मेरे महबूब तेरी गलियां मेरे लिए थी ही नहीं
बहुत ये चाहा मैंने पहुंच सकूँ तुझ तक
पर तुझ तक पहुंचती राहें मुझे मंजूर करती थी ही नहीं
कैसे न बिखरने देती खुद को मैं जब सबकुछ तुम थे मेरे
पर मेरे नसीब से लड़ने को राजी तेरी चाहत थी ही नहीं
मेरे महबूब ये जो तेरी गलियां थी और ये जो तेरी चाहतों की मनमर्जियां थी
सिर्फ तुझ तक थी मुझ तक तो कभी ये भूल कर भी थी ही नहीं
Written By Ritika(Preeti) Samadhiya.....Please Try To Be A Good Human Being...✍
बहुत ये चाहा मैंने पहुंच सकूँ तुझ तक
पर तुझ तक पहुंचती राहें मुझे मंजूर करती थी ही नहीं
कैसे न बिखरने देती खुद को मैं जब सबकुछ तुम थे मेरे
पर मेरे नसीब से लड़ने को राजी तेरी चाहत थी ही नहीं
मेरे महबूब ये जो तेरी गलियां थी और ये जो तेरी चाहतों की मनमर्जियां थी
सिर्फ तुझ तक थी मुझ तक तो कभी ये भूल कर भी थी ही नहीं
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