रविवार, 15 अक्टूबर 2017

प्रीत चुनरियाँ


सुनो सँवरिया 
तेरी याद में हो गई बावरिया 
बहुत बिताई जुदाई सँग रतियाँ
दर्पण में खुद की परछाईं को तुम मानकर तन्हाई से की जी भर बतियाँ
अनजानी सी सूरत तुम्हारी,अनसुनी सी बोली तुम्हारी
 ना नाम ना पता तुम्हारा फिर भी 
प्रेम के कागज पर ह्रदय की कलम से लिखी तुम्हें ढेरों चिठ्ठियां
और तुम फिर भी बने रहे बहरूपिया 
अब टूटा है सब्र का हर बांध और छूटी है मुझसे मेरी नगरिया
तुम तो हो बड़े ही कठोर और सब्रीले पिया पर
 हमारा ना लागे है अब तुम बिन जियरा 
तुम सँग ही अब भोर और तुम सँग ही अब ये 
साँझ देखेगी मेरे नयनों की उजिरिया 
आ रही हूँ होके प्रेम से सराबोर और ओढ़ मैं प्रीत चुनरियाँ।

Written By Ritika{Preeti} Samadhiya... Please Try To Be A Good Human Being...✍

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