मरणों की जहाँ इतिहास, संस्कृति और साहित्य की गोद से ज़िंदगी निकल भी रही है और पल-बढ़ भी रही है। इस पुस्तक से गुज़रते हुए पाठकों को यह लगेगा कि वो अपने ही जीवन से कहीं गुज़र रहे हैं। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ की गँवई ज़मीन से शुरू हुई यह यात्रा इलाहाबाद होते हुए यूपीएससी, धौलपुर हाउस और दिल्ली तक का सफ़र तय करती है। ‘

इलाहाबाद ब्लूज’ एक मध्यमवर्गीय जीवन की उड़ान है। इसलिए इसमे जहाँ गाँव की मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू है, वहीं इलाहाबाद की बकैती, छात्र जीवन की मसखरी और फक्कड़पन भी इस पुस्तक की ख़ासियत है। मिडिल क्लास ज़िंदगी के विभिन्न रंगों से सजे हुए संस्मरण बहुत ही रोचक एवं मनोरंजक ढंग से प्रस्तुत किए गए हैं। इसमें एक बोलती-बतियाती, जीती-जागती ज़िंदगी है, संघर्ष है, प्रेम है, पीड़ा है, अथक जिजीविषा है और अंत में कभी भी हार ना मानने का दृढ़-संकल्प है। पहले से आख़ि‍री पृष्ठ तक आप कब स्वयं 'अंजनी' होते हुए इस पुस्तक से निकलेंगे, यह आपको एहसास ही नहीं होगा।.


#५ विटामिन जिंदगी

लेखक: ललित कुमार


आप परेशान हैं?... एक के बाद एक समस्याएँ जीवन में आती ही रहती हैं... तो क्या आपको लगता है कि जीवन की प्रॉबलम्स कभी खत्म नहीं होंगी? क्या आप जीवन में हार मान रहे हैं?...


जिस तरह शरीर को अलग-अलग विटामिन चाहिए -- उसी तरह हमारे मन को भी आशा, विश्वास, साहस और प्रेरणा जैसे विटामिनों की ज़रूरत होती है। लेखक ललित कुमार इन सभी को मनविटामिन कहते हैं। "विटामिन ज़िन्दगी" एक ऐसा कैप्स्यूल है जिसमें ये सभी विटामिन मिलते हैं।


हमारा सामना समस्याओं, संघर्ष, चुनौतियों और निराशा से होता ही रहता है -- इन सबसे जीतने के लिए हमारे पास ‘विटामिन ज़िन्दगी’ का होना बेहद आवश्यक है।


विटामिन ज़िन्दगी एक किताब नहीं बल्कि एक जीवन है -- एक ऐलान है कि इंसान परिस्थितियों से जीत सकता है। एक बच्चा जिसे चार साल की ही उम्र में ही पोलियो जैसी बीमारी हो गई हो -- उसने कैसे सभी कठिनाइयों से जूझते हुए समाज में अपना एक अहम मुकाम बनाया -- यह किताब उसी की कहानी कहती है। ज़िन्दगी में आने वाली तमाम चुनौतियों को लेखक ने किस तरह से अवसरों में बदला -- यह उसी सकारात्मकता की कहानी है।


ललित का सफ़र "असामान्य से असाधारण" तक का सफ़र है। पोलियो जैसी बीमारी ने उन्हें सामान्य से असामान्य बना दिया, लेकिन अपनी मेहनत और जज़्बे के बल पर उन्होंने स्वयं को साधारण भीड़ से इतना अलग बना लिया कि वे असाधारण हो गए। इसी सफ़र की कहानी समेटे यह किताब ज़िन्दगी के विटामिन से भरपूर है।


इस किताब में सभी के लिए कुछ-न-कुछ है जो हमें हर तरह की परिस्थितियों का सामना करना सिखाता है।


इन पुस्तकों के अलावा भी यहां बहुत सी बेहतरीन पुस्तकें है जो आपकी जिंदगी बदल सकती है। आपकी जिंदगी में बदलाव लाने वाली किताब कौन सी है, हमें बताएं, हम अवश्य सूची में शामिल करेंगे।





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गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

बावळी बूच


बावळी बूच क़िताब कल मुझे प्राप्त हुई थी और आज पूरी पढ़ ली हैं। कारण सिर्फ लेखन शैली। यह इस तरह की एकमात्र किताब है जो इस विषय पर इतने बेहतर तरीके से लिखी गई है। लेखक के बारे में जानने कि इच्छा हुई तो पता चला कि साहब पेशे से पत्रकार है तो ऐसा बेहतरीन लेखन अपेक्षित था।

लेखक सुनील जी ने मीडिया के अनछुए पहलुओं पर ठीक ऐसे ही ध्यान आकर्षित किया है जैसे मुखर्जी नगर के कोचिंग सेंटरों के लिए ‘डार्क हॉर्स में नीलोत्पल ने किया.

व्यंग्यो में हरीशंकर परसाई जी का प्रभाव काफ़ी दिखायी दिया.

इस किताब ने कई किताबों की याद दिलायी जैसे शुरू में डार्क हॉर्स की, बीच में लगा की अन्तक का हाल औघड के बिरंचिया जैसा हो जाएगा, आख़िर में लगा कि अन्तक कहीं कार्पोरेट की बिपाशा बसु जैसा ना बना दिया जाए. पर नहीं ये मेरे दिमाग की कोरी कल्पना ही साबित हुई.

लेखक ने जिस तरह से अपनी लेखनी का जादू बिखेरा कि अन्त तक पाठक को सस्पेंस बना रहता है और कई बार ऐसा लगता है की ये अपनी ही कहानी हैं.

लेखन कला देखकर लगता हैं कि सुनील जी लम्बी रेस के घोड़े साबित होंगे।

ये किताब आपको कहीं भी निराश नहीं करेगी

कुछ वाक्य पुस्तक से जिनके प्रसंग मन को मोह लेंगे.

१.घास के गोदाम में सुई जैसा काम है मीडिया में क़ाबिल पत्रकार इंसान खोजना.

२.दरसल हम पत्रकार नहीं, कलाकार हैं.

३.बाक़ी बिज़नेस का पता नहीं परंतु मीडिया में कोई किसी का सगा नही.

४. पत्रकारिता नाम की चिड़िया मात्र अफ़वाह है.

५.देश में भ्रष्टाचार बेरोज़गारी के सवाल दहाड़ दहाड़कर खड़े करने वाले न्यूज़ चैनलों का खुद का सिस्टम अमरीश पुरी के मोगेम्बो साम्राज्य से कम नही.

६. इतनी मेहनत अपने खेत में किए होते तो सोना उगा लेते .

७.कोशिश ही कामयाब होती है, वादे अक्सर टूट जाया करते हैं.

किताब नयापन और अद्भुत लेखन शैली लिए हुए है. पाठकों के लिए बावळी बूच एक अवसर की तरह है, देर किए बगैर पढ़ डालिए।

https://www.amazon.in/dp/9387464938


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बुधवार, 14 अक्टूबर 2020

भंवरजाल का मल्लाह !!!


पुस्तक समीक्षा



पुस्तक: भंवरजाल का मल्लाह

लेखक: बिन्नी आरजे 


बिन्नी आरजे द्वारा लिखी गई रहस्य सागर सीरीज की यह पहली नॉवेल है।


अगर आपको हैरी पॉटर जैसी यानी हैरतअंगेज और रहस्यमयी कहानियां पसंद है तो यह पुस्तक आपके लिए है।

    विज्ञान और अध्यात्म का बखूबी मिश्रण लिए यह कहानी है महारानी अरिहा नीलकमल एक मां के प्यार की, आमेट त्रिक्ष और सरांग के निश्छल प्रेम की...यह कहानी रहस्यो से भरी भूत और वर्तमान घटनाओं का सुंदर समावेश लिए हुए आपको हर मोड़ पर रोमांचित करती है। इसकी एक झलक देखिए...

    "बार बार अपनी मन की शक्तियों से खुद को स्वस्थ कर चुके पुण्या की ऊर्जा कुछ कम हो गयी थी, वो जमीन पर थका पड़ा हुआ सत्या से हाँफते हुए कहता है। ... 

    इस बार सुरक्षा कवच का निर्माण कहीं अधिक मजबूत करियेगा। अभी हमें उत्तर से दक्षिण की और टेलीपोट होते कईं लोगो ने देख लिया। हमारी वास्तविकता वर्तमान में उजागर हो यह ठीक नहीं। "

    इस पुस्तक की सबसे बड़ी खासियत है इसकी रिसर्च और हर अध्याय से जुड़े कलर पेजेस जो हर अध्याय को और भी ज्यादा रोमांचक बनाता है।

    लेखिका ने कथानक और चरित्र चित्रण बहुत अच्छे से किया है। हर पात्र कुछ कहता है, चाहे वो पुण्या हो, सत्या हो या फिर लाल नीली आंखों वाला आतरये पहेली। कई बार पढ़ते समय खुद को वहां महसूस करने लग जाना, लेखिका की कामयाबी बयान करता है। इसके लिए वो बधाई की पात्र है।

उनकी भाषा शैली में भी तत्सम शब्दों के साथ आधुनिक शब्दों का भी गजब मिश्रण देखने को मिलता है। जैसे

"शायद ठंड की पराकाष्ठा थी या फिर अंतहीन दर्द की--- पर आज ये आँखों से लुढ़क ही गया-- और बंजर रेगिस्तान सा कर गया सदा के लिए अरिहा के भूरे नयनों को--- पर उसके आँसू के उस आखिरी कतरे में सब्र की शीतलता थी, जिस से कहीं मिलों दूर धधकती ज्वालामुखी के लावे को पल भर के लिए ठंडक नसीब हो गया।"

"एक शापित राजकुमारी के जीवन में सच्चा प्यार लिए दस्तक देता है,एक राजकुमार। दोनो अपने गमो को दरिया में बहा अपनी खुशियों में खो जाते है,लेकिन उनकी गम की पोटली से एक दिन एक जादूगर पहेली वापस लौट आता है,उनकी जिंदगियों की हर खुशी को निगलने के लिए..."

बिन्नी जी ने इस विषय पर काफी मेहनत की है। और पाठकों को  हर पन्ने पर चौकाने की पूरी कोशिश की है। यह एक सकारात्मक सोच की किताब है। और खासियत यह है कि यह हर आयु वर्ग के लिए है।

इसे हर किसी को एक बार जरूर पढ़ना चाहिए।



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शुक्रवार, 15 मई 2020

चाटुकारिता



चाटुकारिता के दौर में, 
चातक निराले होते हैं।
भैंस तो निकल जाती है पानी से, 
मेंढक बेचारे रोते हैं ।

कर के जुल्म, फिर पनाह ढूंढते हैं
सही में गलत, गलत में श्रेय ढूंढते है।
तालाब मगर गंदा रहता है,
मेंढक बेचारे रोते हैं।

वो चले तो चलो, वो ठहरे तो ठहरो
उनकी हर अदा पर फिदा हैं।
निवाले का हिस्सा, चरणों में चढ़ाकर
मेंढक बेचारे रोते हैं।

नहीं मिलता तालाब, मगर
प्रलोभन निराले होते हैं ।
चाटुकारिता के चंगुल में फंसे
मेंढक बेचारे रोते हैं ।

आंसूओं से तालाब भरे
तालाब से भरी चाटुकारिता
निर्जल जल में उड़ते पंछी, देख
मेंढक बेचारे रोते हैं।

- सारथी 

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कुछ मुक्त कविताएं : भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"

साहित्य सारथी
मुझसे थोड़ा दूर ही रहो तो अच्छा है बदनसीब हूं पास न आओ तो अच्छा है। ब
ड़ी बड़ी बातों से डर लगता है मुझे झूठी बातें न सुनाओ तो सबसे अच्छा है। सूंघना अच्छा है सुगंध से डर लगता है माला पुष्प का न हो तो बहुत अच्छा है। फूल तोड़ना मुझे अच्छा नहीं लगता है सूख कर फूलों का मुरझाना अच्छा है। बचपन में अपने पिता जी से सीखा था कि पेड़ों में भी जीवन जीने की लालसा होती है। बड़ी उमस है हरे भरे पेड़ पौधे सूख जाते हैं पेड़ों को पानी पिलाना इन सबसे अच्छा है। शब्द बहुत अच्छे होते हैं ये पहली बार सुना उसने शब्दों की बेइज्जती करते बुरा लिखा। सुनी सुनाई बातों में कितनी सच्चाई होती है कान दिया तो ये मालूम हुआ शब्द बुरे नहीं। हालांकि उसने कोई गुनाह नहीं किया लेकिन बस इतना कहा मार ही डालूंगा कुछ बोले तो। बात का बतंगड़ बनाते एक अरसा बीत गया गूंगी ने बड़ी मासूमियत से उसे कुछ न कहा। © भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"

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बुधवार, 13 मई 2020

लेखक ?



बहुत ही कठिन होता है जवाब देना जब कोई पूछता है की आप लेखक क्यूँ हैं या लिखना क्यों पसंद करते हैं। जवाब देना और अधिक कठिन हो जाता है जब मैं खुद से पूछता हूं की 

“मैं लेखक क्यूं हूं ?”

“यह मेरी इच्छा है या विकल्प ?”


फिर मैं खुद से पूछता हूं की एक लेखक के पास क्या होता है ?


  • कलम और विचारों की स्वतंत्रता।


यही विचारों की सवतंत्रता ही किसी भी लेखक को विशिष्ट बनाती है। लेखक अपने आप में विशिष्ट होता है क्यूंकि वह एक कलाकार है, शब्दों को पिरोकर एक मोतियों की माला तैयार करता है।

वह सिर्फ शब्दों का कलाकार ही नहीं वह सच बोलने का साहस भी रखता है, समाज का आईना बनकर समाज का मार्गदर्शक भी करता है। लेखक को सिर्फ शब्दों का सौदागर नहीं कहा सकता। 


मुंशी प्रेमचंद जी के अनुसार “लेखक समाज की हाँ में हाँ मिलाने मिलाने वाला निष्क्रिय पदार्थ नहीं होता, उसका अपना व्यक्तित्व होता है और वह अपने विशिष्ट दृष्टिकोण से समाजिक समस्याओं पर विचार करता है। “


इसलिए लेखक को सिर्फ लेखन तक ही सीमित नहीं माना जा सकता; वह इससे कहीं ज्यादा होता है, लेखन उसके लिए एक माध्यम है और यह माध्यम समुद्र की तरह इतना विशाल है की इसका किनारा भी दिखाई नहीं पड़ता। इसी समुद्र में कलम रूपी नाव लेकर निकले नाविक को ही लेखक कहा जा सकता है।


मेरे लिए :

“लेखन एक ऐसी कला है जहां मैं खुद को चुनौती दे सकता हूं, हर बार मैं कुछ नया कर सकता हूं।” - सारथी 


नित नए सपने और हद से आगे जाने का जुनून  …लेखन ही है जो ये सब करने की आजादी देता है।

  • जहां मैं पल भर में आसमान से परे जा कर खुद को महसूस कर सकता हूं।

  • जहां मेरे सोचने, समझने और लिखने पर कोई पाबन्दी नहीं है।

  • जहां मैं हर बार कुछ नया कर सकता हूं।


लेखक होना अपने आप में सम्पूर्ण होना (लेखक के लिए ) है जहां उसके ख्वाबों की दुनिया आँखों के सामने होती है। यह सबके लिए अलग - अलग हो सकता है, मगर , दुनिया सामने वह एक विशिष्ट व्यक्ति ही होता है। आपका विकल्प आपको एक सम्पूर्ण एहसास नहीं दे सकता, आपकी इच्छा या वैकल्पिक इच्छा ही आपके सम्पूर्ण एहसास का कारण हो सकती है। 

एक लेखक की दिनचर्या के कुछ हिस्से मैं आपके सामने रखता हूँ जिन्हें सर्व सहमति से स्वीकारा जाता है। 

  • एक लेखक उन क्षणों में भी सोचता है जब वह अपने आपको व्यस्त महसूस करता है।  

  • हर बातचीत, हर दृश्य, हर अहसास उसके दिमाग को सोचने के लिए कच्चा माल है। 

  • एक लेखक अपने आप को नितांत अकेला महसूस करता है, ऐसा करके ही वह विचारों को कलमबद्ध कर पाता है। 

  • लेखक अक्सर खुद से बातें करते हैं। विशिष्ट लोगों में ऐसे गुण देखे जाते हैं। 


नोट: यह लेख सिर्फ लेखकों को जानने और प्रेरित करने के लिए लिखा गया है, जो मेरे व्यक्तिगत विचार हैं इसलिए वैचारिक सहमति जरूरी नहीं है। आपके सुझावों का इंतज़ार रहेगा। 


- सारथी 

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शुक्रवार, 1 मई 2020

हम आते हैं

मजदूर दिवस पर विशेष :-

हम आते हैं  / हम आते है 
अपना लहू बहाते हैं 
जीवन रस का बूंद बूंद हम धरती पर टपकाते हैं 
बादल की बूदों से बनता सागर
 हम भव्य अट्टालिका बनाते हैं 
हम आते हैं  / अपना लहू बहाते हैं 

जीवन की इस धारा में हम
 किसान मजदूर कहते हैं 
खेतों से लेकर सड़कों तक हम मेज
जीवन को सरल बनाते हैं
 हम आते हैं  / अपना लहू बहाते हैं 

नगर बनाते - शहर बनाते 
सड़कों पर रात बिताते हैं 
खेतों में अन्न उगाने पर भी 
भूखें पेट सो जाते है 
हम आते हैं / अपना लहू बहाते हैं 

बड़े - बड़े महल अटारी वाले 
आज मजदूर दिवस मनाते हैं 
जीवन रस की खोज में हम 
प्यासे ही सो जाते है 
हम आते हैं  / हम आते है 
 अपना लहू बहाते हैं

लेखक : अरविंद कुमार 

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सोमवार, 27 अप्रैल 2020

धरती और माँ


धरती कितना कुछ देती है 
अन्न
जल
हवा
पानी
और हम 

धरती को 
काटते है 
खोदते है 
सीना कर देते है छलनी 
पर 

फिर भी वो मुस्कराती है 
बिल्कुल 
माँ की तरह 
जिसकी छाती से पी जाते है 
हम खून  का कतरा- कतरा
बिल्कुल दूध  की तरह 
फिर भी 

धरती 
हँसती है , मुस्कराती है 
अपनी
अस्थि मज्जा तक खिलाती है 
बिल्कुल माँ की तरह ।

      अरविन्द कुमार मौर्य 
         हिंदी विभाग 
        कुमाऊँ विश्वविद्यालय 
      नैनीताल , उत्तराखंड

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शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

कोरोना: एक आर्थिक छद्म विश्वयुद्ध




आज, जहां पूरी दुनिया महामारी की आग में झुलस रही है , वहीं चीन, जो इस महामारी का कारक है ,  महाशक्ति बनने के सपने देख रहा है। उसके इस सपने की कीमत पूरी दुनिया चूका रहा है।
क्या यह एक छद्म विश्व युद्ध का हिस्सा है ?
हाल ही में #Amazon द्वारा प्रकासित किताब कोरोना: एक आर्थिक छद्म विश्वयुद्ध में जानिए इससे जुडी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी व् डरवाना सच !

कोरोना: एक आर्थिक छद्म विश्व युद्ध (Hindi Edition) Kindle Edition


publisher: Amazon Publication
available only on Amazon.

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मजहबी भूख




वसंत अपने समापन की ओर था, वृक्षों पर नए पत्तों ने नव जीवन धारण कर लिया था। प्रकृति खूब खिलखिला रही थी। उसके खिलखिलाने और ऐसा लगने के पीछे एक कारण यह भी था की इंसान मजबूर होकर घरों में कैद था। दूसरा यह की आधुनिक संसाधनों के बीच इंसान प्रकृति की उस सुंदरता और अपनेपन को महसूस कर रहा था। ठीक उसी तरह जैसे एक अबोध बालक कोई संकट भांपकर अपनी माँ की गोद में छुप जाता है।
कृष्ण चंद्र ठाकुर घर के आंगन में अकेले बैठे ऊंघ रहे थे। नीम के पेड़ की गहरी छाया और शीतल हवाओं का यह आनंद उन्हें बरसों बाद प्राप्त हुआ था। पैसे की दौड़ - धुप में सब कुछ पीछे छूट गया था, अब यह आनंद पाकर वह कहीं जाना नहीं चाहते थे।
घर के ठीक सामने एक और मकान था, जिसमे उस्मान मियां रहते थे। वाराणसी में लंका मार्किट में उनकी किराने की दुकान थी। आजकल छुआछूत की बीमारी के कारण दुकान न जा पाते थे।दिल में सेवाभाव था और घर खाली बैठे मन न लगता था इसलिए वे किसी सामाजिक संगठन के साथ मिलकर जरूरत मंद लोगों की सहायता करने चले जाया करते थे।
सुबह - सुबह मियां ने ठाकुर को पुकारा, “क्या कहते हो ठाकुर , चलो कुछ धर्म पुण्य तुम भी कमा लो “

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बुधवार, 22 अप्रैल 2020

क्या आप विचारशील पाठक हैं ? पढ़ें .......





ये वो समय है जब आप अपने सारे कार्यों, चिंताओं से दूर रहकर वह कर सकते हैं जो आप जीवन में करना चाहते हैं।

"इस लॉक डाउन के बाद अगर आप पहले से  बेहतर होकर बाहर नहीं निकलते हैं तो इसका मलतब होगा की आपके पास अनुशासन की कमी है , समय की नहीं।": सारथी  

    एक  अनुशासन हीन मनुष्य को उतना ही मिलता है जितना की अनुशासित मनुष्य छोड़ता है। अनुशासन के साथ जीवन के बढ़ते क्रम में "किताबें", आपके दिमाग को विकसित करने का सबसे बेहतरीन तरीका होता है।

चलिए। .....  यहां है कुछ बेहतरीन किताबें हैं जो आप इस समय अपने मोबाइल , लैपटॉप या टैब पर घर बैठे पढ़ सकते हैं।


दस्तावेज़ : मूल्य : 125 
        हिंदी साहित्य के इतिहास निर्माता पूर्वज साहित्यकारों पर समय-समय पर लिखे गए मेरे आलोचनात्मक निबंधों का संग्रह है। हिंदी साहित्य में कई महान साहित्यकार हैं जिन्हें इन निबंधों में याद किया गया है। इनके अनुभव एवं ज्ञान की खोज खबर मैंने की है। पूर्वज साहित्यकारों की संचित ज्ञान-राशि आज हिंदी साहित्य का अमूल्य धरोहर है।

कोरोना: एक आर्थिक छद्म विश्व युद्ध (Hindi Edition): मूल्य : ₹59 


    अगर आप कोरोना से जुडी जानकारियाँ और जुड़े कुछ खतरनाक पहलुओं के बारे में जानना चाहते हैं तो ये आपके लिए एक बेहतरीन किताब होगी जो आपको आश्चर्यचकित करे देगी। 
    इसमें लेखक, चीन की आगामी रणनीति के बारे में आगाह करता है, जिसके दम पर चीन विश्व क्र्म में खुद को स्थापित करने के सपने देख  रहा है। 

रागदरबारी : मूल्य : 163
    रागदरबारी जैसे कालजयी उपन्यास के रचयिता श्रीलाल शुक्ल हिंदी के वरिष्ठ और विशिष्ट कथाकार हैं। उनकी कलम जिस निस्संग व्यंग्यात्मकता से समकालीन सामाजिक यथार्थ को परत-दर-परत उघाड़ती रही है, पहला पड़ाव उसे और अधिक ऊँचाई सौंपता है। श्रीलाल शुक्ल ने अपने इस नए उपन्यास को राज-मजदूरों, मिस्त्रियों, ठेकेदारों, इंजीनियरों और शिक्षित बेरोजगारों के जीवन पर केेंद्रित किया है और उन्हें एक सूत्र में पिरोए रखने के लिए एक दिलचस्प कथाफलक की रचना की है।

कीकर और कमेड़ी : मूल्य :99 
    कीकर और कमेड़ी’ सात कहानियों का संग्रह है। हर कहानी अपने आप में एक दुनिया है। इस दुनिया में समलैंगिकता जैसा संवेदनशील मुद्दा भी है और मानव मन की जटिल ऊहापोह भी। लेखिका की सहज और बेबाक अभिव्यक्ति इस किताब को और भी ख़ास बनाती है। पात्रों के दुःख, सुख, उनकी उदासियाँ, उनका प्रेम पाठकों को परिचित सा लगता है।

अलबेला : 79  
    प्रकृति का एक नियम है कि जब भी कोई परिवर्तन होता है, तो इसका असर, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सब पर पड़ता है।
हिमयुग में, जब बर्फ पिघल कर, प्रकृति का नया रूप दिखा रही थी, तब मनुष्य के दिमाग की सोयी परतें भी एक-एक कर खुलने लगी।
ये कहानी आदियुग के उसी चरण की अनकही दास्तान है, जिसकी हर घटना के साथ, समय भी अपनी करवट बदलता रहा।
आदिकाल के मनुष्य ने अब जवाब तलाशनें शुरू किये, अपने मस्तिष्क में उफनते अजीबो-गरीब सवालों के।


कोई अन्य किताब जो अपने पढ़ी है और आप अन्य पाठकों को पढ़ने की सिफारिश करते हैं तो हमें कमेंट में बताएं। 





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