लोगों से मैंने खुद की तारीफ को इस तरह सुना है
कि
दिल मेरा शीशे सा साफ है
कोई ऐब नहीं,कोई ऐंठ नहीं
मन पर खुदा के नाम की चादर पाक है
शायद इसलिये अब तक मेरा खाली हाँथ है
शायद इसीलिये अब तक मेरा खाली हाँथ है।
आँखें मेरी चंचला की दास है
कोई आखेटकी भाव नहीं, क्रुध्ता का स्वभाव नहीं
अश्रुओं पर सँतोषी पिपासा की आस है
शायद इसीलिये अब तक मेरा खाली हाँथ है
शायद इसीलिये अब तक मेरा खाली हाँथ है।
होंठ मेरे गुलाब की छांव है
कोई कड़वाहट नहीं,कोई अपशब्द नहीं
वाणी पर सरस्वती का वास है
शायद इसीलिये अब तक मेरा खाली हाँथ है
शायद इसीलिये अब तक मेरा खाली हाँथ है।
तन मेरा सलिल का आवास है
कोई मैल नहीं,कोई खिलकोटी खेल नहीं
आत्मा पर सर्वसूरती प्रेम के रंगों का आकाश है
शायद इसीलिये अब तक मेरा खाली हाँथ है
शायद इसीलिये अब तक मेरा खाली हाँथ है।
Written By Ritika Preeti Samadhiya.... Please Try To Be A Good Human Being...✍
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