लोग क्या कहेंगे?
परिदृश्य चाहे वैश्विक हो , राष्ट्रीय हो , सामाजिक हो या पारिवारिक हो - कुछ भी करने से पहले यह प्रश्न हमेशा सालता है कि - लोग क्या कहेंगे ? उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी और इसका हमारे मूल्यों , सिद्धान्तों और जीवन पर क्या असर पड़ेगा ! चिन्तन का पहलू यह होना चाहिए - हमको लोगों के कहने की कितनी परवाह करना चाहिए क्योंकि आप यदि अपने नजरिये से अच्छा भी करते हैं तो जरूरी नही कि वह अन्य व्यक्तियों की नजर में भी अच्छा ही हो । सबका नजरिया अलग अलग होता है । फिर , लोगों का तो काम ही है कहना !
यहां मुझे एक बोध कथा याद आ रही है - एक पिता पुत्र ने मेले से खच्चर खरीदा और उसे लेकर घर की ओर निकले । रास्ते में किसी ने कहा - कैसा पिता है , खच्चर होते हुए भी बेटे को पैदल ले जा रहा है । पिता को भी लगा तो उसने अपने बेटे को खच्चर पर बैठा दिया और खुद पैदल चलने लगा । आगे चलने पर किसी ने कहा - कैसा बेटा है , बूढ़ा बाप पैदल चल रहा और जवान बेटा शान से सवारी कर रहा। अब दोनों ही खच्चर पर बैठ गए तो फिर किसी ने कहा - क्या लोग हैं , मरियल से खच्चर पर बैठकर जा रहे , खच्चर का जरा ध्यान नही !
इस सन्दर्भ का तातपर्य सिर्फ इतना ही बताना है कि आप कुछ भी करें - लोग तो कहेंगे ही । निर्णय आपको करना है कि आप उसे कितनी तबज्जो देते हैं।
अनेक बार ,बार - बार हमारे जीवन में ऐसे प्रसंग आते हैं जिनसे घबराकर हम चाहकर भी समयानुकूल उचित निर्णय नही ले पाते हैं और बाद में पछताते हैं । जरूरी है यहां अपने विवेक का इस्तेमाल करना । उदहारण के तौर पर देखें तो शादियों में फिजूलखर्ची हम केवल दिखावे के लिए और लोग क्या कहेंगे के डर से ही करते हैं। अनेक अप्रासंगिक हो चुकी रूढ़ियों का निर्वहन भी इसी डर से करते हैं । परिवार में कोई यदि विजातीय विवाह करे तो - लोग क्या कहेंगे के डर से उसमे शामिल होने से या सहमति देने से कतराते हैं । मृत्यु भोज , दहेज , बेटियों को ज्यादा शिक्षा न देना ,महिला पुरुष की मित्रता आदि अनेक ऐसे ही उदाहरण हैं जो - लोग क्या कहेंगे , के डर से हम मजबूरन करते हैं । मुझे यह स्वीकारने में कतई संकोच नही कि इस भयावह स्थिति का मैं भी हिस्सा बना हूँ। आज जरूरत है इस भय से मुक्त होने की । विवेक सम्मत निर्णय लेने की ।
अंत में एक बात और कहना चाहूंगा -" लोग क्या कहेंगे " का भय हमको कई बार या अक्सर अच्छे रास्ते पर भी चलने को प्रेरित करता है । विषम स्थितियों से बचाता है लेकिन यह हमारे विवेक पर ही निर्भर करता है। इसलिए लोगों के कहने की उतनी ही परवाह करें , जितना हमारा विवेक अनुमति दे , भयरहित होकर ।
यहां मैं इसी विषय पर अपनी एक कविता भी प्रस्तुत कर रहा हूँ , देखिये - कोई क्या कहेगा-
पूरी जिंदगी
परवाह करते हैं हम
इस बात की -
कि - कोई क्या कहेगा !
खो देते हैं इससे
वे कई पल और खुशियां
जिनसे संवर सकता था
और अधिक
घर - संसार , व्यवहार हमारा ।
इस एक दंश से
मुरझा जाते हैं , कभी - कभी
बेटे और बेटियों के भविष्य
या कई दफा , सपने भी हमारे।
देखते और सोचते हैं
अक्सर ही हम , इसी रूप में
इस प्रश्न को
पर मेरी नजर में - होता है ,
एक पहलू और भी इसका।
बचाता है यही डर , बार - बार
अनेक अप्रिय स्थितियों से भी हमको।
सोचें , तो मिलेगा उत्तर यही
सिक्के के दो पहलू की तरह ही है
परिणाम भी इसके ।
कभी बचाता है तो कभी
डुबाता भी है प्रश्न यह -
कि - कोई क्या कहेगा ?
समझकर इसे -
लें अपने विवेक का सहारा
और करें वही -
जिसके सुखद हों परिणाम
घर संसार और व्यवहार में हमारे।
अंत में फिर इतना ही कहूंगा - यदि जरूरी है , लोगों के कहने की परवाह करना तो उतनी ही करें जितनी अनुमति आपका विवेक दे।
- देवेंन्द्र सोनी , इटारसी।
परिदृश्य चाहे वैश्विक हो , राष्ट्रीय हो , सामाजिक हो या पारिवारिक हो - कुछ भी करने से पहले यह प्रश्न हमेशा सालता है कि - लोग क्या कहेंगे ? उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी और इसका हमारे मूल्यों , सिद्धान्तों और जीवन पर क्या असर पड़ेगा ! चिन्तन का पहलू यह होना चाहिए - हमको लोगों के कहने की कितनी परवाह करना चाहिए क्योंकि आप यदि अपने नजरिये से अच्छा भी करते हैं तो जरूरी नही कि वह अन्य व्यक्तियों की नजर में भी अच्छा ही हो । सबका नजरिया अलग अलग होता है । फिर , लोगों का तो काम ही है कहना !
यहां मुझे एक बोध कथा याद आ रही है - एक पिता पुत्र ने मेले से खच्चर खरीदा और उसे लेकर घर की ओर निकले । रास्ते में किसी ने कहा - कैसा पिता है , खच्चर होते हुए भी बेटे को पैदल ले जा रहा है । पिता को भी लगा तो उसने अपने बेटे को खच्चर पर बैठा दिया और खुद पैदल चलने लगा । आगे चलने पर किसी ने कहा - कैसा बेटा है , बूढ़ा बाप पैदल चल रहा और जवान बेटा शान से सवारी कर रहा। अब दोनों ही खच्चर पर बैठ गए तो फिर किसी ने कहा - क्या लोग हैं , मरियल से खच्चर पर बैठकर जा रहे , खच्चर का जरा ध्यान नही !
इस सन्दर्भ का तातपर्य सिर्फ इतना ही बताना है कि आप कुछ भी करें - लोग तो कहेंगे ही । निर्णय आपको करना है कि आप उसे कितनी तबज्जो देते हैं।
अनेक बार ,बार - बार हमारे जीवन में ऐसे प्रसंग आते हैं जिनसे घबराकर हम चाहकर भी समयानुकूल उचित निर्णय नही ले पाते हैं और बाद में पछताते हैं । जरूरी है यहां अपने विवेक का इस्तेमाल करना । उदहारण के तौर पर देखें तो शादियों में फिजूलखर्ची हम केवल दिखावे के लिए और लोग क्या कहेंगे के डर से ही करते हैं। अनेक अप्रासंगिक हो चुकी रूढ़ियों का निर्वहन भी इसी डर से करते हैं । परिवार में कोई यदि विजातीय विवाह करे तो - लोग क्या कहेंगे के डर से उसमे शामिल होने से या सहमति देने से कतराते हैं । मृत्यु भोज , दहेज , बेटियों को ज्यादा शिक्षा न देना ,महिला पुरुष की मित्रता आदि अनेक ऐसे ही उदाहरण हैं जो - लोग क्या कहेंगे , के डर से हम मजबूरन करते हैं । मुझे यह स्वीकारने में कतई संकोच नही कि इस भयावह स्थिति का मैं भी हिस्सा बना हूँ। आज जरूरत है इस भय से मुक्त होने की । विवेक सम्मत निर्णय लेने की ।
अंत में एक बात और कहना चाहूंगा -" लोग क्या कहेंगे " का भय हमको कई बार या अक्सर अच्छे रास्ते पर भी चलने को प्रेरित करता है । विषम स्थितियों से बचाता है लेकिन यह हमारे विवेक पर ही निर्भर करता है। इसलिए लोगों के कहने की उतनी ही परवाह करें , जितना हमारा विवेक अनुमति दे , भयरहित होकर ।
यहां मैं इसी विषय पर अपनी एक कविता भी प्रस्तुत कर रहा हूँ , देखिये - कोई क्या कहेगा-
पूरी जिंदगी
परवाह करते हैं हम
इस बात की -
कि - कोई क्या कहेगा !
खो देते हैं इससे
वे कई पल और खुशियां
जिनसे संवर सकता था
और अधिक
घर - संसार , व्यवहार हमारा ।
इस एक दंश से
मुरझा जाते हैं , कभी - कभी
बेटे और बेटियों के भविष्य
या कई दफा , सपने भी हमारे।
देखते और सोचते हैं
अक्सर ही हम , इसी रूप में
इस प्रश्न को
पर मेरी नजर में - होता है ,
एक पहलू और भी इसका।
बचाता है यही डर , बार - बार
अनेक अप्रिय स्थितियों से भी हमको।
सोचें , तो मिलेगा उत्तर यही
सिक्के के दो पहलू की तरह ही है
परिणाम भी इसके ।
कभी बचाता है तो कभी
डुबाता भी है प्रश्न यह -
कि - कोई क्या कहेगा ?
समझकर इसे -
लें अपने विवेक का सहारा
और करें वही -
जिसके सुखद हों परिणाम
घर संसार और व्यवहार में हमारे।
अंत में फिर इतना ही कहूंगा - यदि जरूरी है , लोगों के कहने की परवाह करना तो उतनी ही करें जितनी अनुमति आपका विवेक दे।
- देवेंन्द्र सोनी , इटारसी।
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