शनिवार, 28 अक्टूबर 2017

रह-रह के जिंदगी में वापस आते हो

रह-रह के जिंदगी में वापस आते हो
मरहम लगाने आते हो या जख्म हरे कर जाते हो
रुकने के लिए नहीं....हो नहीं अब साथ मेरे ये बताने आते हो


ना जाने क्या तुम्हारे मन में समायी हैं 

क्या लेने बार-बार तुम चले आते हों

मुस्कुराने को कहते हो,रुलाने का मौका छोड़ते नहीं
बस तुम्हारा चलता हैं मुझ पर फिर भी खुश कभी तुम हमसे होते नहीं,

बेमुरब्बत,बेदर्दी,बेहया कुछ भी कहते तुमसे बनता नहीं
पता नहीं क्यूँ तुम इस जिस्म में बसे हों जो तुम्हें सुहाता नहीं 
और तुम कभी इसे अपनाते नहीं 

जाते मुझे पूरी तरह छोड़कर नहीं और होकर भी मेरे कभी होते नहीं,
सितमों के तुम बादशाह बन बैठे हो जो मुझ पर अपनी रहमत बरसाने आते हो,
दर्द के तुम जहाँगीर बन बैठे हो जो मेरे लिये भण्डार भराते हो, 
बहते हुए मेरे खूनी आंसुओं के तुम सरकार बन बैठे हो जो मुझ पर अपनी सत्ता खड़ी कराते हो

कर्कशता तुम पर कभी मेरी शुरू होना सोचती नहीं,

मधुरता तुम पर कभी मेरी खत्म होना चाहती नहीं दोनों के बीच झूलती हूँ मैं जिसकी ढील तुम बढ़ाते हो और मेरी वफ़ा पर अपनी चालांकि हंसी का ठप्पा लगाते हो ....
मुझे नादान समझने की भूल तुम पहली दफा से आज भी दोहराते हो किसी पल में जाकर ये नहीं सोचते तुम मेरे प्यार के आगे खुद को कितना हारा हुआ पाते हो,
गुम हो अपनी ही धुन में तुम और अपनी ही चलाते हो 
मुझे ठुकरा कर दिल वाली पाने की इच्छा जताते हो....
रोती आखों से अब हँसी तुम पर आती है 
क्या खूब गजब हो तुम जिंदा को मुर्दा बनाकर 
जिंदगी जीयो का डंका बजाते हो।

Written By Ritika{Preeti} Samadhiya... Please Try To Be A Good Human Being....✍

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