शनिवार, 28 अक्टूबर 2017

खता हुई ही होगी मुझसे

जरा हटके -  नई कविता
खता हुई ही होगी मुझसे 

अट्ठावन में आते - आते 
लगने लगा है
समा गए हैं मुझमें 
बाबूजी मेरे। 

हो गई है वही चाल - ढ़ाल
झुक गये हैं कंधे , और
स्वभाव में आने लगी है नरमी
हाँ ,संतोष और असंतोष के बीच
बना रहता है द्वंद जरूर
उपजा है जो मानसिक थकान
और वेबजह की निराशा से।

करता हूँ महसूस खुद में उनको
जब आती है खांसी या 
घेरने लगती है तकलीफें वही
जो सहते थे वे अक्सर 
और जिन्हें बताने से कतराते थे
उम्र के अंतिम पड़ाव पर ।

खता हुई ही होगी 
निश्चित ही मुझसे भी 
बरतने की कोताही
किया ही होगा मैने भी 
जाने अनजाने नजरअंदाज उन्हें।

लगता है अब यह सब हरदम ही
क्योंकि , होते हैं वे महसूस मुझे
मेरे अंदर ही।

उम्र का यह अंतिम पड़ाव
सिखाता और याद दिलाता है
बहुत कुछ स्मृति से उनकी।

होती ही है सबसे जिंदगी में
खता भी और रह ही जाती है
कोई न कोई कसर भी सेवा में।

करें याद इन्हें और
दें वह शिक्षा बच्चों को अपने
जिससे न हो कोई गलती
देख रेख में बुजुर्गों की।

मिलेगा इसीसे वह आत्म सुख
जिसकी दरकार है सबको।

      - देवेंन्द्र सोनी , इटारसी

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तू और तेरा किस्सा ही खत्म



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अजीब सी मुहहोवत है ना तुम्हारी

अजीब सी मुहहोवत है ना तुम्हारी 
और उसके साथ हमारा पागलपन
तुम जिद किये जाते हो हर बात की 

और हम कुबूल किये जाते है मान उसे हुकुम

कब तक चलेगा ये सिलसिला यूँ ही?

ना तुम जानो हो ना हम
बस चले जा रहे हो तुम अपने जोश में 

और परछाईं जैसे  कदम रखे जा रहे है सँग हम

खुश तुम हो अपनी मर्जियों की पूर्ति पर 

और बेहद खुश है तुम्हारी खुशी में हम
और क्या चाहिये इस जिंदगी से 

कभी-कभी सवाल ये ना करने को करता है मेरा मन

जब तुम मिले चाहने को तो अब 

और कोई ख्वाईश क्यूँ करें इस जीवन से हम
बेशक तुम्हारी जिद्द हूँ मैं पर क्यूँ ना 

हर जन्म तुम पर वार दे ऐसी मुहहोवत करें तुमसे हम।

Written By Ritika{Preeti} Samadhiya... Please Try To Be A Good Human Being....✍

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रह-रह के जिंदगी में वापस आते हो

रह-रह के जिंदगी में वापस आते हो
मरहम लगाने आते हो या जख्म हरे कर जाते हो
रुकने के लिए नहीं....हो नहीं अब साथ मेरे ये बताने आते हो


ना जाने क्या तुम्हारे मन में समायी हैं 

क्या लेने बार-बार तुम चले आते हों

मुस्कुराने को कहते हो,रुलाने का मौका छोड़ते नहीं
बस तुम्हारा चलता हैं मुझ पर फिर भी खुश कभी तुम हमसे होते नहीं,

बेमुरब्बत,बेदर्दी,बेहया कुछ भी कहते तुमसे बनता नहीं
पता नहीं क्यूँ तुम इस जिस्म में बसे हों जो तुम्हें सुहाता नहीं 
और तुम कभी इसे अपनाते नहीं 

जाते मुझे पूरी तरह छोड़कर नहीं और होकर भी मेरे कभी होते नहीं,
सितमों के तुम बादशाह बन बैठे हो जो मुझ पर अपनी रहमत बरसाने आते हो,
दर्द के तुम जहाँगीर बन बैठे हो जो मेरे लिये भण्डार भराते हो, 
बहते हुए मेरे खूनी आंसुओं के तुम सरकार बन बैठे हो जो मुझ पर अपनी सत्ता खड़ी कराते हो

कर्कशता तुम पर कभी मेरी शुरू होना सोचती नहीं,

मधुरता तुम पर कभी मेरी खत्म होना चाहती नहीं दोनों के बीच झूलती हूँ मैं जिसकी ढील तुम बढ़ाते हो और मेरी वफ़ा पर अपनी चालांकि हंसी का ठप्पा लगाते हो ....
मुझे नादान समझने की भूल तुम पहली दफा से आज भी दोहराते हो किसी पल में जाकर ये नहीं सोचते तुम मेरे प्यार के आगे खुद को कितना हारा हुआ पाते हो,
गुम हो अपनी ही धुन में तुम और अपनी ही चलाते हो 
मुझे ठुकरा कर दिल वाली पाने की इच्छा जताते हो....
रोती आखों से अब हँसी तुम पर आती है 
क्या खूब गजब हो तुम जिंदा को मुर्दा बनाकर 
जिंदगी जीयो का डंका बजाते हो।

Written By Ritika{Preeti} Samadhiya... Please Try To Be A Good Human Being....✍

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मेरे महबूब तेरी गलियां

मेरे महबूब तेरी गलियां मेरे लिए थी ही नहीं
बहुत ये चाहा मैंने पहुंच सकूँ तुझ तक 

पर तुझ तक पहुंचती राहें मुझे मंजूर करती थी ही नहीं

कैसे न बिखरने देती खुद को मैं जब सबकुछ तुम थे मेरे
पर मेरे नसीब से लड़ने को राजी तेरी चाहत थी ही नहीं


मेरे महबूब ये जो तेरी गलियां थी और ये जो तेरी चाहतों की मनमर्जियां थी

सिर्फ तुझ तक थी मुझ तक तो कभी ये भूल कर भी थी ही नहीं

Written By Ritika(Preeti) Samadhiya.....Please Try To Be A Good Human Being...✍

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रविवार, 15 अक्टूबर 2017

शब्द



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प्रीत चुनरियाँ


सुनो सँवरिया 
तेरी याद में हो गई बावरिया 
बहुत बिताई जुदाई सँग रतियाँ
दर्पण में खुद की परछाईं को तुम मानकर तन्हाई से की जी भर बतियाँ
अनजानी सी सूरत तुम्हारी,अनसुनी सी बोली तुम्हारी
 ना नाम ना पता तुम्हारा फिर भी 
प्रेम के कागज पर ह्रदय की कलम से लिखी तुम्हें ढेरों चिठ्ठियां
और तुम फिर भी बने रहे बहरूपिया 
अब टूटा है सब्र का हर बांध और छूटी है मुझसे मेरी नगरिया
तुम तो हो बड़े ही कठोर और सब्रीले पिया पर
 हमारा ना लागे है अब तुम बिन जियरा 
तुम सँग ही अब भोर और तुम सँग ही अब ये 
साँझ देखेगी मेरे नयनों की उजिरिया 
आ रही हूँ होके प्रेम से सराबोर और ओढ़ मैं प्रीत चुनरियाँ।

Written By Ritika{Preeti} Samadhiya... Please Try To Be A Good Human Being...✍

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शुक्रवार, 6 अक्टूबर 2017



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